Transcript: (00:00) एक और इस्लाह मार्केट में लच की जा रही है और यह लच की जा रही है हमारे मोहतरम साहिल अदीम साहब की तरफ से कुछ लोग शायद यह समझते हो कि मुझे साहिल अदीम से कोई पर्सनल प्रॉब्लम है नहीं जब हम ट पर होते हैं और यह पब्लिक डोमेन है जहां मैं अपनी बात कह रहा हूं सब लोग अपनी अपनी बात कह रहे हैं और दीन के मुतालिक ही बात कह रहे हैं मैं किसी की नियत के ऊपर शक नहीं करता हूं लोगों की नियत ठीक हो सकती है लेकिन यह कि जब हम किसी आईडीए को सुन तो उस आईडिया को जब आपने पब्लिक डोमेन में पेश किया तो अब वह पब्लिक प्रॉपर्टी है व आईडिया और उस पब्लिक प्रॉपर्टी के ऊपर कोई
(00:39) भी शख्स तन कीद कर सकता है और कोई भी शख्स क्रिटिसाइज कर सकता है तो जो हमारे या किसी और के फॉलोअर्स है उनको ऑफेंड नहीं होना चाहिए कि यार फला ने फला के ऊपर क्रिटिसाइज कर दिया वह तो उन्हीं के पीछे पड़े रहते हैं ऐसा नहीं है आपके ऊपर जो अगर कोई क्रिटिसाइज करता है तो इसलिए करता है कि कहीं आपकी जो फिक्र है व वो नौजवान गलती से उसको इख्तियार ना कर ले और दीन की किसी ताबीर को ना बदल ले और कंफ्यूजन का शिकार ना हो जाए एक क्लिप सुनिए आप उन्हीं की आवाज में तो यह फिर उसके बाद तबसरा करेंगे इंशाल्लाह का मतलब है दीनदार बंदा
(01:17) जो इनका मतलब है दार मजहबी बंदा वो स्टेट के अफेर में मुखलत नहीं करेगा दन के नाम प और स्टेट जो है वो मस्जिद के मजबी उमर में मुखलत नहीं करेगी ये सेकम होता है अब इस्लामिक सेकुलरिज्म आप सोचे ये लज इस्तेमाल ही नहीं हो सकता मैं बताता हूं क्यों नहीं हो सकता इसलिए नहीं अलाम वालेकुम रहमतुल्लाह वालेकुम अस्सलाम रहमतुल्लाह खैरियत से हैं सभी हजरात जी जी अल्हम्दुलिल्लाह तमाम हजरात को खुशामदीद कहना चाहूंगा और आज कोई लंबा चौड़ा तबसरा नहीं करना है सिर्फ एक मौजू पर गुफ्तगू करनी है और यह मौजू रिलेवेंट भी है और आपके लिए इल्मी
(01:59) ऐतबार से इंशा अल्लाह मुफीद भी रहेगा और वह इसलिए कि जब हम इस फील्ड में काम करते हैं कि जहां हमारा मुकाबला लिबरलिज्म से है सेकुलरिज्म से है और इसी तरीके से दूसरे जो इजम है उनमें एथम सर फेहरिस्त है तो इन तमाम अफक और नजरिया को जिस तरह वह हैं उनको उसी तरीके से समझना बेइंतहा जरूरी है और जब तक आपके पास यह क्लेरिटी ऑफ माइंड नहीं होगी क्लेरिटी ऑफ कांसेप्ट नहीं होगा तब तक आप चीजों को वैसे काउंटर नहीं कर पाएंगे यह जो दौर है जिस दौर में हम जी रहे हैं गुजर्ता 200 साल से यह दौर शुकू और शुब हात का है और यह शुकू और शुभत कैसे जन्म लेते हैं यह इस तरह जन्म लेते हैं जब
(03:03) हम दूसरे लोगों की टर्मिनोलॉजी और इतहाद को इंपोर्ट करते हैं उनको इस्लामा इज करने की कोशिश करते हैं और यह दिखाना चाहते हैं कि भाई चूंकि इस्लाम हर जमाने का साथ दे सकता है हर दौर का साथ दे सकता है लिहाजा अब इस्लाम की यह इंटरप्रिटेशन है तो जिन लोगों का यह माइंडसेट होता है तो व लोगों के जहन में कंफ्यूजन पैदा कर देते हैं वो क्लेरिटी खत्म हो जाती उसकी एक मिसाल मैं आपके सामने रखूंगा और उसके बाद मैं एक वीडियो प्ले करूंगा बल्कि ऑडियो की शक्ल में वो वीडियो मेरे पास है और उस पर मैं मुख्तसर सा तबसरा करूंगा वह यह कि आज से तकरीबन 100
(03:47) सवा स साल पहले एक किताब आई थी जिसका नाम था अल हुकूक वल फराइज यह जो किताब थी यह लिखी थी डिप्टी नजीर अहमद ने और यह सैयद अहमद खान साहब के कैंप के थे जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बानी है सैयद साहब ने जो कारनामा अंजाम दिया है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कायम करके इसमें कोई शक नहीं है कि यह उम्मते मुस्लिमा के ऊपर खुसूस बर सगीर के मुसलमानों के ऊपर एक बहुत बड़ा एहसान है उनका यह बड़ा एहसान है लेकिन जरूरी नहीं है कि अगर किसी शख्स का किसी एक मैदान में एहसान हो तो अब उसको तमाम मैदानों में बोलने का हक हो गया चाहे वह
(04:32) उस मामले में इल्म रखता हो या ना रखता हो यह चीज गलत है तो बहरहाल उनके कैंप के एक शख्स थे सैयद डिप्टी नजीर अहमद साहब उन्होंने अपनी किताब अल हुकूक ल फराइज में इंटरेस्ट और सूद के बारे में गुफ्तगू की है और बड़ी लंबी चौड़ी गुफ्तगू की और हदीस और कुरान की आयतें लिखने के बाद यह कहा के इन दोनों के दरमियान यानी सूद और इस्लाम के दरमियान तजा है तजत का मतलब यह है के इस्लाम अगर है तो फिर सूद नहीं हो सकता और सूद है तो इस्लाम नहीं हो सकता बहुत अच्छी बात है जाहिर है कि कोई भी आदमी इन आयात और अदीस को पढ़कर यही नतीजा निकालेगा फिर आगे जब सारी बात वह कह चुके तोब यह कहते
(05:17) हैं यहां तक तो सही है यह सब तो ठीक है यह सब तो अपनी जगह ठीक है लेकिन जैसे आदमी कह रहा लेकिन अब जरा कुछ गड़बड़ शुरू हुई है वो यह कहते हैं किले लेकिन देखना यह है कि अकल क्या कहती है अब देखें यह कितनी बड़ी उन्होंने जंप मारी है के अदीस और कुरान ठीक है अपनी जगह अब हमें देखना य है कि अकल का क्या फतवा है अकल का क्या फैसला है और अकल भी किसकी यानी ऐसी तमाम इंसानों की अकल नहीं किसी एक इंसान की अकल तो चलो भाई ठीक है आप अपनी अकल प्रेजेंट करें देखते हैं क्या उस अकल में कहते हैं के मुसलमानों के लिए मालदार होना बहुत ज्यादा जरूरी है अब
(06:00) कोई उनसे पूछे कि भाई सिर्फ मुसलमानों ही की क्या खुसूसियत है सबके लिए मालदार होना जरूरी है सबको मालदार होना चाहिए यानी एक फितर तकाजा है यह मैं यह नहीं कह रहा हूं कि एक इंसान का मकसद यह हो कि वह मालदार बन जाए यह एक फिी तकाजा है कि उसके पास माल दौलत हो अल्लाह ताला ने उस फितरत को दबाया नहीं है उसके तरीके बयान किए कि हलाल तरीके से तुम मालदार बन जाओ कोई मसला नहीं है तो वह कहते हैं कि मुसलमानों के लिए मालदार होना बहुत जरूरी है और आगे फिर वह कहते हैं कि आज के दौर में मालदार सिर्फ और सिर्फ सूद लेकर ही बना जा सकता
(06:31) है अब कोई इनसे पूछे कि भाई यह आपसे किसने कह दिया कि सूद के बगैर इंसान मालदार नहीं बन सकता तो दोनों बातें उन्होंने इस तरह की कही और उन्होंने कहा जब यह सूरत हाल है कि आप मालदार सिर्फ सूद लेकर ही बन सकते हैं तो फिर सूद लेना चाहिए अच्छा आप सूद को जस्टिफाई करने के बाद आके व उसकी जबरदस्त रूहानी फजीलत भी बयान करते हैं य भी सुनने के लायक है वो यह कहते हैं कि सूद की एक खास बात यह है कि व इंसान के अंदर बुख पैदा करता है और इंसान को इतना बखिल बना देता है कि वह अपनी बुनियादी जो जरूरतें हैं वह भी पूरी नहीं कर पाता तो जब एक आदमी अपनी बुनियादी जरूरत ही पूरी नहीं करेगा तो फजूल खर्ची तो क्या
(07:16) करेगा तो कहते हैं कि सूद का फायदा यह है कि इंसान बखी बनकर फजूल खर्ची के गुनाह से बच जाता है आप इसकी यानी रूहानी फजल सुने इसके के इसरा और फजूल खर्ची का जो गुनाह है उससे बच जाता है तो अगर एक आदमी अपनी अकल इस तरीके से चलाएगा तो फिर इस तरह के ही मजह का खेज फतवे उसकी अकल देगी और एक इस्लामिक इंटरेस्ट के नाम से एक इस्लाह वजूद में आ जाएगी कि भाई अब इंटरेस्ट को भी कभी इस्लामा इजेशन हो गया तो ऐसे ही अगर आप अपने दौर में आप देखें जो बुनियादी जो वजू हात है शुब हात की यानी हमारे नौजवानों में शुभत क्यों पाए जाते हैं वो इसलिए पाए जाते हैं कि मगरिब निजाम को वो देखते हैं व समझते हैं कि
(08:04) मगरिब निजाम एक आइडियल निजाम है और उस निजाम की इस्तल से वो वाकिफ होते हैं चाहे वो लिबरलिज्म हो चाहे वो सेकुलरिज्म हो वगैरह वगैरह वो डेमोक्रेसी हो कुछ भी हो फिर वोय कहते हैं कि इस्लाम को जब हम देखते हैं तो इस्लाम में सेकुलर वैल्यूज नहीं है इस्लाम में लिबरल वैल्यूज नहीं है सेकुलरिज्म क्या है सेकुलरिज्म का मतलब है सेपरेशन ऑफ अ चर्च एंड स्टेट के रियासत अपना काम करेगी स्टेट अपना काम और चर्च अपना काम करे आप चर्च की जगह मस्जिद कह ले आप चर्च की जगह टेंपल कह ले आप चर्च की जगह गुरुद्वारा कह ले यह सब सेकुलरिज्म ही
(08:40) की अलग-अलग उसके अलग-अलग चेहरे और अलग अलग रुख है तो यह सेकुलरिज्म है लेकिन जब हम इस्लाम को देखते हैं तो इस्लाम में रियासत का मुकम्मल दखल है और मजहबी रियासत का दखल यानी रियासत मजहबी होती है स्टेट रिलीजस होता है तो रिलीजन डिक्टेट करता है कि लोगों को कैसे रहना है और कैसे नहीं रहना पार्लियामेंट डिक्टेट नहीं करती है तो लोग यह कहते हैं कि यार यह निजाम ज्यादा बेहतर है कि जिसमें एक इंसान खुद ये डिसाइड करे कि मुझे अपनी जिंदगी कैसे गुजारनी है और किन कवानी के तहत गुजारनी है ना यह कि कोई सुपर नेचुरल एंटिटी मेरा फ्यूचर डिसाइड करे या मेरी जिंदगी डिसाइड करे वो ज्यादा
(09:18) बेहतर है तो लोगों के जहन में शुब हात पैदा हो जाते हैं कि जो डेमोक्रेसी या सेकुलरिज्म है वो सबको लेकर चलता है जबकि एक रिलीजस जो रियासत है वो सिर्फ उस रिलीजन के मानने वालों को ले चलती है हालाकि यह बुनियादी तौर पर गलत है तो अब अगर कोई आदमी फिर यह क कि नहीं सेकुलरिज्म कर सकते हैं और एक इस्लामी सेकुलरिज्म का हम कांसेप्ट दे सकते हैं तो यह बिल्कुल ऐसे ही है जैसा कि इस्लामिक इंटरेस्ट के इंटरेस्ट भी कह रहे हैं और इस्लामी भी लज लगा दिया कुफर भी कह रहे हैं और इस्लामी भी कह दिया इस्लामी कुफर कोई चीज नहीं होती इस्लामी शिर्क कोई चीज नहीं होती यह
(09:55) किसी खास मुझे यानी यह ना समझा जाए कि मैं किसी खास पर्सन के ऊपर बात कर रहा हूं हालाकि बाज मर्तबा पर्सनालिटी के ऊपर भी बात करनी पड़ती है ताकि लोगों को पता रहे कि वह कौन सी फिकर है जो मार्केट में लच की जा रही है तो ऐसे ही अगर आप यह कहे कि नहीं इस्लामी लिबरलिज्म इस्लामी लिबरलिज्म कोई चीज नहीं होती है एक और इस्लाह मार्केट में लच की जा रही है और यह लच की जा रही है हमारे मोहतरम साहिल अदीम साहब की तरफ से कुछ लोग शायद यह समझते हो मुझे साहिर अदीम से कोई पर्सनल प्रॉब्लम है नहीं जब हम प्रॉपर्टी है व आईडिया और उस पब्लिक प्रॉपर्टी के ऊपर कोई भी शख्स तन कीद कर
(11:05) सकता है और कोई भी शख्स क्रिटिसाइज कर सकता है तो जो हमारे या किसी और के फॉलोअर्स है उनको ऑफेंड नहीं होना चाहिए कि यार फला ने फला के ऊपर क्रिटिसाइज कर दिया वह तो उन्हीं के पीछे पड़े रहते हैं ऐसा नहीं है आपके ऊपर जो अगर कोई क्रिटिसाइज करता है तो इसलिए करता है कि कहीं आपकी जो फिक्र है व नौजवान गलती से उसको इख्तियार ना कर ले और दीन की किसी ताबीर को ना बदल ले और कंफ्यूजन का शिकार ना हो जाएं चाहे आपकी नियत वो ना हो तो ये सारा डिस्क्लेमर मैं इसलिए दे रहा हूं ताकि हर एक का अपना हल्का होता है तो वो ये ना समझे कि शायद उनसे कोई पर्सनल मसला
(11:43) है मैं उनको पर्सनली नहीं जानता ना मेरी कभी उनसे गुफ्तगू हुई हां हो जाए तो बहुत अच्छी बात है आई एम मोर देन विलिंग टू डू ताकि हमारे जो डिफरेंसेस है वो उनके ऊपर गुफ्तगू हो सके एक क्लिप सुनिए आप उन्हीं की आवाज में तो ये फिर उसके बाद तबसरा करेंगे इंशाल्लाह क का मतलब है कि दीनदार बंदा जो इनका मतलब है दार मजबी बंदा वो स्टेट केे मुखलत नहीं करेगा दन के नाम प और स्टेट जो है व मस्जिद के म उमर में मुखलत नहीं करेगी य सेकम होता है अब इस्लामिक सेकुलम आप सोच ये ल इस्तेमाल नहीं हो सकता बताता हो सकता इसलिए नहीं समझ रहे कह र हर ब अपनी राइट े ट
(12:33) य से नहीं सरय टे है य पर्सनल लिबर्टी को प्रोजेक्ट करना चाह रहे और मैं भी चाहता हं हर मुसलमान इस्लाम का ी का भी है मल साब को कभी भी म साब को य टे नहीं बताई जाती और होता है इसलिए बता रहाय रु कर इलाम तो ये किसी पॉडकास्ट में साहिल अदीम साहब है और वह इंजीनियर साहब के ऊपर क्रिटिसाइज करते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने इस्लामी सेकुलरिज्म का जो लफ्ज है वो गलत बोला है हम इसमें एग्री करते हैं उनके साथ लेकिन साथ में ये कहते हैं कि शायद वो लिबरियम बोलना चाह रहे होंगे तो वह इस लफ्ज को सही कर ले यानी लिबरियम सही है इस्लामिक लिबरियम जो टर्मिनोलॉजी
(13:20) है वो सही है तो आज इसके ऊपर गुफ्तगू करनी है साथ में ये भी कहते हैं कि भाई मौलवियों को क्या पता उनको तोय बताया ही नहीं जाता तो पता नहीं हमारे मोहतरम साहिल अजीम साहब कौन सी दुनिया में रहते हैं तो मैं थोड़ा सा यह कोई बहुत बड़ा रिसर्च पेपर नहीं है मुख्तसर में स्क्रीन शेयर करता हूं ताकि आपको बता भी दूं कि इस्लामी लिबरियम क्या एक पॉसिबल टर्मिनोलॉजी है या नहीं है तो देखें आप लिबर्टेरियन जम डाले ग पर तो सबसे ऊपर लिंक यही आता है विकपीडिया के बारे में मैं पहले ही बता दूं कि कोई बहुत ही एकेडमिक ऑथेंटिक सोर्स नहीं है लेकिन फिर भी कम से कम आपको एक आईडिया और अंदाजा तो हो ही
(13:57) जाता है यह क्या चीज लिबरियम लिबरलिज्म से मिलता जुलता एक लफ्ज है लेकिन चूंकि लिबरलिज्म नहीं है कुछ और है लिबरियम है तो जाहिर है कि इसको थोड़ा बहुत माना अलग होंगे तो देखें कि ये कहता क्या है कि लिबरियम इज ए पॉलिटिकल फिलोसोफी दैट अप होल्स लिबर्टी एस अ कोर वैल्यू लिबर्टेरियन सीक टू मैक्सिमाइज ऑटोनोमी एंड पॉलिटिकल फ्रीडम एमफसा इजिंग इक्वलिटी बिफोर द लॉ एंड सिविल राइट ट फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन फ्रीडम ऑफ स्पीच फ्रीडम ऑफ थॉट एंड फ्रीडम ऑफ चॉइस यह लिबरियम की कोर वैल्यूज है तो इसके ऊपर हम देखेंगे कि क्या इस्लामिक लिबरियम एक
(14:44) पॉसिबल चीज है क्या यह मुमकिन है कि लिबरियम को आप इस्लामा कर दे अगर आप यह कह कि जी लिबर्टे जम के मा की डेफिनेशन मैं खुद करूंगा हालाकि यह चीज गलत है यह वही है कि आप जब टर्मिनोलॉजी को इस तरह इस्तेमाल करेंगे तो लोग कंफ्यूज हो जाएंगे क्योंकि जब भी आप वो टर्म बोल रहे हैं तो लोगों को उसका बैकग्राउंड नहीं पता अब हम यह देखते हैं कि यह जो लिबरियम की जो बुनियादी वैल्यूज है उसमें एक वैल्यू यह आई है कि राइट टू फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन सिविल राइट टू फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन यह पहला है तो फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन के तहत जो चीज आती है वह यह आती है कि आप किसी भी मजहब को चाहे इख्तियार कर ले आपकी मर्जी है
(15:28) आपका य र है तो अब मुझे आप बताएं कि एक मुसलमान एक इस्लामी हुकूमत में रहते हुए क्या किसी दूसरे मजहब को कबूल कर सकता है अगर वह अपने मजहब को छोड़कर दूसरे मजहब को कबूल करेगा तो व फौरन मुरत हो जाएगा और इस्लामी रियासत में इरत दद की सजा है हां उसको अगर दूसरा मजहब इख्तियार करना है तो उसको इस्लामी रियासत छोड़नी होगी वो कहीं और जाए और दूसरे मजहब के हिसाब से अपनी जिंदगी गुजार उसमें कोई मसला नहीं है लेकिन यह ऐसा ही है अब कोई मेरी इस क्लिप को काट कर चलाने लगे कि देखो यह कितना ज्यादा क्रूट है तो इसके ऊपर हम बहुत दसियों मर्तबा बात कर चुके हैं कि यही एक लॉजिकल और रैशनल चीज है और दुनिया में हर
(16:12) जगह इसी को प्रैक्टिस किया जाता है यहां तक कि सेकुलर कंट्रीज में भी इसको प्रैक्टिस किया जाता है लेकिन अलग अंदाज से तो मैं वह किसी और मौके के ऊपर समझाऊ फिलहाल इस पर बात करना मकसूद है तो फ्रीडम ऑफ एसोसिएशन तो आपको इस्लाम में या इस्लामी रियासत में नहीं मिलेगी खुसूस एक मान को फ्रीडम ऑफ स्पीच अब मुझे बताएं कि क्या एक इस्लामी रियासत अपने बाशिंदों को मुस्लिम या गैर मुस्लिम इस बात की फ्रीडम दे सकती है कि वह कुरान के खिलाफ कोई गुस्ताख कलि बोलने रसूल अकरम सल्लल्लाहु अ सल्लम की शान में गुस्ताखी करने बल्कि एक इस्लामी रियासत अपनी अवाम को इस बात का पाबंद बना सकती है कि ना सिर्फ यह कि वो
(16:54) कुरान और रसूल अकरम सलम किसी भी मुकद्दस श शयत के खिलाफ कोई गुस्ताख बयान जारी नहीं कर सकते अब उन मुकद्दस शख्सियत में तमाम अंबिया सला सलाम है यानी यह मुमकिन नहीं है कि कोई ईसाई यह कहे कि मैं तो ईसाई हूं हजरत ईसा हमारे लिहाजा मैं ईसा सला सलाम के चाहे जितने कार्टून बनाऊ और जितनी गुस्ताखी करू जी नहीं वो करेगा तो उसको इस्लामिक गवर्नमेंट पनिश करेगी तो फ्रीडम ऑफ स्पीच का कोई कांसेप्ट दारुल इस्लाम में इस्लामी रियासत में नहीं है हां फ्रीडम है लेकिन वो एक महदूद है जिस फ्रीडम ऑ स्पीच को फ्रीडम ऑफ जिस चीज को फ्रीडम ऑफ स्पीच कहा जाता है एक वेस्टर्न
(17:32) कांटेक्ट में लिबरियम कोई इस्लामी इला तो है नहीं जिस वेस्टर्न कांटेक्ट में फ्रीडम ऑफ स्पीच का जो तसर पाया जाता है वह तसव्वुर दारुल इस्लाम में नहीं है इसी तरीके से फ्रीडम ऑफ चॉइस फ्रीडम ऑफ चॉइस यानी आपकी मर्जी है आप चाहे जो करें क्या आप दारुल इस्लाम में रहते हुए इस्लामी रियासत में रहते हुए एक मर्द और औरत शादी से बाहर मेरिट सेक्सुअल रिलेशनशिप कायम कर सकते हैं जिना कर सकते हैं नहीं कर सकते कोई ये कहे कि भाई ये तो कंसेंशुअल है ना दोनों आपस में रजामंदी के साथ यह काम कर रहे हैं तो फ्रीडम ऑफ चॉइस है तो क्यों नहीं कर सकते तो अगर आप यह
(18:13) कहेंगे कि इस्लामिक लिबर्टेरियन जम एक सही टर्मिनोलॉजी है तो फिर दारुल इस्लाम में जिना की इजाजत होनी चाहिए क्योंकि यह फ्रीडम ऑफ चॉइस का मसला है इसी तरीके से एक इस्लामी रियासत में इसकी इजाजत होनी चाहिए के वहां पर कोई शख्स अपना जेंडर बदल ले क्योंकि फ्रीडम ऑफ चॉइस का मसला है इस्लामी रियासत में इसकी इजाजत होनी चाहिए कि आप ना सिर्फ यह कि अपने आप को व्हाट एवर जिस तरह भी चाहे आप अपने आप को आइडेंटिफिकेशन है ना अ जेंडर तब्दील करने की इजाजत है ना एक मुसलमान को अपने मजहब तब्दील करने की इजाजत है ना किसी मुकद्दस हस्ती की शान में गुस्ताखी करने की इजाजत है और यह सारी
(19:09) कोर वैल्यूज है लिबर्टेरियन जम की तो अगर आप यह कहे कि इस्लामिक लिबर्टे निज्म दरअसल एक सही टर्मिनोलॉजी है तो फिर आप भी वही गलती कर रहे हैं कि जिस गलती पर आप दूसरे को अ दूसरे की निशानदेही कर रहे हैं कि नहीं आपने ये गलत कहा तो फिर आपने भी गलत कहा आपने भी कोई बात सही नहीं कही तो मैं ये एक्सपेक्ट करूंगा कि चूंकि आप और ये मैं साहिल अदीम साहब से कह रहा हूं कि आप इस्लामी निजाम की बात करते हैं तो फिर इस्लामी निजाम को जो उसकी जो प्योर एसेंस है उसके साथ बात करें वही टर्मिनोलॉजी इस्तेमाल करें जो इस्लामी है मगरिब से अगर आप टर्मिनोलॉजी को इंपोर्ट
(19:49) करके इस्लामा इज करने की कोशिश करेंगे तो उससे लोग कंफ्यूजन का शिकार होंगे क्लेरिटी नहीं आएगी कांसेप्ट की क्लेरिटी बेइंतहा जरूरी है तब जाकर आपका कोई नजरिया या कोई निजाम कायम हो पाएगा और कांसेप्ट की जो क्लेरिटी होती है वो उसी वक्त होती है जबकि टर्मिनोलॉजी में कोई कंफ्यूजन ना हो टर्म्स में कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए वो वही हो जो इस्लामी हो गैर इस्लामी या आप इस्लामिक लिटरेचर से बाहर की जो टर्म्स लाएंगे तो पहले आप उसको डिफाइन करेंगे और चूंकि उसकी ऑलरेडी एक डेफिनेशन दूसरे वर्ल्ड व्यू में मौजूद है लिहाजा कोई भी एक आम आदमी जब उसको सुनेगा तो उसका जहन उधर जाएगा और वह सख्त
(20:25) कंफ्यूजन का शिकार हो जाएगा तो इसलिए मैं यह गुजारिश करूंगा सभी लोगों से सुनने वालों से के इन मामलात के अंदर कंप्रोमाइज नहीं होना चाहिए हम इस्लाम को विद फुल क्लेरिटी पेश करें बगैर किसी अपोल जेटिक रवैए के तो मेरी जो यह तकी है यह कोई डिस्ट्रक्टिव क्रिटिसिजम नहीं है बल्कि कंस्ट्रक्टिव है और यह एक खैर खवाना जज्बे के साथ मैंने यह बात कही है इसको मनफी ना लिया जाए ठीक है चले जी आगे बढ़ते हैं किसी को कुछ ऐड करना हो तो जरूर करें जी साहब एक बात मैं ऐड करना चाह रहा था जी मुझे समझ नहीं आती है एक्चुअली कि लोग इतने ऑब्सेस क्यों है कि वो इस्लाम के के
(21:04) नाम के साथ ये सारी टर्म्स लगाते हैं आई मीन इट डजन इवन मेक सेंस मतलब अगर यह तब शायद सेंस बना सकता था अगर लिबरलिज्म पहले आता इसका कांसेप्ट और इस्लाम बाद में आता तो हम कहते भाई इस्लाम ने लिबरलिज्म का थोड़ा सा दे दिया तो इट इ समथिंग मतलब ये एक अपनी ही ये एक ऐसी चीज पोट्रे करता है कि हम लोग जो है वो कुछ इफरिट की ये चीज है भाई इस्लाम इस्लाम है वो एज इट इज है और मुझे लगता है मुझ साहब ये जो प्रॉब्लम जो है हम लोग बार-बार जो लोग कुछ लोग धूम लगाने की कोशिश करते हैं इस्लामिक सोशलिज्म इस्लामिक मार्क्सिज्म इस्लामिक
(21:40) लिबरलिज्म इस्लामिक सेकुलरिज्म तो ये इसकी मेन वजह मुझे लगता है कि हम क्लासिकल स्कॉलर जो हमारे हैं हमें पता ही नहीं है कि उन्होंने सिस्टम के बारे में बात करके छोड़ दी है हम उनको पढ़ते नहीं है मतलब हमारे पास बड़े बड़े मतलब स्कॉलर्स हैं जो जिन्होंने पॉलिटिकल एस्पेक्ट्स की किताबें लिखी हुई है सोशियोलॉजिकल एस्पेक्ट में किताबें लिखी हुई है लेकिन हम क्योंकि क्लासिकल फुकाहा के पास नहीं पढ़ते उनकी उनकी किताबों को हम नहीं पढ़ते तो फिर हम लोग जो है ना ऐसे ही इलाहा का जो है वो यूज करेंगे इट नट इवन मेक सेंस क्यों आपको यूज करने है इस्लाम इस्लाम है हां कुछ चीज हो सकती है कि लिबरलिज्म के साथ मिल जाए
(22:14) कुछ कोई चीज हो सकती है जो सोशलिज्म के साथ मिल जाए बट ट डजन मीन कि आप एक ओवरऑल टर्म बना दोगे यह एक मतलब गलत बात है जी हां जबरदस्त किसी और को कुछ ऐड करना हो तो उस कबल इसके कि हम लिंक पब्लिक करें माशाल्लाह माशाल्लाह आमिर भाई तशरीफ ले आए हैं अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह अहलान व सहला वालेकुम अस्सलाम रहमतुल्ला बरकात उमीद हैरत मेरी आवाज आ रही होगी बिल्कुल आ रही है जी सबको बड़ा प्यार भरा सलाम सुनने वालों को और स्टेज पर जितने दोस्त मौजूद है जी हरत माशाल्लाह तो अभी अगर आई डोंट नो कि आपने मेरी गुफ्तगू सुनी है या नहीं इस्लामिक लिबर जम के ऊपर बात हो रही
(22:54) थी जी जी तो वो एक इस्लाह नहीं लच है मार्केट में तो हमने सोचा कि उसका इवेलुएशन करें आपको अगर इस पर कुछ कहना हो तो दो मिनट आप बात करें मैं जरा सा सेटिंग कुछ जी जी जरूर मेरे ख्याल से हजरत जो मैं सुन पाया हूं तो उससे हमारी जो गांव में पुरानी उनको मासिया बोला करते थे या दादिया नानिया एक मिसाल दिया करती थी पंजाबी में कि मोया नहीं आकड़ तो मोया नहीं आकड़ मिसाल का मतलब य होता है कि मरा हुआ नहीं है बस थोड़ा सा अकड़ गया है तो जैसे इस्लामिक सेकुलरिज्म है वैसे ही यह नई टर्म है तो बस यह है कि यह रखा जा रहा है कि जी य इस बच्चे का नाम मैं
(23:41) रखूंगा यानी घर वालों में या मिया बीवी में लड़ाई य पड़ गई है कि इस बच्चे का नाम मैं रखूंगी अबू कहते हैं मैं रखूंगा भाई पहले तो यह कंफर्म होगा कि जो बच्चा है यह है हलाल का या यह कुछ और मामला है अभी तो मसला यह पड़ा हुआ है कि यह बच्चा हलाल का है या यह आउट ऑफ वेड लॉक कोई बच्चा पैदा हो गया है तो बजाय इसके कि इस चीज को डिस्कस किया जाता इस चीज के ऊपर शोर पड़ गया है कि बच्चे का नाम क्या रखा जाएगा तो दोनों खानदान इस पर झगड़ रहे हैं मैं इसकी सिर्फ इतनी मिसाल देना चाहूंगा बाकी हजरत माशाल्लाह आपने खुलकर जो फिलोसॉफिकली उसमें फ्लज है वो रख दिए हुए हैं मैं तो जटका सा बंता हूं
(24:25) माशाल्लाह आपने जितनी तहकीकी बात रखी है बेसिकली हजरत ये जो टर्मिनोलॉजी है कई लोग इनको हल्के में लेते हैं मैंने देखा है कि जो आजकल की यूथ है चूंकि मॉडर्निस्ट नहीं अनफॉर्चूनेटली कई लोगों को पता कई माशाल्लाह पढ़े लिखे हैं इसी तरीके से सेकुलरिज्म का बैकग्राउंड नहीं पता या लिबरलिज्म की बेसिस नहीं पता कि वोह फिलॉसफी कैसे डैमेज करती है तो इकबाल का अक्षर शेर हम पढ़ा करते हैं कि हमने सोचा था लाएगी फराग तालीम क्या खबर थी कि चला आएगा इल्हा भी साथ तो तालीम के शुगर कोटेड लि बादे में ओड़कर मुल्दा कुछ इलाहा को यूथ के मुंह में ठसा जाता है और स्पून किया जाता है जिसका नतीजा यह बनता है कि
(25:10) वह इतने सुन्न हो जाते जैसे अगर किसी बंदे को किडनैप करना हो तो उसको पहले बेहोश किया जाता है किसी बंदे का ऑपरेशन करना हो तो उसको पहले जो है वह क्या उसके लिए एक टर्म हजरत यूज होती है प्रॉपर एनेस्थीसिया यस एनेस्थीसिया जो है उसको किया जाता है वो अपना सेंसेस में से निकल जाए बिल्कुल ऐसे ही यूथ के साथ किया जाता है जब मॉडर्निस्ट जम की टर्म्स को कोट किया जाता है तालीम और एजुकेशन के नाम पर प्रोग्रेस के नाम पर और सोसाइटी की प्रोस्पेरिटी के नाम पर तो फिर होता यह है कि यूथ पहले उस कोर्ट की वजह से जिससे बेहोश किया जाता है उसकी वजह से सुन्न हो जाती है न्यूट्रलाइज हो जाती है और फिर आप जैसे चाहते हैं जिस
(25:55) किस्म की टर्मिनोलॉजी हो चाहे वो कुरान से इस्लाम से कितनी ही कांट्रडिक्ट क्यों ना करती हो या इवन सेल्फ कंटक्ट ही क्यों ना हो जैसे मान लीजिए सेकुलरिज्म को लिबरलिज्म के साथ अगर नथी किया जाए तो आपको पता चलेगा य इतनी सेल्फ एक्सट्रीमली सेल्फ कंटक्ट है कि आप इसका कोई हल नहीं पेश कर सकते तो कंपलीटली स्टेट के पास चली जाती है चीज तो यानी जिस तरह हमारे लोगों को डिटेल्स की जानकारी होना जरूरी है वैसे ही टर्म्स कैसे काम करती है इनकी जानकारी होना जरूरी है क्योंकि मेरी में मैं खुद चक तकी के उन जो है ना बिया बानों के अंदर घूमा हूं
(26:34) तो उसकी जो बुनियादी वजह जो मुझे समझ आई ना जो मैंने चोड़ निकाल के समझाऊ इस्तल हात की ना समझ आना और जब मैं कह रहा हूं इस्तल हात की ना समझ आना तो यह रिस्पेक्टिव रिलीजस टर्मिनोलॉजी हो या यह आपकी जो मॉडर्न टर्मिनोलॉजी है दोनों इन दोनों टर्मिनोलॉजी का कमा हक इफ हाम या उसकी अंडरस्टैंडिंग ना होना आमतौर पर हमारे यूथ को गलतफहमियां का शिकार करती है है जिससे फिर आप जहां चाहे निकल सकते हैं फारसी का शायर कहता है कि खते अव्वल मीन हद मी मर कज ता सुरैया मरवत दीवार कज पहली ईंट अगर टेढ़ी हो तो फिर इमारत कितनी ही खूबसूरत क्यों ना हो वो टेढ़ी ही रहेगी तो इसलिए यूथ को मैं आपकी इस गुफ्तगू के बाद
(27:15) यह तवज्जो दिलाना चाहता हूं कि क्यों जो इस वक्त मॉडर्निस्ट मम को या सेकुलरिज्म से भिड़ हुए उलमा है वो टर्मिनोलॉजी के ऊपर क्यों जोर देते हुए दिखाई देते हैं और क्यों इसकी गलती को निशानदेही करते हैं ताकि वो पहली ईट बुनियादी तौर पर ठीक रखी जा सके जिससे हमारी आने वाली नस्लें खता की तरफ पलटेगी या फिर बेहतरी की तरफ जाएंगी बहुत शुक्रिया जबरदस्त पॉइंट माशा अल्लाह अच्छा हजरत एक बात इसमें यह भी नोट करने वाली है कि वैसे तो आप लोगों ने जो बात की है सारी बात आ गई लेकिन एक अहम बात यह है कि जो लोग इस्लामिक सेकुलरिज्म को आज की डेट में जो है वैलिड करार देने की
(27:52) कोशिश कर रहे हैं आप देखेंगे उनके जो फॉलोअर्स है कहीं ना कहीं वो उनसे यह सुनना चाहते हैं ये उनको एक खुश करने का हो भी सकता है या अगर इस चीज से वो ना करें क्योंकि ज्यादा करके उनके जो फॉलोअर्स हैं उनको जो देखने वाले हैं वो मॉडर्न एज के ही लड़के हैं ज्यादा करके जो इस चीज की तरफ जल्दी से जो है झुक जाते हैं हां चलो इसमें हमारा कोई है हमारे लिए मुसलमान रहते हुए भी हमारे लिए इन सब चीजों की आजादी है कोई ना कोई हमें इस बात की जो है सपोर्ट कर रहा है क्योंकि वो एक यूट्यू अच्छे खासे हैं चैनल से भी बड़े हैं तो उनके पास एक
(28:28) लोगों को दिखाने के लिए वैलिड वो मिल जाता है कि हां भाई देखें यह तो इस चीज की जो है ताई करते हैं तो इससे उलमा को भी बदनाम करने के लिए उन्हे पॉसिबिलिटी है मैं समझता हूं कि असल जो हमारा मुद्दा है वो यह है कि चाहे कोई भी किसी भी लेवल के ऊपर काम कर रहा हो अगर वह दीन के नाम से काम कर रहा है तो फिर वह दीन का ही काम करे और दीन का नाम लेकर और दीन की बातें बयान करे और उन्हीं उसी की तलात इस्तेमाल करे तो उसी में खैर है बाकी वरना फिर कंफ्यूजन कंफ्यूजन है अच्छा हजरत मैं सिर्फ एक चीज का इजाफा य बड़ा कीमती होगा जी इतना आप
(29:03) इजाफा करें मैं जो है लिंक शेयर कर रहा हूं और गुजारिश कर रहा हूं अपने अहबाब से के पहले गैर मुस्लिमों को मौका दे और इंशाल्लाह फिर आप लोग आ जाइएगा तो अभी लोग जो है बिल्कुल इंतजार में बैठे जैसे लिंक आएगा फौरन तो बिल्कुल आप इंतजार जरूर करें लेकिन पहले गैर मुस्लिमों को मौका दीजिए जी गोर आमिर भाई जी अच्छा क्योंकि जो गुफ्तगू हजरत आपने की इस्लाह के हवाले से या जो मैंने भी उसमें इजाफा किया या दीगर भाई ने भी तो क्योंकि हमारे आजकल के जो लोग हैं उनको यह बताया गया है और बड़ी अच्छी बात है और यह तहकीक का एक दरवाजा खोलती है कि जी हर चीज जो है उसको कुरान और सुन्ना की बेस पर परखा जाए तो मैं एक
(29:41) दलील पेश करने लगा हूं कि कुरान इतना एहतमाम करता है इतना एहतियात बरता है इस्तं के इस्तेमाल के ऊपर ताकि किसी को यह शक और शुबा ना रहे कि इस्लाह की जो इस्लाह कराई जा रही है या इस्लाह पर जो तन कीद की जा रही है वो शायद कोई जबाती या कोई जोना अपना जाती कोई उसमें लत है सूर अल हुजरात है आयत नंबर है 14 य बड़ गौर से सुननी है आत नौजवानों जो हमारे खास तौर पर ट्रथ लव है तो सर अल हुजरात और आयत नंबर है 14 अला ला फरमाता राब आमना आराब ने कहा हम ईमान लाए कुल नबी तुम इन सलाह करवा दो लम तुमन तुम ईमान नहीं लाए लाकन कलमना यह मत कहो आमना बल्कि यह कहो कि असलम ना क्यों यह इस्लाह क्यों इन पर ठीक
(30:42) नहीं बैठती ईमान की और क्यों उनको यह कहना है कि हम इस्लाम लाए लमा य मान क्योंकि ईमान तुम्हारे दिलों में अभी जगह किया ही नहीं है इससे पता चलता है कुरान की इस आयत से कि कुरान इतना तमाम और इतनी एहतियात करता है लाहो के इस्तेमाल पर कि अगर कोई शख्स जिसके दिल में ईमान ने जड़ ना पकड़ी हो अगर वो यह मुंह से बोलना शुरू कर दे ना कि मैं ईमान ले आया हूं तो अल्लाह के नबी पाक सलम को आयत में हुकम दे दिया जाता है कि इनको कहो यह मत कहो कि तुम ईमान लेक आए बल्कि को इस्लाम लेकर आए कैसे मुमकिन है कि जो ईमा नियाद की बुनियाद में कुरान इतना एहतमाम और एहतियात
(31:20) करता हो वो इसके इतबा पर और इसकी तनज के हवाले से सुस्ती और काहिली करते हुए किसी किस्म की भी ऐसी इस्लाह को गडम करता हो जिसके बारे में खुद कुरान यह तबी करता है के लिमा तल बसल ह बिल बातिल हक और बातिल का इत बास क्यों कर करते हो इस तरह ना करो बहुत शुक्रिया जला
Table of Contents
Slug: islamic-libertarianism-sahi-ya-galat
Introduction: Aaj kal kai log Islam ko modern ideologies ke sath mix karke naye lafzon ka istimaal kar rahe hain jaise “Islamic Libertarianism”. Kya yeh mumkin hai ke Islam me liberal aur libertarian values integrate ki jaa sakti hain? Mufti Yasir Nadeem Al Wajidi ne is khatarnaak confusion ka ilmi taur par rada kiya.
🔥 Objection:
“Islamic Libertarianism” ek naya concept hai jiska matlab hai ke Islam me bhi har shakhs ko freedom of choice, freedom of speech, aur religion ka right hona chahiye jaise libertarian societies me hota hai. Sahil Adeem jaise log kehte hain ke Islam me bhi personal liberty honi chahiye, lekin unki niyyat ke bawajood unka idea logon me confusion paida kar raha hai.
📌 Logical Fallacy:
False Equivalence – Secular ya libertarian societies ke concepts ko Islam ke unique theocratic model ke sath compare karna.
Appeal to Modernity – Kehna ke agar koi cheez modern hai to woh automatically Islam se compatible hai.
🧠 Ghalat Fehmi:
Log samajhte hain ke Islam har daur ke saath chalne wala deen hai to har ideology ko Islam me daakhil kiya ja sakta hai. Magar asal confusion yahaan paida hoti hai jab log western terminologies ka superficial tarjuma Islam pe thopte hain.
✅ Islamic Response (Mufti Yasir ka Jawaab):
📍 1. Islam aur Libertarianism ke Bunyadi Tanaquzat
- Libertarianism ke core principles hain:
- Freedom of association
- Freedom of religion
- Freedom of speech
- Freedom of sexual choice
Islam in tamam cheezon ko ek mahadood aur sharai daayre me qabool karta hai. Misal ke taur par:
- Freedom of Association: Ek Muslim Islamic state me deen badal nahi sakta. Irtidad ki saza Quran o Sunnat se sabit hai.
- Freedom of Speech: Islam me kisi bhi Nabi, Quran ya Allah ki tauheen ki ijaazat nahi.
- Freedom of Choice: Zina, gender switching ya same-sex relationships Islam me hamesha haram raheinge.
📍 2. Islamic Libertarianism ya Islamic Riba?
Mufti Yasir ne ek misaal di ke jaise kisi ne “Islamic Interest” ka lafz ghada tha (sood ko halal karne ke liye), waise hi “Islamic Libertarianism” bhi ek contradiction hai. Islam me har cheez ka aik sharai scale hota hai. Aap har ideology ko “Islamic” label de kar usko Islam nahi bana sakte.
💡 Kya Sirf Niyyat Kafi Hai?
Mufti Yasir ne wazeh kiya ke agar kisi ki niyyat theek bhi ho, lekin agar uski soch logon ko gumrah kar rahi hai to us par tanqeed wajib hai. Dini concepts ko vague aur modern lafzon me pesh karna shari confusion ka sabab banta hai.
🛑 Mufti Yasir ka Warning:
“Islam ek mukammal nizaam hai. Agar aap modern ideologies ko Islam pe impose karenge to log confuse ho jaayenge. Clarity of concept Islam ki bunyad hai.”
❓ FAQs:
Q1: Kya Islam personal liberty ko recognize karta hai?
A1: Haan, lekin sharai hudood ke andar. Islam me azaadi ka matlab hai Allah ki ita’at me zindagi guzarni.
Q2: Kya secular democracy Islam ke sath compatible hai?
A2: Nahin. Islam me hukum sirf Allah ka hota hai. Democratic majority rule Islam ka model nahi hai.
Q3: Kya koi Muslim apna religion badal sakta hai?
A3: Islamic state me irtidad (apostasy) ki saza hoti hai. Islam ek serious contract hai, game nahi.
Q4: Kya Islamic libertarianism ek valid concept hai?
A4: Nahin. Yeh contradictory term hai, jaise “Islamic Kufr” ya “Islamic Zina”.