Allah Ka Tasawwur Islam Mein: Aql, Fitrah aur Logic Ka Behtareen Ijtima

Agar aap kisi se poochein ke “Khuda kaisa hota hai?”, to jawabat mein ya to tasveerain milengi, ya phir contradiction. Magar Islam ka tasawwur-e-Khuda sab se distinct aur logically consistent hai. Yahaan na sirf Allah ki zaat ko samjhaya gaya hai, balki uski sifat ka bhi aql-o-dalil ke zariye izhar kiya gaya hai.

Is maqale mein hum samjhayenge ke Islam ka concept of God kis tarah universal, shape-less, timeless, aur infinite hai – aur ye kaise human fitrah, logic, aur science dono ke saath compatible hai.



Transcript: (00:03) वल कुरा मजी बल जा म [संगीत] कार र [संगीत] अच्छा मु साब मेरा एक क्वेश्चन पिछली बार था आपसे जी जो कांसेप्ट ऑफ गाग इस्लाम का है वो एक्चुअल में है क्या अगर आप तफसील से बताए या जो भी इसके ऊपर रोशनी डालना चाहे मैं मैं आपसे जानना चाह रहा हूं देखि कांसेप्ट ऑफ गॉड इस्लाम में बहुत ही वाज और बड़ा ही क्लियर है और वह यह है कि एक खुदा है और व खुदा ओमनिपोटेंट है इंफिनिट है उसको आप किसी भी सूरत में किसी शेप और शक्ल में आप उसको इमेजिन नहीं कर सकते इसी तरीके से वह कादर

(01:10) मुतलू मल ऑटोनोमस और मुकम्मल उसके पास ताकत है कि जिसको कोई किसी भी लिमिटेशन के साथ आप उसको यानी उसको लिमिट नहीं किया जा सकता कि उस इतनी ताकत है उतनी नहीं है तो यह उसकी एक जात है जात का मतलब वो एक बीइंग है और उसकी बहुत सी सिफात है यानी क्वालिटीज है और वो क्वालिटीज वो है जिसकी जितनी भी क्वालिटीज है वो सारी की सारी नोबल है तो यह एक मुख्तसर सा कांसेप्ट ऑफ गॉड है इस्लाम में इस इसमें अगर कोई इशू है तो व बताए अच्छा यह तो आपने बताया और जैसे कायनात बनी है तो उसने कैसे बनाई क्यों करके बनाई और जब जैसे कयामत का कांसेप्ट एक आता है तो उसके बाद क्या होता

(01:53) है मतलब यह पूरी की पूरी सृष्टि के चलने का क्रम वो क्या है किस तरह से है देखि य सवाल कभी भी इरेलीवेंट हो जाता है जब भी आप यह सवाल मजहब से करते हैं किसी भी रिलीजन से करते हैं कि उसका प्रोसेस क्या है रिलीजन कभी भी प्रोसेस को बयान नहीं करता और जो रिलीजन प्रोसेस को बयान करता है तो बहुत ही लिमिटेड अंदाज में बयान करता है लोगों की तवज्जो इधर हो इसलिए मुकम्मल डिटेल वो बयान नहीं करता है यह काम इंसानी अकल का है वह साइंस का है कि व यह डिटरमिन करे कि उसका प्रोसेस क्या है क्रिएशन का प्रोसेस क्या है ये कैसे का कभी भी जवाब रिलीजन की तरफ से आपको मिलेगा

(02:30) ना आपको एक्सपेक्ट करना चाहिए इल्ला यह के चंद पॉइंट जो है वो हाईलाइट कर दिए जाए हां क्यों का जवाब आपको रिलीजन जरूर देता है और यह क्यों और कैसे का लोग फर्क नहीं करते हैं व वो क्यों को जाने बगैर वो कहते हैं कैसे हुआ तो आप आप सवाल ही गलत जगह कर रहे हैं ना जिस तरीके से साइंस कभी भी क्यों का जवाब नहीं दे सकती है वो कैसे का जवाब देगी सास की बात नहीं कर रहा हूं मैं बता रहा आई नो आई नो मैं मैं सिर्फ कंपेरिजन के लिए ताकि बात वजहत हो जाए बात की कि साइंस क्यों का जवाब नहीं देती है कैसे का देती है मजहब क्यों का जवाब देता

(03:05) है कैसे का नहीं देता है हां अब यह है कि भाई खुदा ने क्यों बनाया तो उसमें उसकी जकीर बहुत सारी हिकमत उसमें एक हिकमत कि जिसका उसने खुद इजहार किया है कुरान करीम में वो यह कि उसने अपनी बंदगी के लिए इंसानियत को बनाया है कि लोग उसकी बंदगी करें और उसकी सिफत बहुत सारी सिफत हैं उसमें एक सिफत अदल है इंसाफ है जस्टिस है उसका इजहार हो सिफत तो पहले से मौजूद है उसका इजहार हो कि जब इंसानियत बनेगी इंसानियत में कुछ लोग अच्छे होंगे कुछ लोग बुरे होंगे तो जाहिर सी बात है के फिर इंसाफ की जरूरत पड़ेगी इंसाफ की जरूरत जब पड़ेगी तो तभी उसकी सिफत का इजहार होगा ये

(03:44) मुख्तसर आप समझ ले क्यों का जवाब नहीं मु साहब यहां पर क्वेश्चन ये आता है कि खुदा को या जो ऑलमाइटी गाग है उसको आपके परिस्थिति की जरूरत क्यों करके उसे भला सद की क्या जरूरत है यह तो यह सवाल मेरे ख्याल से आपका मेरा पहले भी हो चुका है लिब एक डेढ़ साल पहले मुझे याद आ रहा है मैंने उस वक्त भी य कहा था कि खुदा को सुन लीजिए मैंने उस वत य कहा था कि खुदा को जरूरत नहीं है ये खुदा की सिफात का अगर इजहार हो रहा है किसी की सिफत का अगर इजहार हो रहा है सिफात का मतलब नहीं समझ पा रहा हूं का मतलब है क्वालिटी मेरी अगर किसी क्वालिटी का मेनिफेस्टेशन कहीं

(04:29) हो रहा मेरी का इजार हो रहा है उसका मतलब ये नहीं कि वो मुझे जरूरत है ठीक है मान लीजिए मान लीजिए आपने मुझे देखा कि मैं कहीं चला जा रहा हूं और मेरी शक्लो सूरत से आपने अंदाजा लगाया कि भाई फला कम्युनिटी का या फला कबीले का आदमी है पढ़ा लिखा है जो भी आपने जो भी अंदाजा लगाया यह मेरी सिफात है मेरा अपीयरेंस है राट तो अब ये मेरी जरूरत नहीं है मेरी जरूरत की वजह से इसका इजार हो रहा है मे अंदर एक क्वालिटी क्वालिटी का इजहार हो गया ये एक छोटी सी मिसाल मैंने जो बिल्कुल बच्चों को दी जा सकती है मैंने वो आपको मिसाल दी है तो खुदा की किसी

(05:06) क्वालिटी का अगर इजहार और मेनिफेस्टेशन हो रहा है तो ये खुदा की जरूरत नहीं है उसके पास क्वालिटीज है तो क्वालिटीज का इजहार होगा डेफिनेटली होगा वो तो आभ ससी बात है और जहां तक ईमान की बात आती है कि जब तक हम ईमान नहीं लाएंगे तब तक हम मुसलमान नहीं है यानी मुसलमान बनने की पहली शर्त ये है कि हम उसकी जात का ईमान लाए सर ईमान लाने का जो प्रोसेस है वो यकीन तो तब आएगा ना जब हम उसके बारे में जानेंगे जितनी अकल उसने हमें दी हैक ये आपने गौर किया होगा मतलब मनुष्य की फितरत है कि वो किसी चीज को यूं ही नहीं मान लेता है बिल्कुल सही बात है जितनी अ व जी वो

(05:42) चाहेगा उसके बारे में जानना एक छोटी सी चीज लेते तो उसको जान करके परक करके तब लेते हैं तो जब हम खुदा की बात करते हैं उसकी कायनात की बात करते हैं तो निश्चित रूप से हम उसके बारे में जानना चाहेंगे बकुल और हमारे सनातन धर्म में इसी को अथातो ब्रह्म जिज्ञासा कहा जाता है जब वेदांत दर्शन में आप जाएंगे तो कहता है कि जानने वाली जो चीज है वो खुदा की जात है सही मतलब ईश्वर को समझना ही मनुष्य के जीवन का एक मात्र उद्देश्य है ठीक है ठीक है हम जब तक वो उसको समझेगा नहीं तब तक उसका यकीन पक्का नहीं होगा बिल्कुल और और जैसे अच्छा उसके हर क्षेत्र में तो उसकी

(06:16) बुद्धि की एक लिमिटेशन हो सकती है लेकिन जब वो खुदा को जानने की राह में आगे बढ़ता है तो उसकी कोई लिमिटेशन नहीं है ठीक वो जजों मतलब अपनी शक्तियों को जजों उसके करीब लेके च लगाता चला जाएगा त्यों त्य सिफात उसकी बढ़ती चली जाएंगी नहीं यही गलत यही वो जगह है जहां आपने गलती कर दी है या उस आइडियो जीी ने गलती कर दी है जिसके बारे में आप बात लगता मुझे लगता है मैं शब्दों का मैं दोबारा अपनी बात कहता हूं मेरे कहने का अभिप्राय ये है कि कोई भी कोई मनुष्य अगर ब्रह्म की जिज्ञासा करता है और जैसे जैसे उस रा में आगे बढ़ता है और जैसे जैसे उसको गेन करता चला जाता

(06:48) है उसकी क्षमताएं और बढ़ती चली जाती है और और भी अधिक जो है अपने रब के नजदीक होता चला जाता है हा इसमें को य उस जी मतलब होता है ना कि मतलब अच्छा वो वह उतना ही जानता है जितनी उसकी मतलब रहमत होती है उसके ऊपर ईश्वर की जितनी अनुकंपा उसको मिलती है उतनी ही व मतलब उसकी लगन और बढ़ती चली जाती है अब अगर इस चीज को हम इस्लाम में देखें अगर कोई व्यक्ति जानना चाहता है खुदा को या उसकी कायनात के बारे में तो उसके पास क्या जरिए हैं और जहां तक मेरा अपना रिसर्च कहता है कि कुरान से ही उसको समझा जा सकता है उसको जाना जा सकता है जैसे मैं यकीन लाना चाह रहा हूं मान

(07:22) लीजिए अगर मैं मुसलमान बनना चाहूं या मैं खुदा की इबादत करना चाहूं तो मुझे इस बात में कोई मसला नहीं है कि इस पूरी नाथ को किसी ना किसी क्रिएटर ने बनाया है वो एक है मुझे इसमें भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि हमारे भी कहा जाता है कि एक को हम द्वितीयो ना ब्रह्मम सत्य जगत मिथ्या एक मैं ही हूं दूसरा कोई नहीं है ठीक अच्छा यहां तक कोई दिक्कत नहीं है सर लेकिन अगर हम इसके बारे में जानना चाहे कुरान क्या कहता है कुरान की वो कौन सी वर्सेज है जो खुदा की सिफात को बताती है बयान करती है या मेरे मेरा मेरे पास वो सोर्स ऑफ नॉलेज क्या है जिससे मैं एक्चुअल में जान पाऊ कि

(07:55) हकीकत क्या है और तब मेरा ईमान पक्का हो आपने असल में इस बहुत मैं बड़ी सबर से तमल से आपकी बात सुनी इतनी देर तक आपने बात की लेकिन उसमें आपने बहुत सारी बातें करनी है यानी हर एक चीज का अलग अलग या बहुत सारी चीज जमा हो गई है आपने इसम ऑटोलॉजी भी जिक्र कर दी आपने उसम एपिस्टम जीी भी जिक्र कर दी उसमें बहुत सारी चीज जिक्र कर उसमें आपने स्पिरिचुअलिटी भी जिक्र कर दी रूहानियत भी आ गई सारे काम आ गए तो अब जाहिर है कि हर एक चीज को अलग करके बयान करना होगा ना आपने सबसे पहले यह कहा कि हमें खुदा के एक होने पर कोई तराज नहीं है च इ वेरी गुड अी बात य और आप एक पेज पर है

(08:31) आपने यह कहा कि खुदा को मानेंगे जब जब जानेंगे मानने के लिए जानना जरूरी है यहां पर भी मेरे और आप में कोई इलाफ नहीं है बिल्कुल हम दोनों सेम पेज पर है सवाल यहां पर ये होता है कि जानने का जरिया क्या है यहां यहां है अगर जानने का जरिया यह है कि नहीं जी मुझे दिखेगा तो मैं जानू वरना मैं नहीं जानू तो य ये ये गलत है यानी किसी चीज को जानने के लिए जरूरी नहीं कि आप उसको देखे ही तभी आप उसको जाने बल्कि बगैर देखे भी जाना जा सकता है और दुनिया में बहुत सारी चीजें हम बगैर देख जानते हैं 100% यकीन रखते हैं ठीक है तो उसम डिटेल में जाने की जरूरत नहीं है अगर आप इस उसूल

(09:06) पर मुझसे मुत है तो मैं आगे बढ क्या जानने के लिए देखना जरूरी कर रहा देखिए हमारी जो ज्ञान इंद्रिया है जी एग्री कर रहा हूं आपसे क्योंकि हमारे ज्ञान की सीमा है बहुत कुछ देख सकते सब कुछ देख सकते हम आगे बढ़ते जानने के लिए देखना जरूरी नहीं है हम बहुत सी दूसरी जरि के दूसरे तरीको से जान सकते हैं मसला अकल अकल के जरिए हम जान सकते हैं अब अकल अ खुदा ने हमें जितनी भी दी है उतनी सलाहियत उसने जरूर दी है उस अकल में कि हम खुदा को उतना जान सके जितना जानना हमारे लिए जरूरी है मसलन उसका मौजूद होना और उसकी क्वालिटीज जो वो क्वालिटीज जो उसने खुदा

(09:46) ने हमें बताई है मसलन कुरान करीम की जो सबसे मशहूर सूरत है जो बहुत से गैर मुस्लिमों को भी याद होगी और कम से कम उसका तर्जुमा जरूर याद है और वह है सूर इखलास उसमें अल्लाह ताला अपनी चंद क्वालिटी जिक्र करता है वो यह कहता कि एक तो एक है वो उसमें लने उसने इस्तेमाल किया लफ्ज अहद अहद का जो लफ्ज है वो दो चीजों के लिए आता है वो न्यूमेरिकल वननेस बयान करने के लिए नहीं आता न्यूमेरिकल वननेस बयान करने के लिए नहीं आता न्यूमेरिकल वननेस के लिए इस्तेमाल होता है वाहिद वाहिद का लफ्ज भी अल्लाह के लिए इस्तेमाल हुआ है लेकिन वाहिद का लफ्ज के साथ-साथ

(10:20) अहद का जो लफ्ज कुरान ने बयान कर दिया यह इसलिए बयान किया कि कुरान ये कह रहा है कि अल्लाह न्यूमेरिकली वन नहीं क्योंकि जो न्यूमेरिकली वन होगा वो फिर टू भी हो सकता है थ्री भी हो सकता है आप उसको मल्टीप्लाई कर सकते हैं डिवाइड कर सकते हैं अहद का मतलब ये है कि आप उसको ना डिवाइड कर सकते हो और जिस चीज को आप डिवाइड नहीं कर सकते तो ओबवियसली बात है कि उसके कंपोनेंट्स नहीं है क्योंकि जिसके कंपोनेंट्स होंगे उसके डिवाइड उसका डिवीजन होगा तो ना वो डिवाइड हो सकता ना वो मल्टीप्लाई हो सकता ना वो दो हो सकता ना वो तीन हो सकता ना वो

(10:46) आधा हो सकता वो बस एक है इसको बयान करने के लिए कुरान ने अहद का लफ्ज इस्तेमाल किया है अब जब वो डिवीजन नहीं एक्सेप्ट कर सकता मल्टीप्लाई आप उसको नहीं कर सकते तो ओबवियसली बात है कि उसका फिर आगे जो लफ्ज आया है वो है अ समद समद का मतलब है कि वो यकता होने के साथ-साथ वो फुल्ली इंडिपेंडेंट है वो किसी के ऊपर डिपेंडेंट नहीं है तो ना तो वो किसी मूरत के ऊपर ना वो किसी शेप के ऊपर ना किसी वो मैटर के ऊपर वो डिपेंड करता ही नहीं है तो वो नॉन मैटेरियलिस्टिक है वो शेप लेस है वो फॉर्मलेस है वो टाइमलेस है क्योंकि जितनी भी चीजें हैं ये सारी की सारी

(11:20) कंटिजेंट में के ऊपर कंटिजेंट वो मुकम्मल इंडिपेंडेंट है इसको समझने बयान कर दिया उसके बाद आगे लम यद वलम यूद भी आ गया कि लमद यूत का मतलब ये है कि भाई ना तो उसके औलाद है और ना ही उसके मां-बाप है इसका मतलब यह है कि खुदा किसी कैटेगरी का नाम नहीं है कि जिस कैटेगरी के अंदर बहुत सारे लोग हो खुदा किसी किसी टाइप का नाम नहीं है कि उस टाइप के तहत बहुत सारी चीजें हो बस खुदा एक ही है इस वननेस को बयान करने के लिए कुरान ने पूरी सूर इखलास नाजिल कर दी अब ये है कुरान जो खुदा के बारे में बयान कर रहा है अब सवाल यहां पर ये होता है कि क्या हम इसको लॉजिकली और रेशनल जो

(11:57) महदूद अकल लिमिटेड अकल खुदा ने हमें दी है उसके जरिए हम इसको सा कर सकते हैं इसमें से हर एक पॉइंट को अकली बुनियाद के ऊपर साबित किया जा सकता है एक लंबी गुफ्तगू इसके ऊपर हो सकती है एक पॉइंट को जी जी मैं चा आपने जो जिक्र किया कि भाई खुदा की इबादत आदमी करता रहेगा और खुदा के करीब होता रहेगा इसमें कोई शक नहीं है खुदा कुराने करीम में खुद कह रहा है व यह कहता है कि फरना य कहता है कि ने उनकी मगफिरत कर दी और बात चल रही है हजरत अयूब अ सला सलाम की उनकी स्टोरी चल रही है और यह कहा जा रहा है कि उन्होंने इतनी इबादत की उन्होंने खुदा के ताल्लुक

(12:40) से इतना गौर फिक्र किया इतना सबर किया इतनी बीमारियों और तकलीफों के बावजूद यहां तक के फना बल्कि नहीं हजरत सुलेमान अ सलाम का वाकया है मुझसे गलती हुई आगे यह है कि फिर हमारे नजदीक उनका एक मुकर्रर मकाम है यानी वो हमारे बहुत करीब है ल जुफा जुफा का मतलब है करीब वसन तो लफ्ज कुरबत यानी आपने कहा ना कि जितना आप खुदा में गौर करेंगे उतना खुदा के करीब होते जाएंगे तो इसी लफ्ज को जुल्फा को अल्लाह ताला ने इस्तेमाल किया इसी तरीके से एक दूसरी जगह है अल्लाह ताला फरमाता है के वकला वो ये कहता है कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद वो चीजें नहीं है कि जिनके

(13:26) जरिए तुम हमारे से करीब हो सको माल और औलाद के जरिए ताकत और पावर के जरिए या वेल्थ के जरिए तुम हमारे करीब नहीं आ सकते तुम हमारे करीब किस तरह आओगे इला दो काम करके ईमान लाकर और नेक अमल करके अच्छे कर्म अच्छे कर्मों का भी जिक्र है खाली ईमान ले और काम जो है वो दो टके के नहीं है तो वो भी खुदा के करीब नहीं होगा न के साथ साथ अमल जरूरी है तो खुदा के करीब होगा जो आपने जो बात कही है और मैंने जो बात कही दोनों में कोई फर्क नहीं है बहुत बहुत शुक्रिया आपका बहुत तफसील से बड़ी अच्छी जानकारी आपने दी अगली बार जब मैं आऊंगा तो यह रेफरेंस मुझे मिला

(13:59) बहुत-बहुत धन्यवाद उनका भी जिन्होंने दिया है पीडीएफ में इसको डाउनलोड करके फिर पढ़ूंगा अगली बार मैं आपसे ये जानना चाहता हूं कि खुदा के करीब जाने के रास्ते क्या है अभी आपने कहा ईमान लाना तो एक मसला है कि आप ईमान ले आए और दूसरी चीज है कि आप वो कर्म अमल भी करें जी वो अमल कौन-कौन से हैं जो खुदा के करीब बंदे को लेक आते हैं मैं इसके बारे में अगली बार आपसे जानना चाहूंगा बहुत-बहुत शुक्रिया मु साहब थैंक यू सो मच च विष्णु प्रभाकर साहब और यह रेफरेंस जो हैय मुफ्ती साहब की तरफ से नहीं मेरी तरफ से आया तो यह बात रखिएगा जी मैं मैं बहुत-बहुत धन्यवाद आपको देता हूं

(14:31) इसके लिए और उम्मीद है कि ये ऑथेंटिक होगा क्योंकि अब मैं इसको पढ़ूंगा और मेरे जो क्वेश्चन होंगे इसी सब्जेक्ट पर फिर मैं अगली बार मुफती साहब से इसम पूछूंगा चल जी ठीक है ओकेProphet SA Ne Baccho Ko Jannat Me Kese Dekha? – YouTube

Key Takeaways:

  • Islam ka Khuda wahid, la-sharik aur naqsha se azad hai – kisi shakl ya limit mein nahi aata.
  • Science “kaise” (how) ka jawab deti hai, jabke Islam “kyun” (why) ka – dono apni jagah par sahi.
  • Allah ki zaat aur uski sifaat logical taur par samjhi ja sakti hain, dekhna zaroori nahi.
  • Qur’an mein Allah ke bare mein bilkul clear aur rational taur par bayan kiya gaya hai.
  • Fitrah (natural disposition) insan ko naturally Allah ki taraf raaghib karti hai.

Allah Kaisa Hai? – Islamic Aqeedah Ki Asaas

Islam kehte hai: Allah ek hai – lekin ye “ek” numeric 1 nahi hai. Qur’an ne “Ahad” ka lafz istemal kiya, jo is baat ki dalil hai ke Allah kisi tareeke se divide ya multiply nahi ho sakta.

“Allah Ahad hai” ka matlab hai: woh na kisi qisam mein aata hai, na kisi qisam se nikala ja sakta hai.

Woh formless hai, timeless hai, aur independent hai. Qur’an ke mutabiq woh:

  • Kisi cheez par depend nahi karta (“As-Samad”)
  • Kisi se paida nahi hua, na kisi ko paida karta hai jis tarah insani silsila hota hai (“Lam yalid wa lam yoolad”)
  • Kisi cheez ka hissah nahi hai, aur na us jaise koi doosra hai (“Wa lam yakullahu kufuwan ahad”)

Allah Ko Dekhe Bina Kaise Maanein?

Yeh ek aam sawal hai: “Jab dekha nahi, to kaise yaqeen aaye?”
Lekin insani zindagi mein hum bohot si cheezon par bina dekhe yaqeen rakhte hain:

  • Gravity ko kabhi dekha hai? Nahi. Magar sab yaqeen rakhte hain.
  • Dimaagh ko kabhi dekha? Sirf effects dekhe – magar shak nahi karte.

Isi tarah, Allah ki zaat ko dekhna zaroori nahi, uske asaraat (effects) har taraf nazar aate hain. Creation khud Creator ka sab se bara saboot hai.

Aql ka kaam hai ke woh signs ko samjhe – har cheez ko dekhna hi laazmi nahi hota.


Kya Allah Ko Zarurat Thi Insaan Banane Ki?

Ye ek logical fallacy hoti hai – False Assumption Fallacy – jisme pehle yeh maan liya jata hai ke agar Allah ne insaan banaya to shayad usse koi kami thi, ya zarurat thi.

Islam kehte hai: Allah ko kisi cheez ki zarurat nahi. Balki:

  • Uski kuch sifaat (attributes) ka izhar sirf insani existence ke zariye hota hai.
  • Jaise: Adl (Justice) ka izhar tabhi ho sakta hai jab makhlooq ho jo ghalti bhi kar sake aur sach bhi.

“Manifestation of Attribute” ka matlab “zarurat” nahi hota.


Kya Islam Creation Ka Scientific Process Batata Hai?

Nahi. Islam creation ke “kyun” ka jawab deta hai – na ke “kaise” ka.

  • “Kaise banaya?” – ye science ka kaam hai.
  • “Kyun banaya?” – ye deen ka kaam hai.

Science batata hai: molecules kaise juday.
Islam batata hai: Allah ne kyun banaya.

Qur’an kehte hai:

“Maine insaan aur jin ko sirf apni ibadat ke liye paida kiya.” (Surah adh-Dhariyat: 56)


Allah Ko Jaanna Kyon Zaroori Hai?

Har insan ki fitrah hai ke woh “Jaanne” ki koshish karta hai.
Vedanta mein isse kehte hain: Brahm Jigyasa – yehi Islam kehte hai:

  • Jab tak Allah ki zaat ko samjho ge nahi, yaqeen nahi baithega.
  • Jab tak yaqeen nahi aayega, ibadat ikhlaas se nahi hogi.

Aur Allah ko jaanna possible hai – lekin limit ke andar. Jo hume samajhna laazmi hai, woh Qur’an aur Aql ke zariye samjha diya gaya hai.


Qur’an Kis Tarah Allah Ko Define Karta Hai?

Sab se mukhtasir aur complete summary Surah Ikhlas hai:

  1. Ahad – Naqsha aur limit se azad, unique
  2. As-Samad – Har cheez us par depend karti hai, woh kisi par nahi
  3. Lam yalid wa lam yoolad – Na paida kiya gaya, na kisi ka baap hai
  4. Wa lam yakullahu kufuwan ahad – Koi us jaisa nahi

Yeh sab aisi qualities hain jo kisi bhi insan, moorat ya universe ke hisse mein nahi aa sakti.


Kya Aql Se Allah Ko Samjha Ja Sakta Hai?

Bilkul. Allah ne har insan ko itni aql zaroor di hai ke woh uske wajood ko samajh sake.

Aql 3 tarah se Allah ki taraf dalil deti hai:

  1. Existence of Creation – Har cheez ek creator ki taraf ishara karti hai.
  2. Design & Order – Har cheez mein logic aur order ka hona kisi intelligent designer ki nishani hai.
  3. Fitrah – Har insan ka andar se ye maanna ke koi super-being hai.

Yeh dalail pure logical aur universal hain – sirf Islam ke liye nahi, balki har aqalmand ke liye.


Allah Se Qurbat Kaise Hasil Hoti Hai?

Islam kehte hai: Sirf maal ya aukaat se Allah ke qareeb nahi jaa sakte.

  • Allah Qur’an mein kehte hain: “Jo log imaan laate hain aur amal-e-salih karte hain, wohi hamare qareeb hotay hain.”

Yani:

  1. Iman – Allah ko tasleem karna
  2. Amal – Acchi zindagi guzarna, insaaf aur insaniyat ke sath

Zaroori nahi ke ibadat mein ghuss jao to hi qareeb ho. Amal bhi waise hi matter karta hai.


Natija

Islam ka tasawwur-e-Khuda ek unmatched combination hai logic, fitrah aur revelation ka. Yeh koi myth nahi, koi physical idol nahi, balke aik aisi zaat hai jo her cheez ka saboot aur sabab hai.

Agar hum Qur’an aur apni aql dono ka sahi istemal karein, to hume yeh tasawwur is qadar clear nazar aata hai ke shak ki gunjaish nahi rehti.

“Allah ko samajhne ka rasta har shakhs ke liye khula hai – bas fitrah, aql aur sachai ki talab honi chahiye.”


FAQs

Q: Kya Allah ko samajhne ke liye usse dekhna zaroori hai?
A: Nahi. Allah ko samajhne ke liye uske asar (effects) aur Qur’an mein uski sifat ko samajhna kaafi hai.

Q: Kya Islam ke Allah aur dusre religions ke God mein farq hai?
A: Ji haan. Islam ka Allah shape-less, time-less aur fully independent hai. Koi image ya idol nahi banaya ja sakta.

Q: Kya Allah ko samajhna sirf scholars ka kaam hai?
A: Nahi. Har shakhs ko jitni aql Allah ne di hai, usi se woh Allah ko utna samajh sakta hai – bas fitrah aur sincerity zaroori hai.

Q: Kya Allah ki sifaat Qur’an mein detail se batai gayi hain?
A: Bilkul. Qur’an mein Allah ki mukhtalif sifaat (names and attributes) detail ke sath aati hain. Jaise: Ahad, As-Samad, Aleem, Hakeem, etc.

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