Kya Islam Aaj Bhi Akhlaqi Imani Nizam Ka Behtareen Namuna Hai?

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Transcript: (00:02) अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाही व बरकात बिस्मिल्लाह रहमान रहीम अल्हम्दुलिल्लाह रब्बिल आलमीन वस् सलातो वसलाम आला सदल अंबिया वल मुरसलीन वाला आलीही वसही अजमान अम्मा बाद काल अल्ला ताला फी कलाम मजीद लाला ल नबी सल्लल्लाहु अलही वसल्लम अमाल आज हमारे मौजू का द प्राइम फीचर्स ऑफ इस्लाम यानी इस्लाम की बुनियादी खुसूसियत इस मौजू का आज हमारा दूसरा सेशन है और आज भी इसी सिलसिले को इंशाल्लाह कंटिन्यू करेंगे कि इस्लाम ने इस दुनिया को क्या दिया है और क्या दे सकता है तो इंशा अल्लाह मुझे उम्मीद है कि आप जहां तक के यह बात पहुंच सकती है आपके जरिए वहां तक पहुंचाएंगे और इतने लोग जुड़

(01:11) रहे हैं मैं एक चीज यह बताता चलूं कि मैंने जैसे कल भी कहा था कि बहुत से लोग शायद इस उसमें इंतजार में रहते होंगे कि मैं लिंक पब्लिक करूंगा लेकिन सूरत हाल य जिस वक्त आपकी रात होती है हमारा दिन होता नहीं हम रोजे में है और आपको पता ही है कि जब हम लिंक पब्लिक करते हैं तो एक से एक आता है उला कलम बल में से शरल बरिया में से तो अब इतनी हिम्मत नहीं होती है रोजे में कि उसके साथम चाकी की जाए तो इसलिए मैं लिंक पब्लिक नहीं कर रहा हूं लेकिन किसी दिन अगर ऐसा लगेगा कि लिंक पब्लिक कर दिया जाए तो इंशाल्लाह फिर गुफ्तगू भी करेंगे बला

(01:56) ताला तो अभी सवाल जवाब मकू रखें यह दिन यानी मैं चाहता हूं कि जो सेशंस है ये आप लोग इसके जरिए कुछ सीख ले हम भी सीखें आप भी सीखें जब सवाल जवाब होते हैं और स्ट्रीम तीन चार घंटे की होती है तो जो शुरू के जो आधा घंटा या 45 मिनट की गुफ्तगू है वो लॉस्ट हो जाती है यही वजह है कि फिर हम उसको काट कर अलग से लगाते हैं तो यह जरूरी है कि यह गुफ्तगू जैसी की तैसी वैसी ही रहे जैसी भी हो रही है वैसी ही रहे इसमें मजीद कोई सवाल और जवाब का पैबंद ना लगे तो शुरू करते हैं इंशा अल्लाह मैंने दो चीजें पढ़ी आपके सामने पहली चीज है आयत कुराने करीम की अल्लाह ताला फरमाता है रसूल अकरम सल्लल्लाहु अल

(02:45) वसल्लम को खिताब करके कि आप अजीम अखलाक पर फायज है यानी आप अखलाक यात का आला तरीन नमूना है आला तरीन स्टैंडर्ड है तो अगर किसी शख्स को यह जानना है कि अखलाक क्या होता है तो उसको रसूल अकरम सल्लल्लाहु अहि वसल्लम की जिंदगी से ही पता चल सकता है और दूसरी बात जो मैंने बताई है वह हदीस है रसूल अकरम सलाहु वसल्लम की आप फरमाते हैं के मुझे जो भेजा गया है मेरी जो बसत हुई है बस्तु वह दो मकसद के लिए हुई है नंबर वन ली उत मकारी मलाक ताकि मैं अच्छे अखलाक की तकल कर दूं और जो दूसरी बात आपने फर व यह कि व मसन आमाल और उ अच्छे आमाल अच्छे कामों की तकल कर

(03:37) द आप अली सलातो सलाम ने जो लफ्ज यहां पर इरशाद फरमाया है वह है ली उतमा तकल करना किसी चीज को कंप्लीट करना आप किस चीज को कंप्लीट करते हैं आप कंप्लीट उस चीज को करते हैं कि जिस चीज का वजूद पहले से है एक चीज पहले से है लेकिन एक इनफिट है या इनकंप्लीट है ना आप जाकर उसको मुकम्मल कर देते हैं उसको परफेक्ट कर देते हैं यह होता है तकल करना तो यह हदीस खुद बता रही है कि इस्लाम हरगिज यह दावा नहीं कर रहा है कि जो अखलाक इस्लाम ने पेश किए हैं इस्लाम से पहले किसी दूसरे धर्म या किसी दूसरे मजहब और दीन ने उन अखलाक यात को पेश नहीं किया उन मोरल वैल्यूज को पेश नहीं किया इस्लाम का

(04:25) हरगिज हरगिज यह दावा नहीं है इस्लाम का दावा क्या है मैं दो आयत आपके सामने मुख्तसर पढ़कर सुनाता हूं पहली आयत में आप अल सलातो सलाम को यह कहा गया कि आप यह कह दें कुल मा कुतु ब मिन रुसल रसूल अम सलम को हुकम दिया अल्लाह ताला ने कि आप यह कहिए कि मैं कोई पहला पैगंबर नहीं हूं लिहाज जो बातें मैं कह रहा हूं यह कोई अनोखी नहीं है मैं वही बातें कह रहा हूं जो मुझसे पहले अंबिया और रसूल कहते चले आए हैं हजरत आदम अली सला सलाम से लेकर रसूल अकरम सल्लल्लाहु अल वसल्लम तक दूसरी आयत में अल्लाह ताला कुरान को क्या कहता है कुरान के बारे में कहता है कि मुसद लीमा बनय मिनल किताब के कुरान उन

(05:10) किताबों की तस्दीक करता है कि जो किताबें इससे पहले नाजिल हो चुकी हैं यानी कुराने करीम तस्दीक करने वाला है तौरा की इंजील की जबूर की और इसके अलावा जो दूसरे आसमानी सही फे हैं कुरान उनकी तस्दीक करता है तस्दीक का मतलब यह है कि वह बातें जो उन सही फों में मौजूद हैं और जो वाकत अल्लाह की तरफ से आई है उनमें और कुरान की बात में कोई फर्क नहीं पाएंगे तो जब कुरान का यह दावा ही नहीं है कि हम कोई नई चीज लेकर आए हैं कुरान का दावा है परफेक्शन का और तकल का कि जो चीजें जिन चीजों की कमी रह गई थी हम उसकी तकल करने के लिए आए यह कुरान का दावा है तो इस्लाम की जो दूसरी

(05:53) खुसूसियत है व यह है कि अगर अच्छे अखलाक गुड मोरल वैल्यूज अगर आपको सीखनी है तो वह सिर्फ और सिर्फ और सिर्फ इस्लाम के जरिए ही सीखी जा सकती है यह आज के समझ लीजिए कि पूरे दर्स का खुलासा होगा हम यह नहीं कह रहे हैं कि हिंदू इजम में अखलाक यात की कोई बात नहीं है हम यह नहीं कह रहे हैं कि तौरा में यहूदी में या ईसाइयत में या किसी और मजहब में अखलाक यात और मोरालिटी की कोई बात नहीं है यह नहीं कहा जा रहा है उसकी वजह यह है कि अखलाक किसी ना किसी दर्जे में हर धर्म में और हर मजहब और दीन में होते हैं यहां तक कि जो शख्स कोई दीन नहीं मानता उसके भी कुछ ना कुछ अखलाकी उसूल होते हैं मुद भी किसी ना किसी

(06:39) अखलाकी उसूल का पाबंद होता है यह अलग बात है कि अखलाकी तबार से एक मुद और एक एथी निहायत पस दर्जे में होते हैं लेकिन फिर भी वह मुश के दबाव से या फैमिली के दबाव से कुछ अखलाकी उसूल की पाबंदी करते हैं तो हम यह हरगिज दावा नहीं कर रहे हैं कि दूसरी जगहों पर या दूसरी कमों में अखलाक यात नहीं पाए जाते हम यह कह रहे हैं कि अखलाक यात की तकल और उसको परफेक्शन तक ले जाने का काम रसूल अकरम सल्लल्लाहु अल वसल्लम के जिम्मे किया गया था और आप अल सलातो सलाम ने उस काम को बखूबी बहुस खूबी अंजाम दिया लेकिन अच्छे अखलाक को जानने से पहले

(07:23) यह जरूरी है कि आप बुरे अखलाक भी जाने कि बुरे अखलाक क्या है बहुत से लोग अखलाकी के बारे में सिर्फ ये समझते हैं कि आपने किसी के साथ हमदर्दी कर दी आपने किसी के को देखकर मुस्कुरा दिया सलाम कर दिया सलाम का जवाब दे दिया बस अब आप बहुत बा अखलाक है सिर्फ यही चीजें नहीं है बल्कि एक पूरा कांसेप्ट है अखलाक यात का मुझे उम्मीद है कि इंशा अल्लाह आप इस पूरे कांसेप्ट को आप आज अच्छी तरीके से समझ लेंगे तो अच्छे अखलाक को जानने से के लिए जरूरी है कि हम कुछ बुरे अखलाक को भी जाने एक उसूल है अ लॉजिक का मंतिख का बया इसका मतलब यह है कि बाज मर्तबा चीजें जब आप अपोजिट साइड दिखाते हैं तो आपकी

(08:09) साइड की जो चीज है वह क्लेरिटी के साथ लोगों के सामने आ जाती है यानी मैं इसकी अक्सर मिसाल दिया करता हूं कि लोगों को सूरज की या रोशनी की इंपॉर्टेंस उसी वक्त पता चलेगी जबक उनको अंधेरे का भी इल्म होगा अगर अंधेरा ही ना हो किसी की जिंदगी में तो उसको रोशनी के बारे में कभी भी उसकी अहमियत उसको पता नहीं चल सकती एक आदमी को अगर गुरबत का एहसास ना हो तो उसको अमीर होने की जो नेमत है उसका भी उसको एहसास नहीं होगा कि य कितनी बड़ी नेमत है एक आदमी के पास अगर बचपन से लेकर उसकी मौत तक उसको खाने की कभी परेशानी ना हुई हो तो खाने की किल्लत की क्या तकलीफ होती है फके

(08:50) की कैसी तकलीफ होती है उसको ऐसा इदराक नहीं हो सकता ऐसा एहसास नहीं हो सकता जो एहसास उस गरीब को होता है के जिसके जिसको यह फिक्र होती है रोजाना के रात की रोटी का इंतजाम कैसे होगा तो बाज मर्तबा जब दो अपोजिट साइड आती हैं तो चीजें और मामलात क्लियर होकर सामने आ जाते हैं तो इसलिए अच्छे अखलाक को जानने के लिए पहले बुरे अखलाक को समझना भी जरूरी है कि बुरे अखलाक क्या है बुरे अखलाक चार है और इसी तरीके से अच्छे अखलाक भी चार है यह चार दरअसल तमाम जो बुरे अखलाक है यह तमाम की तमाम बीमारियों की जड़ है ऐसे ही जो चार अच्छे अखलाक है वो तमाम की तमाम अच्छाइयों की जड़ है

(09:30) तो पहला बुरे अखलाक में जो पहली चीज है वह है जहालत अब देखि यहां पर मसला होता है कि लोग इन अल्फाज के वह माना लेते हैं कि जिनको वह अपने घरों में इस्तेमाल करते हैं मसलन आज के दौर में जहालत बाज लोगों के यहां इस चीज को समझा जाता है कि आपने अगर इंटर पास नहीं किया हाई स्कूल नहीं किया आप कॉलेज यूनिवर्सिटी नहीं गए तो आप जाहिल है लोग यह लोग यह समझते हैं जब हालत के माना जो टेक्निकल डेफिनेशन है यह नहीं है यह तो एक यानी इस दौर का एक निजाम है कि आप तालीम इस तरीके से और ये कॉलोनियल निजाम का हिस्सा है यानी अगर जब दुनिया में कॉलोनाइजेशन हुआ और सब तमाम के तमाम

(10:15) मुमा निक अक्सर मुमा वो यूरोप के गुलाम बने तो यूरोप ने एक एजुकेशन सिस्टम मुता कराया कि इस तरीके से स्कूल होगा फिर कॉलेज होगी कॉलेज होगा फिर उसके बाद यूनिवर्सिटी होगी और एक पूरा निजाम के हाई स्कूल इंटर उसके बाद ग्रेजुएशन फिर पोस्ट ग्रेजुएशन ऑल द वे पीएचडी और फिर पोस्ट डॉक वगैरह वगैरह ये पूरा एक कॉलोनियल निजाम है हम ये नहीं कह रहे कि ये गलत निजाम है यहां इसके सही या गलत होने की बात नहीं हो रही है यहां बात यह हो रही है कि जहालत को सिर्फ उस निजाम में हम लिमिट नहीं करते हैं उसमें उस निजाम में मुनसर नहीं करते हैं जहालत की डेफिनेशन क्या है जहालत की डेफिनेशन यह है कि अच्छी चीज को

(10:50) बुरा समझना और बुरी चीज को अच्छा समझना यह है जहालत इनकंप्लीट को कंप्लीट समझना नाकस को कामिल समझना और क कपलीट को कामिल को नाकस समझना इनकंप्लीट समझना यह है जहल अगर आप मान ले कि आपके पास एजुकेशन नहीं है तो उस एजुकेशन ना होने की वजह से बहुत सी मर्तबा लोग इनकंप्लीट को कंप्लीट या अच्छाई को बुराई और बुराई को अच्छाई समझते हैं इसलिए एजुकेशन जो फॉर्मल एजुकेशन है उसके ना होने को जहालत कह दिया जाता है वरना जहालत की असल डेफिनेशन यह है कि आप किसी अच्छी चीज को बुरा समझ रहे बुरे को अच्छा नाकस को कामिल कामिल को नाकस इनकंप्लीट को कंपलीट कंप्लीट को इनकंप्लीट उसकी मैं चंद मिसाले देता हूं

(11:33) मिसाले यह है के हर मजहब में मैंने कल इस मौजू के ऊपर बड़ी तफसील से गुफ्तगू की थी हर मजहब में तौहीद है लेकिन आप देखेंगे कि इस दुनिया में एक बहुत बड़ी तादाद ऐसी है कि जो तौहीद को बुरा समझती है वय कहती है कि यह क्या बात हुई हम ऐसे खुदा की कैसे इबादत करें कि जिसका कोई फोटो ना हो जो नजर ना आता हो जो जिसको हम छू ना सकते हो जिसको हम देख ना सकते हो मैंने अभी कुछ कुछ देर पहले चंद घंटों पहले ट्विटर पर एक ट्वीट की थी राम जी की मूर्ति के ताल्लुक से तो उसमें एक शख्स ने कमेंट किया ट्विटर पे के यानी गोया कि व ये समझ रहा है कि

(12:10) मैं हिंदुओं के भगवानों का या राम जी का मजाक उड़ा रहा हूं हालांकि राम जी का मजाक नहीं था और मैं कभी भी दूसरों के माबूद का मजाक नहीं उड़ाता हूं यह कुरान के खिलाफ है मेरा काम यह होता है क्रिटिसिजम के और थॉट प्रवोकिंग क्रिटिसिजम कि आप अपने जहन को इस्तेमाल करें हम राम जी के बारे में बात नहीं कर रहे बल्कि मूर्ति के बारे में बात कर रहे जिसको आप राम जी जिसको आप ये कह रहे कि राम जी की मूर्ति है यह जमीन आसमान का फर्क है तो खैर उस शख्स ने कमेंट में ये कहा के गोया कि वो मुसलमानों का मजाक उड़ा रहा है कि तुम देखो ऐसे खुदा की इबादत करते हो

(12:54) जिसका कोई फोटो भी नहीं फोटो दिखाओ खुदा का तो अब उसकी नजर में जिस आदमी ने कमेंट किया आई डोंट नो कौन है वो मेरे खल से 800 900 कमेंट है तो जिस शख्स ने यह कमेंट किया व यह समझ रहा है कि मैंने बहुत जबरदस्त आर्गुमेंट दे दिया क्या कहने मैंने तो मैदान मार लिया हालांकि यही जहालत है चूंकि आप एक कामिल को नाकस समझ रहे हैं कामिल वह है कि जो शेप स हो फॉर्मलेस हो टाइमलेस हो स्पेस लेस हो जो बियोंड इन तमाम चीज के बियोंड हो इन तमाम चीजों के वरा हो जो इंसानी जज्बात इमोशन से मावरा हो इन सब चीजों के बियोंड हो और इसके बावजूद वह कादिर मुतलू व अल अलीम हो हर चीज जानने वाला हो

(13:44) इसके बावजूद वो अल हकीम हो मुकम्मल हिकमत वाला हो तो वह कामिल है अब जाहिर है कि जो शेप स है फॉर्मलेस है उसका कोई फोटो नहीं होगा लेकिन जिसका फोटो होगा वो शेप स और फॉर्मलेस नहीं होगा खुदा का फॉर्म और शेप होना यह उसके नाकस होने की दलील है उसका शेप लेस होना और फॉर्म लेस होना य उसके कामिल होने की दलील है तो अब अगर आपने कामिल को नाकस मान लिया और ये कहा कि भा यह क्या बात हुई कि खुदा का फोटो ही नहीं है तो इसका मतलब यह कि आप जहालत में गिरफ्तार हैं यह जो इस्लाम से पहले वक्त को दौरे जाहिल अत कहा जाता था क्यों दौरे जाहिल कहा जाता था क्या इसलिए दौरे जाहिल कहा जाता था कि लोगों को पढ़ना नहीं आता था

(14:23) नहीं बहुत से लोग प पढ़ना जानते थे बहुत से लोग ना सिर्फ ये कि अरबी जानते थे बल्कि इब्रानी भी जानते थे मक्के में रहने वाले वरका बिन नौ फिल दूसरी जमाने जानते थे दूसरी किताबें पढ़ते थे लेकिन दौरे जाहिल उसको क्यों कहा जाता था उसकी वजह यही है कि आम जो परसेप्शन था उस दौर में वो ये वो ये था कि भाई खुदा तो वोह है कि जिसकी मूर्ति हो तो जिसकी मूर्ति होगी वह नाकस होगा तो आपने कामिल को नाकस कर दिया यही जहालत है तो यह जहल की डेफिनेशन है इसी तरीके से इंसान आज के दौर में खुसूस कोलाइजन के बाद से हम एक ऐसे निजाम में गिरफ्तार हैं कि जो इंसानों का बनाया हुआ है जिसको आप

(15:07) सेकुलरिज्म कह ले डेमोक्रेसी कह ले अब वो चक मुसल्लत कर दिया गया है पूरी दुनिया के ऊपर तो अब लोग उसको झेल रहे हैं लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है कि लोग इस निजाम से खुश हो यह इंसानों के बनाए हुए निजाम है व सेकुलरिज्म क्रेसी हो के लिबरलिज्म हो के कैपिटल जम हो कि सोशलिज्म हो जितने भी इम है य इंसानों के बनाए हुए हैं और जिन लोग लोग ने ये निजाम दिए हैं उन्होंने इंसानों को इन निजाम के जरिए अपना गुलाम बना रखा है आप कैपिटल सोसाइटीज में देख ले कि कैपिट जम क्या है कैपिट जम दरअसल एक ऐसा निजाम है कि जो कुछ बिलियनर्स के लिए काम

(15:43) करता है दुनिया में चंद बिलियनर्स है 100 200 होंगे और इन 100 200 बिलियनर्स ने पूरी दुनिया को गुलाम बनाया हुआ है आप कपड़े पहनेंगे तो इन्हीं की फैक्ट्रियों के बनाए हुए आप अगर खाना खाएंगे तो इन्हीं की दुकानों में जो बिक रहा है वो खाना खाएंगे आप हर चीज जो भी करेंगे आप जिंदगी का हर स्टेप आप कहीं ना कहीं इन बिलियनर्स को फायदा पहुंचा रहे हैं दुनिया में जंगे होती है तो इन बिलियनर्स की इजाजत से होती है उनके मकसद को पूरा करने के लिए होती है दुनिया में जो जंगे मुसल्लत की जाती हैं वह सिर्फ जिओ पॉलिटिक्स नहीं होती बल्कि उसके पीछे इकोनॉमिक्स भी होती है उसके नीचे उसके

(16:16) पीछे फाइनेंशियल नीड्स होती है अगर जंगे नहीं होंगी तो हथियार कैसे बिकेगा हथियार नहीं बिकेगा तो अमेरिका में बैठे हुए बड़े-बड़े जो बिजनेसमैन है जो हथियारों में पैसा लगाए हुए हैं उनका बिजनेस कैसे चलेगा तो दुनिया को मगरिब मगरिब को मालूम है कि हमें दहशतगर्दी चाहिए तो हमें दहशत गर्द क्रिएट करने हैं ताकि दहशतगर्दी होगी तो जिओ पॉलिटिकल इशू होंगे जि पॉलिटिकल इशू होंगे तो जंगे होंगी जंगे होगी तो हमारा हथियार बिकेगा यह है कैपिटल सोसाइटी यह इंसान का बनाया हुआ निजाम है और इंसान इन इंसानी निजाम का गुलाम बन गया और इसको

(16:48) अच्छा समझ रहा है खुदाई निजाम जो जिसको हम डिवाइन लॉ कहते हैं खुदाई निजाम उसको बुरा समझता है आप आज की ताजा जो सूरत हाल है वो देख ले के अस्तान में कैपिटल जम नहीं है सोशलिज्म नहीं है कम्युनिज्म नहीं है लिबरलिज्म नहीं है वहा सेकुलरिज्म क्रेसी नहीं है वहां इस तरह की कोई चीज नहीं है कोई बीमारी नहीं है वहां यह कोशिश की जा रही है मैं यह नहीं कह रहा हूं कि खुदाई निजाम इन एब्सलूट मैनर वहां पर मौजूद है मैं य हरगिज दावा नहीं कर रहा मुझे नहीं मालूम लेकिन बजहर जो मीडिया की रिपोर्ट उसे लगता है कि वहा यह कोशिश की जा रही है के खुदाई निजाम इस्लामी निजाम को नाफिया

(17:24) जाए पूरी दुनिया के पेट में दर्द है क्यों इसलिए कि उन्होंने अपने ने बनाए हुए निजाम को कि जिसके जरिए वह इंसान को कंट्रोल कर सकते हैं वह उसको बेहतर समझते हैं और खुदाई निजाम को कि जिसके जरिए एक इंसान दूसरे इंसान को कंट्रोल नहीं कर सकता उसको व बुरा समझते हैं यही जहालत है तो यह जहालत की चंद मिसाले हैं कि जिसमें इस वक्त दुनिया गिरफ्तार है यह है और एक एक दो मिसाले और ले ले मिसाल के तौर पर लोग खुदा के अवतार या पैगंबरों के अवतार मान लेते हैं तो हजरत ईसा अली सलातो वसलाम को पैगंबर अल्लाह का बेटा और राम जी को और कृष्णा जी को और कितने सारे इन लोगों के अवतार हैं उनको खुदा का अवतार मान लिया कि खुदा उनमें लूल करके इस दुनिया के अंदर

(18:13) आया है तो कामिल को उन्होंने नाकस मान लिया और वो इस तरीके से कि यह दुनिया मानती है जो लोग राम जी की पूजा करते हैं आप उनसे पूछे कि राम जी पैदा हुए थे जी हुए थे क्या उनका इंतकाल हुआ था बिल्कुल हुआ था वो खाना खाते थे बिल्कुल खाते थे तो जो आदमी खाना खाए पानी पिए कजा हाजत करे वह पैदा हो व मरे वो दूसरों के ऊपर डिपेंडेंट हो तो वो नाकस है अब अगर आपने यह कहा कि यह खुदा इनम था तो उस कामिल को आपने नाकस मान लिया जैसे ही आपने कामिल को नाकस माना आप जहालत में गिरफ्तार हो गए यह है जहल की डेफिनेशन यह पहली समझ ले के बुरी आदतों

(18:56) में या बुरे अखलाक में सबसे पहली चीज दूसरी चीज दूसरी चीज है जुल्म जुल्म की जो डेफिनेशन है वो है व फी गरी महली इसका मतलब क्या है इसका मतलब यह है कि किसी चीज को ऐसी जगह रखना जहां वो बिलोंग ना करती हो और चीज का मतलब सिर्फ कोई ऑब्जेक्ट नहीं है कि आपने फोन जो है कहीं और रख दिया जहां नहीं रखना चाहिए था आपने पेन कहीं और रख दिया जहां नहीं रखना चाहिए था नहीं ह हर वो चीज के मसलन पैसा आपको जहां लगाना चाहिए था आपने वहां नहीं लगाया जिनके राइट्स आपको अदा करने चाहिए था आपने वो राइट्स अदा नहीं किए मां-बाप के हुकूक है उनको अदा करने चाहिए था आपने वो नहीं

(19:36) अदा किए बीवी बच्चों के हुकूक आपको अदा करने चाहिए था आपने अदा नहीं कि सारे की सारी जुल्म की अलग-अलग शक्ल हैं इसी को हम अरबी में वज गरी महली कह देते हैं बिल्कुल ऐसे ही इबादत करनी चाहिए थी खुदा की आप इबादत कर रहे हैं ऑब्जेक्ट्स की चीजों की तो जिस जगह इबादत को रखना था आपने वहां नहीं रखा बल्कि कहीं और रख दिया इसका मतलब यह हुआ कि आप में बुरे अखलाक की जो दूसरी चीज है जो बुरे अखलाक की जो समझ ले के दूसरी यूनिट है वह आपके अंदर मौजूद है और वह है जुल्म इसीलिए कुराने करीम में अल्लाह ताला ने फरमाया कि इ शरका लम के

(20:15) शिर्क यह जुल्म की आला तरीन आला तरीन मजहर है यानी अगर जुल्म का सबसे ज्यादा मेनिफेस्टेशन कहीं होता है तो वो उस वक्त होता है कि जब इंसान शिर्क करता है कक जहां इबादत रखनी थी व वहां नरक कर खुदा के हुकूक को वायलेट करता है और ऑब्जेक्ट के सामने वो सर झुका देता है मैंने कल बताया था कि कोई चूहे के सामने सर झुका रहा है तो कोई ककज के सामने तो कोई बंदर के सामने तो कोई लंगूर के सामने खुदा को छोड़कर तो इ शिरका ये दूसरा बुरे अखलाक में दूसरी किस्म है तीसरी किस्म तीसरी किस्म है शहवत जिसको हम अंग्रेजी में लस्ट कह सकते हैं

(20:54) डिजायर कह सकते हैं आप देखते होंगे कि दुनिया में बहुत सारे लोग हैं बहुत ज्यादा हरीफ होते हैं आप उनको अगर कितना भी पैसा दे दे उनको मजीद पैसा चाहिए होता है एक हदीस है रसूल अकरम सल्ला वसल्लम नेने फरमाया कि अगर इब्ने आदम के पास सोने की एक वादी हो वैली वैली ऑफ गोल्ड तो वय चाहेगा कि उसके पास एक और वादी हो जाए उसके पास सोने का अगर एक पहाड़ हो तो चाहेगा कि दूसरा पहाड़ और हो जाए बिलियनर्स की यह कोशिश रहती है कि किसी तरीके से नंबर वन हो जाए मिलियनेयर की कोशिश रहती है कि मिलियनेयर बन जाए लखपति चाहेगा करोड़पति और करोड़ चाहेगा कि वोह बिलर बन जाए यह पूरी दुनिया के अंदर इस

(21:33) वक्त इंसानों की उस इंसानों के अंदर ये बुरी सिफत पाई जाती है तो शहवत लस्ट हर इंसान के अंदर है लेकिन असल बात यह कि उस लस्ट को कैसे कंट्रोल करना है एक आदमी अगर बखी करता है तो व इसी डिजायर उस लस्ट की वजह से करता है उसको पता है कि सामने वाला गरीब है और आप उसकी मदद कर सकते हैं लेकिन आप इसलिए मदद नहीं कर सकते कि यार मेरे जेब से अगर पैसे निकल गए तो फिर मैं आगे क्या करूंगा मेरी दौलत में कहीं कमी ना आ जाए यह बुल है यह बुल इसलिए है कि आपके अंदर लस्ट है और आपने उस लस्ट को उस शहवत को कंट्रोल नहीं किया एक आदमी है जो अपने डिजायर को कंट्रोल नहीं करता और इसलिए वह जिना के अंदर मुब्तला हो

(22:15) जाता है वह हम जिंस परस्ती के अंदर होमोसेक्सुअलिटी के अंदर मुब्तला हो जाता है यह सारी चीजें किस वजह से आती है शहवत की वजह से आती है अब देखें मुल कि जिसकी कोई अखलाक यात नहीं है पर वो भी कंट्रोल करता है कंट्रोल उसको भी है थोड़ा बहुत शहवत के ऊपर लेकिन वह इसलिए कंट्रोल नहीं करता शहवत पर कि वह शहवत पर कंट्रोल करने को एक अच्छी बात समझता है बल्कि वह कानून के डर और खौफ से शहवत पर कंट्रोल करता है इसीलिए एक मुद जरूरी नहीं है कि वह रेपिस्ट भी हो लेकिन अगर एक मुद है जो खुदा के ऊपर या खुदा के वजूद को नहीं मानता आप उससे पूछे क भाई दो बंदे जो

(22:54) शादीशुदा नहीं है एक मर्द और एक औरत शादीशुदा नहीं है और वो सेसुअल यानी जिना करना चाहते हैं तो आपको कोई प्रॉब्लम वय कहेगा कि अगर दोनों अबब एज है यानी दोनों अडल्ट है तो कोई मसला नहीं है अपनी शहवत पूरी कर सकते हैं तो क्यों इसलिए कि कानून उसकी इजाजत देता है अच्छा अगर दो मर्द अपनी शहवत पूरी करना चाहे या दो औरतें अपनी शहवत पूरी करना चाहे जिनको हम जिसको हम हम जिंस प्रस्ती कहते हैं आपको कोई प्रॉब्लम मुत कहेगा कि कोई प्रॉब्लम नहीं है चकि दोनों एडल्ट है दोनों अपनी हिशा को पूरा कर सकते हैं इसका मतलब क्या हुआ इसका मतलब यह हुआ कि एक मुहित को शहवत

(23:31) कंट्रोल करने में दिलचस्पी नहीं है उसको दिलचस्पी इस पर है कि कानून की मैं पास दारी कर रहा हूं या नहीं चकि कानून तोडूंगा तो जाहिर है कि यह एक सोशल कांट्रैक्ट के खिलाफ वर्जी होगी या यह कि मैं जेल जाऊंगा या कोई भी उसके कंसीक्वेंसेस होंगे तो मैं उससे बचना चाहता हूं तो शहवत पर कंट्रोल करना मकसद नहीं है कानून के डर से वह यह काम करता है तो यह तीसरी सिफत है बुरी सिफ तों में तीसरी चीज चौथी चीज और आखरी वह है गजब गुस्सा एंगर इस एंगर की वजह से गजब की वजह से इंसान मुतकब्बीर से और इसी इसी ज इसी गुस्से की वजह से वह अपने मुश और अपने मुल्क के खिलाफ बगावत भी

(24:21) करता है बहुत से लोग अपने मुल्क के खिलाफ बगावत कर देते हैं और उसकी कोई भी वजह हो सकती है वो वजह गुस्सा हो सकती है एंगर हो सकती है मुश के खिलाफ बगावत कर देते हैं तो या मसलन वो अपने घर वालों के खिलाफ बगावत कर देते हैं और बगावत का मतलब क्या है बगावत का मतलब यह है कि वह उनके हुकूक अदा नहीं करते रसूल अकरम सल्लल्लाहु अल वसल्लम ने एक सहाबी से ने आप सलम से पूछा कि या रसूल अल्लाह मुझे नसीहत कीजिए आप अला सलाम ने फरमाया ला गुस्सा मत करना तो उसने कहा उन सहाबी ने कहा कि या रसूल अल्लाह मुझे मजीद बताइए आपने फिर फरमाया कि गुस्सा मत करना तीन मर्तबा कहा कि गुस्सा मत करना यह

(25:02) गुस्सा ना करने की तलन आप अ सला सलाम ने क्यों दी और वो भी तीन मर्तबा इसलिए के हो सकता है कि आप अली सला सलाम को उन सहाबी के बारे में यह मालूम हो कि इनमें गुस्सा कुछ ज्यादा है तो उनको फिर तीन मर्तबा नसीहत की कि गुस्सा नहीं करना है लेकिन यह याद रखिए के गुस्सा या इसी तरीके से शहवत लस्ट यह एब्सलूट इमोटी नहीं है एब्सलूट नहीं है यानी बा मर्तबा गुस्सा अच्छा होता है मिसाल के तौर पर अगर आप गजब नाक होते हैं गुस्सा करते हैं अल्लाह के लिए हक के लिए ट्रुथ के लिए तो ये बिल्कुल ठीक है इसमें क्या मसला है लेकिन फर्क कहां आएगा एक मशहूर वाकया है उसकी सेहत अल्लाह बेहतर जानता है लेकिन मैं चक जबान

(25:46) जद आम है इसलिए मैं बता रहा हूं उससे वाकया समझने में उससे बात समझने में मदद मिलती है वो वाकया सैयदना अली बी तालिब र अल्ला से रिलेटेड है कि जी वो एक मैदान में मैदान जंग में थे तो एक दुश्मन की छाती के ऊपर व सवार थे तो उसने उनके ऊपर थूक दिया वो फौरन हट गए और यह कहा कि अगर मैं इसको मारता तो फ अपने लिए मारता पहले मैं इससे लड़ रहा था खुदा के लिए लड़ रहा था तो अगर यह किस्सा सही है इसकी तहकीक हो जानी चाहिए तो आपको इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि अल्लाह के लिए गुस्सा किसे कहते हैं और अपने लिए गुस्सा किसे कहते हैं हक के लिए गुस्सा किसे कहते हैं और बातिल के लिए गुस्सा किसे कहते

(26:22) हैं ये ये चार सिफात है जिनको हम अखलाक जमीना या बुरे अखलाक कहते हैं दुनिया में जितनी प्रॉब्लम्स है व इन चार चीजों की वजह से हैं अब आ जाए आगे कि अच्छे अखलाक क्या है और इस्लाम कैसे इन अच्छे अखलाक की तालीम देता है और मैंने बताया कि यह अच्छे अखलाक दूसरे दूसरे मजहब में भी पाए जा सकते हैं लेकिन जिस परफेक्शन के साथ इस्लाम ने तालीम दी है वह कहीं और नहीं है इसका चैलेंज है सबसे पहला जो अ समझ ले कि अखलाक यात में जो पहली सिफत है जो पहली क्वालिटी है वो वो है सबर पेशेंस सबर का मतलब क्या है देखि कुरान करीम ने एक मर्तबा नहीं दो मर्तबा नहीं

(27:07) तीन मर्तबा भी नहीं 90 मर्तबा कम से कम 90 मर्तबा सबर के बारे में गुफ्तगू की है कुरान ने तो सबर की यह अहमियत है सबर कहते किसे हैं सबर कहते हैं कि किसी चीज से जो के इंसान के लिए बुरी हो या उसको बुराई की तरफ ले जा सकती हो उससे रुक जाना अपने आप को रोक लेना यह है पेशेंस सबर एक आदमी को गम लाही हुआ मसलन खानदान में मौत हो गई या चोरी ई डाका पड़ गया घर में कुछ भी हुआ और उसने कहा कि ठीक है अल्लाह का दिया हुआ माल तो उसने वापस ले लिया उसने दिया एक तरीके से लिया दूसरे तरीके से अल्लाह ने जान दी थी जान ले ली तो इसका मतलब यह हुआ कि आपने अपनी जिंदगी के अंदर सब्र को ऑब्जर्व

(27:56) किया है सब्र को इख्तियार किया लेकिन इस लेवल तक पहुंचने के लिए तरीका क्या है एक इंसान सबर कैसे करता है इस्लाम ने उसका जो मैकेनिज्म बताया है वह किसी और मजहब और धर्म ने नहीं बताया पॉइंट यह है वरना सबर हर जगह आपको हो सकता है कि वेदों में सबर की तलक मिल जाए हो सकता है कि आपको बाइबल में मिल जाए बल्कि बाइबल में है मौजूद तो हम यह नहीं कह रहे कि सबर दूसरे धर्मों में या इंसान कहीं अगर मुसलमान नहीं तो साबिर नहीं हो सकता सबर नहीं कर सकता नहीं वो करता है लेकिन सबर को डिवेलप कैसे कर करते उसका जो परफेक्ट मैकेनिज्म है वो इस्लाम देता है और वह है रोजा रोजे के

(28:34) जरिए आप सबर का तरीका डेवलप करते हैं क्योंकि रोजा किस चीज का नाम है रोजा नाम है जो चीजें आपकी जिंदगी में जायज है उनसे रुकना ताकि जो चीजें जायज नहीं है आप उनसे आसानी के साथ रुक सके अल्लाह ताला ने खाने पीने को और इसी तरीके से जो इज वाजी ताल्लुकात है उनसे रोजे की हालत में बचने का क्यों हुक्म दिया हालाकि तीनों चीजें जायज है खाना भी जायज है पीना भी जायज है जिवाजी तालुकात भी जायज है मिया बीवी के दरमियान इसके बावजूद अल्लाह ने इन तीनों चीजों को रोजे की हालत में हराम करार दे दिया तो अगर आपने हलाल चीजों से 30 दिन तक अपने आप को रोक लिया दिन में रोजे की हालत

(29:12) में तो हराम चीजों से रोकने की ट्रेनिंग खुद ब खुद हो जाएगी यह है सबर की ट्रेनिंग तो रोजे का जो मकसद है वह सबर और तकवा पैदा करना है सबर इस तरीके से पैदा होता है अब आप यह कह कि जी रोजा जो है वो तो ईसाइयों में भी होता है वो भी रोजा रखते हैं हिंदू भी रखते हैं यहूदी भी रखते हैं तो उन रोज की हकीकत आप देख ले ईसाइयों के यहां ईस्टर संडे से पहले 40 दिन तक के रोजे रखना रिकमेंड है जरूरी नहीं है हमारे यहां 30 रोजे रखना जरूरी है एक आदमी एक आम मुसलमान जो नमाज नहीं पढ़ता रोजा जरूर रखता है मस्जिद रमजान में आबाद हो जाती है

(29:46) आप जरा किसी से आम मुसलमान से यह कहिए कि इशा की नमाज के बाद 20 रकत पढ़नी है भाई शव्वाल में नहीं पढ़ेगा लेकिन रमजान में वो 20-20 रकत पढ़ता है अगर 40 होती तो 40 भी पढ़ता क्यों इसलिए कि रमजान में उसने अपने सबर के लेवल को अपग्रेड कर दिया रोजे की रोजे की बरकत से और यही वजह है कि आप सल्लल्लाहु अ वसल्लम ने रिकमेंड किया है कि रमजान के बाद फिर शव्वाल में भी छह रोजे रखो उसके बाद भी हफ्ते में एक आद रोजा रखते र ताकि वह जो मोमेंटम आपने क्रिएट किया है रमजान में वह मोमेंटम बाकी रहे हमारा मसला यह होता है कि हम उस मोमेंटम को तोड़ देते हैं सिर्फ रमजान के

(30:23) रमजान रोजा रखते हैं ईसाइयत में क्या है 40 दिन रोजा रखना रिकमेंडेटरी कुछ नहीं है तो जो की रिलीजस कनर्जी है जो रिलीजस क्लास है बस वही रखते हैं बाकी आम आदमी रोजा नहीं रखता अच्छा जो रखते हैं उसकी भी आप कैफियत सुन ले रोजे की हालत में आप पानी और जूस पी सकते हैं अब कोई पूछे किई यह कैसा रोजा है जिसमें पानी भी पिया जा सकता है और जूस भी पिया जा सकता है तो फिर रोजे का जो मकसद है कि सबर को एलीवेट करना वह मकसद कभी भी आप अचीव नहीं कर पाएंगे यहूद यहूदियों के य छह रोज पूरे साल में दो रोजे 25 घंटे के होते हैं और चार रोजे डॉन टू डस्क यानी सुबह से लेकर शाम

(31:01) तक के जैसे मुसलमान रोजा रखते हैं ऐसे यहूदी भी रखते हैं उनके यहां कुछ खाना पीना नहीं हो सकता लेकिन साल में सिर्फ छह रोजे हैं और यह रोजे अलग-अलग दिनों में है तो अगर वह अपने उस सबर के पैमाने को एलीवेट करना भी चाहे तो वह जैसे ही ऊपर जाएगा एकदम नीचे आ जाएगा क्योंकि एक दिन रोजा रखा 25 दिन 25 घंटे भूखे रहे उसके बाद फिर 25 दिन गायब फिर उसके बाद 25 दिन भूख रहे फिर उसके बाद 100 स दिन गायब तो कोई भी चीज अगर हासिल होती है तो व कंसिस्टेंसी के साथ हासिल होती है ऐसा नहीं होगा कि आप एक दिन 25 घंटे भूखे रहे और अचानक आप कहे कि हा जी मेरे अंदर सबर

(31:40) पैदा हो गया यह नहीं होगा आपको 30 दिन रोजा रखना पड़ेगा उसके बाद भी वक्त फ वक्त रोजा रखना पड़ेगा तब जाकर आप सबर के उस पैमाने को उस पैमाने या उस मेयार तक पहुंच सकते हैं जिस मेयार का मुतालबा इस्लाम करता है जो मेयार आप सल्ला वसल्लम ने करके दिखाया आप अ सला लाम उस कसरत से रोजा रखते थे कि सैदा आयशा रला फरमा थी कि बाज मर्तबा कई कई दिन रोजे हो जाते थे और मैं समझती थी कि इस महीने आप सलम पूरे के पूरे महीने रोजे में रहेंगे तो इसीलिए कुराने करीम यह कहता है कि इ रोजे का मकसद क्या है सबर तो जो आदमी इतनी कसरत से रोजा रखेगा उसके सबर का

(32:20) मेयार कितना बुलंद होगा और जिसके सबर का मेयार इतना बुलंद हो तो फिर उस शख्स के अंदर कभी भी बुराई पैदा नहीं हो सकती अगर एक आदमी सबर रखता है अपने अंदर तो वह गुस्सा नहीं होगा वो गजब नाक नहीं होगा वह दूसरों से जलेगा नहीं उसके अंदर हसद नहीं होगा उसके अंदर किब्र नहीं होगा वह दूसरों को तकलीफ नहीं पहुंचाएगा तो इसीलिए आप अली सलातो सलाम को अखलाक के आला तरीन पैमान सलाम के बारे में कहा गया कि वो अखलाक का आला तरीन स्टैंडर्ड और आला तरीन पैमाना है तो यह अखलाक की यानी उम्दा अखलाक की पहली चीज हुई जिसको हमने सबर कहा दूसरी चीज

(32:59) दूसरी चीज है पाकीजा अभी जॉइन हुए हैं और बाज मर्तबा लोग शॉर्ट क्लिप भी चला देते हैं तो मैं हरगिज यह नहीं कह रहा हूं कि दूसरे मजहब में हया और पाक दामनी की बात नहीं है लेकिन जिस लेवल पर इस्लाम में उस लेवल में कहीं नहीं है और जिस लेवल पर मुसलमानों में है उस लेवल पर भी कहीं नहीं है यह भी याद रखिएगा हो सकता है कि मुसलमानों में सबर की कमी हो लेकिन हया और पाक दामनी की कमी नहीं है यह पूरी दुनिया इसको इसकी विटनेस है आज के दौर में वो कैसे वो इस तरीके से कि दुनिया को अगर हिजाब से प्रॉब्लम है तो वो मुसलमानों को नहीं है

(33:43) मुसलमान तो माशाल्लाह मुस्लिम खवातीन हिजाब करती है एक बड़ी तादाद में करती है किसको है ईसाइयों को है यहूदियों को है गैर मुस्लिमों को है मुशरिक को है उनको हिजाब से प्रॉब्लम है क्यों है भाई चाहे वो किसी भी उनवान से कि नहीं आप सेकुलर वैल्यूज के खिलाफ है वगैरा वगैरह हिजाब एक रिलीजस सिंबल है रिलीजस सिंबल होगा लेकिन हिजाब उसका मकसद हया और पाक दमनी है अगर आपको हिजाब से प्रॉब्लम है इसका मतलब ये कि आपको हया और पाक दमनी से प्रॉब्लम है आपको मॉडेस्टी से प्रॉब्लम है और सेकुलरिज्म ने आपकी उस फित्री हया को भी इस कदर करप्ट कर दिया कि एक औरत अगर खुद बा हया बनना चाहती है आपको प्रॉब्लम हो

(34:23) जाती है और आपके पेट में दर्द हो जाता है तो हया और पाक दामनी दो ऐसी चीज हैं कि ना सिर्फ यह कि इस्लाम ने उनकी तालीम दी है बल्कि मुसलमानों ने उसको इन इस सिफत को जिस मजबूती के साथ पकड़े रखा है किसी दूसरे किसी दूसरी कौम में उसकी मिसाल नहीं मिलती है वजह क्या है वजह यह है कि रसूल अकरम सल्लल्लाहु अ वसल्लम ने यह फरमाया है के अल हया मिनल ईमान अलमान हया ईमान का एक हिस्सा एक जुज है एक डिपार्टमेंट है तो एक आदमी का ईमान ही कंप्लीट उस वक्त होता है कि जब उसके अंदर हया और पाक दामनी हो एक और मौके पर आप अ सला सलाम ने फरमाया इया अगर तेरे अंदर हया नहीं है ना तो फिर

(35:10) तू जो चाहे कर आप अपने अपनी जिंदगी को टटोल एक मुसलमान है जिसके चेहरे पर दाढ़ी है और जिसके सर पर टोपी है यानी यह मैंने इसलिए कहा कि वह लोगों की नजर में वो लग रहा है कि हा भाई यह मुसलमान है तो वो शराब खाने का रुख नहीं करेगा कोक पीने के लिए वो शराब खाने इसलिए नहीं जाएगा कि यार चलो ठीक है शराब खाली शराब नहीं मिल रही ना कोक भी तो मिल रहा है सेवन अप भी मिल रही है चलो लेमनेड ले लेंगे कहीं और नहीं तो यहां वो इसलिए रुख नहीं करेगा कि यार कोई जाता हुआ मुझे ना देख ले कि एक मुसलमान शराब खाने जा रहा है अगरचे मैं शराब नहीं पी रहा हूं यह जो हया है ना इसने उसको शराब खाने में कदम रखने से रोका

(35:47) है याया दो तरह की होती है एक है फिी हया और एक है अकली हया फिी हया क्या है मसलन आप शर्मिंदा शर्म आ जाए आपको मसलन एक बच्चा है उसको आप ये कह कि हां भाई बेटा पढ़ो कोई बच्चा मसन कुरान करीम की कुछ पारे जानता है कुछ सूरत जानता है और आप उसको मजमे के सामने तिलावत करवाए तो वो शर्मा जाता है ये फिी हया है ये एक अलग चीज है इसको हम अच्छी सिफत नहीं मानते ठीक है एक इंसानी हर इंसान के अंदर होती है हया हया अकली अकली का मतलब यह है रैशनल मॉडेस्टी कि आप गुनाह से इसलिए रुके हैं कि जिसने जिस जात ने इस काम को गुनाह करार दिया है वो जात देख रही है यह हयाली एक हदीस है रसूल अकरम सल्लल्लाहु अ

(36:33) सल्लम ने अंसार की कुछ खवातीन को मसला बयान किया व मसला कुछ उनके प्राइवेट मैटर से रिलेट करता था सदा आयशा ला मौजूद थी तो स आशा ला ने कमेंट किया व कमेंट बड़ा जबरदस्त है तारी जुमला आपने फरमाया किम निसा सास अंसार की औरत बड़ी जबरदस्त है क्यों लम यनयान हया उनको दीन की समझ हासिल करने से रोकती नहीं है यानी हया उनके रास्ते में नहीं आती उनको जो मसला पूछना होता है वो चाहे कैसा ही हो वो मसला रसूल अकरम सल्लल्लाहु अ वसल्लम से मालूम कर लेती है इसका मतलब क्या है इसका मतलब यह है कि अगर आप शर्म आ रही है आपको कोई चीज सीखने में यह शर्म अच्छी चीज नहीं है लेकिन अगर आपको गुनाह

(37:18) करने में शर्म आ रही है यह शर्म अच्छी चीज है एक मुसलमान को दाढ़ी टोपी में एक पब में कोक खरीदने के लिए जाते हुए शर्म आ रही है कि से शर्म आ रही है दूसरे लोगों से भी कि लोग क्या कहेंगे कि देखो मुसलमान शराब खाने में जा रहा है अगरचे मैं शराब पीने के लिए नहीं जा रहा हूं और वो जात कि जिसने शराब को हराम करार दिया जिसने मैं चाहे एक आदमी मसलन तन्हाई में गुनाह कर रहा है अगर वो ये सोचे कि ठीक है मैं अकेला हूं कोई मुझे देख नहीं रहा खुदा तो देख रहा है और इस वजह से वो रुक जाता है तो इसका मतलब यह है कि उसके अंदर हया आकली

(37:49) है तो इमेजिन करें कि एक आदमी के अंदर अगर हया अकली हो तो ना सिर्फ यह कि वो पब्लिक लाइफ में गुनाह से रुकेगा बल्कि वो प्राइवेट लाइफ में भी गुनाह से रुकेगा तो जो आदमी गुनाह से रुकता है तो क्या वह अखलाकी तबार से बुलंद नहीं होगा ओबवियसली वो अखलाकी तबार से एक हायर स्टैंडर्ड और हायर ग्राउंड पर होगा तो यह दूसरी चीज है तीसरी चीज तीसरी सिफत मैं चार सिफत सितों के बारे में कहा था मैं चौथी के बारे तीसरी के बारे में बात कर रहा हूं तीसरी है शुजात यानी ब्रेवरी बहादुरी अब बहादुरी का मतलब यह नहीं है कि आप तलवार लेकर निकल जाएं और जो सामने आए उसको आप

(38:28) बहादुरी का मतलब यह नहीं है कि एक मॉब आए और किसी कमजोर को पकड़े और यह कहे कि इसने गाय का गोश्त खाया है और उसको उसकी मब लिंचिंग कर दे यह बहादुरी नहीं तो बुजदिली है बहादुरी का मतलब हरगिज यह नहीं है कि एक आदमी गन खरीदे और किसी मस्जिद में जाकर वहां के नमाजियों को शूट कर दे यह बहादुरी नहीं है बहादुरी यह भी नहीं है के मासूम बच्चे कि जिनको अभी यह भी पता नहीं है कि हम इस दुनिया में क्यों आए उनको उनको यह भी नहीं पता कि आखिर इस मुल्क का नाम क्या है जिस मुल्क में हम पैदा हुए हैं उनके ऊपर बम बरसा दिए जाए यह बहादुरी नहीं है यह सारी की सारी बुजदिली की अलग-अलग

(39:07) सूरतें हैं बहादुरी क्या है बहादुरी रसूल अकरम सल्लल्लाहु वसल्लम ने डिफाइन की है तो देखें बहादुरी की तालीम हर मजहब में है लेकिन उसको जिस अंदाज से डिफाइन किया गया है वो एक ऐसी चीज है जो यूनिक है रसूल अकरम सल्लल्लाहु वसल्लम की सीरत के साथ आप अल सलातो सलाम ने यह फरमाया कि लदी बहादुर व नहीं है कि जो पिछाड़ी रेसलिंग चल रही है एक शख्स आया वह उसने रेसलिंग की और वह जीत गया अब आप उसको बहादुर क बहुत बहादुर है इसको बहादुरी नहीं कहा जाता बहादुरी क्या इदम बहादुर वह है जो गुस्से के वक्त अपने नफ्स के ऊपर काबू कर ले वह बहादुर

(39:53) है लिहाजा बहादुरी को अगर आप डिफाइन करना चाहे तो व यह है कि अपने नफ्स को अपनी अकल के ताबे कर देना जिस दिन आपकी अकल सबजूगेट कर दे आपके नफ्स को इसका मतलब य कि आप बहादुर है टर कि आपके आपकी मस्कुलर बॉडी है या नहीं आपके पास वेपन है या नहीं लेकिन अगर आपने अपने नफ्स को अपनी अकल के ताबे कर लिया तो आप बहादुर है तो यह उसकी एक मिसाल भी मैं आपको दे देता हूं देखें एक कुराने करीम में सूर हुजरात में एक आयत है अल्लाह ताला फरमाता है इस आयत में अल्ला ताला तीन चीजों का हुक्म दे रहा है के कोई भी शख्स दूसरे का मजाक ना उड़ाए उसको हमिलिएट ना करे हो सकता है कि वह आपसे बेहतर हो ना कोई मर्द ऐसा करे

(40:44) ना कोई औरत ऐसा करे दूसरा दूसरी दूसरा जो हुकम एक दूसरे की बब जोई ना करो य ऐसा है य वैसा है इसके अंदर फला बीमारी है तीसरी चीज आप अल्लाह ताला का हुकम है के वला तना बब एक दूसरे को बुरा लकब ना दो किसी को लंगड़ा कह रहे किसी को लूला कह रहे हैं किसी को अंधा कह रहे जबक वह बीना है आप उसको ना बीना कह रहे या उसका कोई नाम रख दिया आपने कोई भी जो उसको पसंद नहीं है कुराने करीम ने इसकी तालीम दी है लेकिन हम सब इंसान होने के नाते उस फेस से गुजरते हैं जहा हमारा दिल चाहता है कि यार इसका मजाक उड़ा दिल चाहता है हमारा कि इसका कोई ऐसा नाम रखो

(41:27) कि यह मशहूर हो जाए और लोग इसको चढ़ाए उस नाम से ये हमारा दिल चाहता है एक इंसान होने के नाते हर एक के अंदर नफ्स है हम कोई अंबिया तो है नहीं लेकिन अगर आप उस नफ्स के ऊपर इसलिए कंट्रोल कर ले कि हो सकता है कि जिसका आप मजाक उड़ा रहे हो वह आपसे बेहतर हो तो इसका मतलब यह है कि आप बहादुर है यह है शुजात यह है बहादुरी तो बहादुरी की किस तरीके से अल्लाह ताला ने तलन की है एक ऐसे कांसेप्ट के जरिए एक ऐसे फिनोमिना के जरिए कि जिसमें हर इंसान मुब्तला है ह इंसान चाहता है कि वह दूसरों का मजाक उड़ाए लेकिन वह मजाक उड़ाने से इसलिए अगर रुक जाए के हो सकता है कि सामने

(42:08) वाला मुझसे बेहतर हो तो फिर उससे बढ़कर कोई बहादुर नहीं है यह तीन सिफात हो गई अच्छा अब आखरी सिफत है और वह है अदल इंसाफ अदल की डेफिनेशन क्या है अदल की डेफिनेशन है मह म मतलब यह है कि जिस चीज को जहां रखना चाहिए वहीं रखें जहां हुकूक अदा करने चाहिए वहां हुकूक अदा किए जाए और जहां नहीं वहां नहीं अब आप यह देखें के एक कौम है जो यह कहती है कि जिस मिट्टी से जिस मिट्टी में हम पैदा हुए हैं जिस मुल्क में हम पैदा हुए हैं वह मुल्क हमारी मां है तो भाई आपने अपनी मां की जो एक्चुअल मां है कि जिसके जरिए आप इस दुनिया में आए हैं आपने उसकी हक तफी की है क्यों इसलिए कि आप यह कह रहे यह मां

(42:59) नहीं है वह मां है मिट्टी फिर वह भी नहीं गाय मां है तो आप क्या कर रहे हैं आपने अपनी मां से बुलंद दर्जा किसको दिया एक जानवर को दे दिया यह इंसाफ के खिलाफ है यह जुल्म है यह अदल नहीं हो सकता आपने एक इंसान से ज्यादा दर्जा जमीन के टुकड़े को दे दिया जमीन के टुकड़े में क्या अच्छाई है क्या जमीन का टुकड़ा जो एक मुल्क में वो दूसरे दूसरे मुल्क के जमीन के टुकड़े से मुख्तलिफ है हरगिज नहीं अगर आप ये समझते हैं कि नहीं इस जमीन के टुकड़े ने मुझे अनाज दिया है गल्ला दिया है तो हो सकता है कि आपकी जमीन के टुकड़े से ज्यादा गल्ला दूसरे की जमीन के टुकड़े में होता हो आप अगर यह कहे कि नहीं मेरी जमीन का

(43:42) टुकड़ा जो है व बहुत खूबसूरत है तो हो सकता है कि दूसरे की जमीन का टुकड़ा आपसे ज्यादा खूबसूरत हो तभी आप हनीमून बनाने के लिए दूसरे की जमीन पर जाते हो ये सारी चीज हो सकती है ना तो क्या वजह है कि आप अपनी जमीन के टुकड़े को अपनी मां कहते हैं अगर आप अगर अगर उसका स्टैंडर्ड अनाज और गल्ला है प्रोडक्शन है प्रोड्यूस है तो व कहीं और भी हो सकता है और बेहतर हो सकता है उसकी वजह खूबसूरती है तो व कहीं और भी हो सकती है और बेहतर हो सकती है और उसकी वजह अगर यह कि अटैचमेंट है हम यहां पैदा हुए हैं तो हमें पसंद है अपना मुल्क तो

(44:14) ठीक है आप कोई चीज जो भी आपको चीज पसंद होगी आप उसको मां का दर्जा तो नहीं देंगे ना मा मान लीजिए आपको पब्जी पसंद है तो आप ये क पबजी मेरी अम्मा से ज्यादा अहमियत रखता है पबजी गेम तो कोई वूफ होगा जो यह कहेगा कि पबजी गेम उसकी माता है क्योंकि उसको पब्जी पसंद है तो अगर आपको कोई मुल्क इसलिए पसंद है कि आप वहां पैदा हो गए बाय एक्सीडेंट आपने कोई कांट्रैक्ट नहीं किया था अपने बनाने वाले से कि मुझे वही पैदा होना है तो आप एक बाय एक्सीडेंट बाय चॉइस नहीं बाय एक्सीडेंट पैदा हो गए और अब आप उसको यह कह रहे हैं कि चूंकि मैं यहां पैदा हो गया लिहाजा यह मुल्क मुझे पसंद है और लिहाजा यह मेरी मां है तो आपने अपनी

(44:53) मां की खिलाफ वर्जी की है आपने अपनी मां की हक तलफ की है यह के खिलाफ है ठीक है कुराने करीम ने अदल की जो तालीम दी है इंसाफ की जो तालीम दी है मैं वाक का जरिया आपको बताना चाहूंगा यह वाकया कुराने करीम में एक आयत है उसके तहत है कुराने करीम की आयत है अल्लाह ताला फरमाता है इलाना में आपको पीछे लेकर चलता हूं एक सहाबी है उस्मान बिन तहा इनका जो खानदान है यह कुरेश में एक मजस खानदान सम जाता था और इनके पास काबे की तौलिया थी यानी ये काबे की जो चाबी थी दरवाजा लॉक होता था और उस जमाने में भी आप सलम के दौर में जाहिल जमाने में पीर और जुमेरात के दिन इन दो

(45:41) दिनों में काबे का दरवाजा खोला जाता तो लोग अंदर जाते थे तो चाबी किसके पास रहती थी उस्मान बिन तलहातू अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी तशरीफ ले जाने लगे काबे में क्योंकि काबा तो असल मस्जिद है वो तो मुशरिक ने वहां कब्जा करके अपने बुत गाड़ दिए थे जिसको जिसकी सफाई की गई रत काबे की तहीर की गई फिर फते मक्का के मौके पर काबे तो असल मस्जिद है तो मस्जिद पर कब्जा किया था तो आप सला वसल्लम भी काबे में तशरीफ ले जाने लगे अच्छा उस्मान बिन तहा ने रोक दिया कि भाई आप कहां जा रहे हैं आप नहीं जा सकते यह हिजरत से पहले का वाकया है तो रसूल अरम

(46:23) सलम ने एक जुमला इरशाद फरमाया आपने फरमा फरमाया कि वो वक्त ज्यादा दूर नहीं है जब काबे की कुंजी काबे की चाबी मेरे पास होगी और मैं डिसाइड करूंगा कि किसको देना है उस्मान बिन तलहातू कर लिया था अपने दिल में उन्होंने ख्याल किया कि भाई अब तो गए मोहम्मद स वसल्लम ने कह दिया अब गए गेम ओवर बरहाल उन्होंने हाथ अठा लिया और रसूल अरम सलम अंदर तशरीफ ले गए यह जुमला उस्मान बिन तल कभी भूले नहीं यहां तक के आप सलम हिजरत करके तशरीफ ले गए उसके बाद मक्का फतह हुआ और जब मक्का फतह हो गया और आप स वसल्लम हरम में आए काबे के पास आए काबे का दरवाजा बंद था तो आपने कहा उस्मान से उस्मान बिन

(47:20) तलहातू के रसूल अम स सलम इस वक्त मक्का फतह करके आए हैं तो चैलेंज नहीं किया जा सकता था मुसलमानों को अब उस तरह ट्रीट नहीं किया जा सकता था जैसे पहले किया था आप अली सलातो सलाम ने काबे की चाबी खुलवाए ताला खुलवाया चाबी के जरिए काबे में अंदर तशरीफ ले गए नमाज पढ़ी इबादत की काबे की सफाई की बुतों को फेंका उठाकर वगैरह वगैरह उसके बाद उस्मान बिन तल ने कहा कि लो भाई हमारी जो एक साख थी पूरी पूरे जजीर तुल अरब में कि हमारे पास काबे की चाबी है वो तो खत्म और रसूल अम सलम ने ने जो बात कही थी वह आज पूरी कर दी अब आप यहां पर देखें के हजरत अली और हजरत अब्बास रज अल्लाह अमा

(48:05) यह दोनों कौन है हजरत अली रज अल्लाह आप सलम के कजन और आपके दामाद आप सलम के कोई लड़का नहीं था बस हजरत अली रज अल्लाह अही वह सारी व चीज पूरी करते थे इतने करीब थे दामाद दामाद की हैसियत बेटे की तरह होती है दूसरी तरफ अब्बास रज अल्लाह चचा और अब्बास रज अल्लाह के पास जमजम की जिम्मेदारी थी यानी हाजियों को पानी पिलाना जमजम वगैरह से ये उनका काम था तो उन्होंने आप से इन दोनों ने आकर कहा कि या रसूल अल्लाह अब चकि चाबी आपके पास है तो यह चाबी आप हमें इनायत कर दीजिए तो हमारे पास दोनों ड्यूटी हो जाएंगी कि जमजम की जिम्मेदारी भी हमारे

(48:43) पास रहेगी और काबे की जिम्मेदारी भी हमारे पास रहेगी य एक बहुत नोबल स्टेटस है यह कोई मामूली चीज नहीं है कि काबे की चाबी आपके पास हो तो आप सल्लल्लाहु अलही वसल्लम ने उस्मान बिन तलह को तलब किया कि उस्मान को बुलाओ उस्मान बिन तहा आए सोच रहे होंगे कि आज तो गए पता नहीं क्या हुकम सादिर होगा और आप सला सलम ने यह चाबी उनको दे दी यह अदल क्यों क्योंकि अल्लाह ताला ने कुराने करीम की आयत नाजिल फरमा दी थी इलाना अल्लाह ताला तुम्हें हुकम देता है कि अमानत जहां देनी है वहां दे दो यह चाबी तुम्हारे पास अमानत है यह उस उस श को वापस करो जिससे तुमने ली है आप सला सलम उस वक्त

(49:28) अगर इस्लाम रसूल अकरम स सलम का अपना बनाया हुआ कोई दन होता बिल्लाह आप सलम खुदा के सच्चे पैगंबर ना होते तो चाबी उनकी जेब में होती उस्मान बिन तल के पास ना होती उस्मान बिन तल तो वो थे जो रसूल अम सलम को काबे में दाखिल होने से रोक रहे थे आज आप अली सला सलाम का मौका था कि आप वह इंतकाम ले लेते लेकिन नहीं लिया अल्लाह ताला के हुकुम के सामने अपने दामाद की ख्वाहिश को और अपने चाचा की दरखास्त को दोनों को मुस्त कर दिया ना दामाद की बात सुनी ना चाचा की उस्मान बिन तल को चाबी वापस कर दी यह अदल की आला तरीन मिसाल के जो दुनिया के किसी भी मजहब में

(50:09) आपको नहीं मिलेगी तो यह जो आप अ सला उस मौके के ऊपर जिसका मुजहरा किया और उसम साथ में यह भी फरमाया के कयामत तक के तुमसे अगर कोई चाबी लेगा तो वह जालिम ससब ही होगा आपने यह भी इरशाद फ फमा दिया उस खानदान में उस दिन से लेकर आज तक चाबी मौजूद है सऊदी बादशाह के पास चाबी नहीं है सऊदी बादशाह को काबे में दाखिल होना होता है तो पहले रिक्वेस्ट जाती है शबी खानदान के पास उसको शबी खानदान कहते हैं बनू शैबा है कुरेश की एक शाख है शबी खानदान के पास वो लोग इसको अला अलाव करते हैं दरवाजा खुलता है और उसके बाद फिर सऊदी अरब का बादशाह काबे में

(50:50) दाखिल होता है वह चाबी आज तक व हुकूमत के पास नहीं है उस खानदान के पास है और जो लेगा चकि आप अ सला सलाम ने इरशाद फरमाया फरमा दिया जो लेगा वो जालिम और गास होगा तो कोई भी आदमी कोई भी हुकूमत ये नहीं चाहती कि उसको तारीख में जालिम और गास माना जाए वो भी रसूल अकरम सल्लल्लाहु वसल्लम की जबानी तो वह चाबी आज तक उनके पास है तो यह है अदल की मिसाल इसी तरीके से अदल और इंसाफ सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के दरमियान करने की बात नहीं है इस्लाम में गैर मुस्लिमों के साथ भी और मुसलमानों के साथ भी मैं दोनों की मिसाल दे देता हूं मुसलमानों के साथ इंसाफ कैसे होगा सूर हुजरात में अल्लाह ताला फरमाता

(51:30) है मोमिनो की दो जमात अगर आपस में लड़े लड़ सकते हैं इंसान है इंसान बाज मर्तबा अपने जबात से मगलू हो जाता है तो लड़ बैठता है तो तुम्हारा काम क्या है कि तुम इन दोनों के दरमियान सुला सफाई कराओ यह अदल अच्छा आगे फरमाया के फ अगर उनमें से कोई एक बाकी हो जाए तो ठीक है फिर उस बाकी जमात के खिलाफ लड़ो बाकी जमात के खिलाफ लड़ना यह भी आदल है लेकिन पहले सुला सफाई की कोशिश करो यह है अदल की मिसाल गैर मुस्लिमों के साथ अदल कैसे होगा अब आप देखें कि पूरी दुनिया में जहां-जहां भी मुसलमान गैर मुस्लिम अक्सर में है और मुसलमान माइनॉरिटी में है किसी ना किसी शक्ल में मैं हर जगह की बात नहीं करता हूं

(52:15) लेकिन किसी ना किसी शक्ल में उनके हुकूक की खिलाफ वर्जी होती है और खुसूस आजकल जो ट्रेंड चल चुका है राइट विंग पॉलिटिक्स का तो आप देख ले कि दुनिया में जहां पर भी राइट विंग पॉलिटिक्स का गलबा है व चाहे क्रिश्चन कंट्रीज हो एथ कंट्रीज हो कि वो हिंदू कंट्री हो कुछ भी हो राइट विंग पॉलिटिक्स का जहा गलबा है तो वहां अकलियत को खुसूस मुसलमानों को प्रॉब्लम है प्रॉब्लम दी जा रही है उनको किसी सोचा यानी यह प्लान इस तरीके के मकरो फरेब और हथकंडे अपनाए जा रहे हैं कि उनके जो बुनियादी हुकूक है व उनसे छीन लिए जाए लेकिन इस्लाम क्या कहता

(52:49) है रसूल अकरम सला सलम का इरशाद है आपने फरमाया के अला कया आप सलाम ने फरमाया कि अगर कोई शख्स किसी महिद के ऊपर माहि कौन है वह श के जो गैर मुस्लिम है इस्लामी हुकूमत में रहता है और परमानेंट रेजिडेंट है यह माहि किसी ने अगर उसके ऊपर जुल्म किया किसी ने अगर उसकी हक तलफ की किसी ने उसको ऐसे काम का मुकलम और पाबंद बनाया जो उसकी ताकत के से हटकर है बढ़कर है किसी ने उससे कोई चीज उसकी मर्जी के बगैर ली उसका कोई सामान उठा लिया उसकी प्रॉपर्टी कोप कब्जा कर लिया उससे पैसे ले लिए तो याद रखना कौन कह रहा है रसूल कह रहे मैं कयामत के दिन उसके खिलाफ दावा दायर करूंगा अल्लाह की अदालत में किसके हक

(53:50) में गैर मुस्लिम के हक में और कौन दावा दायर करेगा रसूल अम दायर करेंगे यह ता देकर मुसलमानों को गए हैं गैर मुस्लिमों के हुकूक की रियायत इस तरीके से करनी है अगर आप पावर में है कोई नहीं कर रहा है वह उसकी प्रॉब्लम है तो फिर वो दावा रसूल अम सलम का जो दावा अल्लाह की अदालत में दायर होगा उसके खिलाफ वो मुद्दा बनेगा वो मुसलमान डिफेंडेंट बनेगा और डिफेंड नहीं कर पाएगा उस दिन लेकिन तालीम यह है तो यह जरूरी नहीं है कि अगर तालीम है तो मुसलमान ने 100% उसके ऊपर अमल किया हो हो सकता है कि कुछ इलाकों में ना किया हो मैं मुसलमानों का हमने ठेका नहीं लिया हर जगह

(54:26) के बाज जगह हक तलफ होती है बाज जगह नहीं होती लेकिन बात यह है कि इस्लाम ने क्या तालीम दी है तो अब इससे आप अंदाजा लगाएं ये चार बुरी सिफात है जिनके खिलाफ इस्लाम में जगह-जगह तालीम पाई जाती है और चार अच्छी सिफात है कि जिनके बारे में इस्लाम में कुरान और सुन्नत में जगह-जगह तालीम पाई जाती है और दुनिया में तमाम खराब हों की जड़ वो चार बुरी सिफात है और तमाम अच्छाइयों की जड़ यह चार अच्छी सिफात हैं तो अगर हम यह कहते हैं कि इस्लाम ने इस नजरिए को अच्छी और बुरी सिफात के इस नजरिए को जिस एब्सलूट अंदाज से और परफेक्शन के साथ पेश किया है उसकी नजीर किसी दूसरे

(55:09) धर्म किसी दूसरे मजहब में नहीं मिलती तो यह एक बहुत बड़ी वजह है एक ऐसे शख्स के लिए कि जो हक का मु तलाशी है जो हक को तलाश करना चाहता है वो देखता है कि हक कहां है तो हक आपको मिलेगा तो इस्लाम में मिलेगा बुराई से दूर अगर आप जाएंगे तो इस्लाम के जरिए अच्छाई के करीब आएंगे तो इस्लाम के जरिए यही वजह है कि रसूल अकरम सल्लल्लाहु वसल्लम को अल्लाह ताला ने फरमा दिया था आप आला तरीन अखलाक का पैमाना है स्टैंडर्ड आप है अगर आपके स्टैंडर्ड के मुताबिक कोई आ रहा है तो वह अच्छा है और आपके स्टैंडर्ड से कोई दूर जा रहा है तो वह बुरा है तो किसी को अगर अच्छाई चाहिए तो इस्लाम में आए और बुराई चाहिए तो व इस्लाम से दूर हो

(55:47) जाए तो यह दूसरी खुसूसियत है इंशाल्लाह कल फिर आप हजरात से मुलाकात होगी किसी तीसरे मौजू के ऊपर आज के लिए इतना ही कोशिश यह होती है कि आधे घंटे में गुफ्तगू हो जाए लेकिन बातें जहन में आती रहती है और गुफ्तगू फैल जाती है खैर आप में से अक्सर ने माशाल्लाह बड़े सब्र और सुकून के साथ सुना है अल्लाह ताला इसको कबूल फरमाए और हमारे हमारी इबाद तों को और रोजों को कबूल फरमाए जजाकल्लाह खैर जजा वस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह व बरकात

Aaj ke daur me jahan har taraf insaniyat moral crisis ka shikar hai, logon ke zehan me yeh sawal uthta hai: “Kya Islam aaj bhi aik relevant moral system de sakta hai?” Modern societies me jahan science, secularism, aur capitalism dominate kar rahe hain, wahan Islam ka akhlaqi framework ek purana ya outdated concept to nahi ban gaya?

Mufti Yasir Nadeem al Wajidi ne is lecture me yeh wazeh kiya ke Islam kisi naye mazhab ka daawa nahi karta, balke woh tamam mazhabi taaleemat ka mukammal aur final version hai. Islam ka maksad sirf new ideas dena nahi, balke purane ideas ko perfection tak pahunchana hai. Yeh article isi pehlu par roshni daalega: Kya Islam ka akhlaqi nizam aaj bhi sab se mukammal hai?


Key Takeaways:

  • Islam kisi naye moral code ka daawa nahi karta – balki purani taaleemat ko takmeel deta hai.
  • Islam ke nazdeek chaar buray akhlaq sab corruption ki jad hain: Jahalat, Zulm, Shahwat, aur Ghazab.
  • Islam inke muqabil chaar ache akhlaq deta hai: Sabr, Haya, Shuja’at, aur Adal.
  • Yeh akhlaq sirf theory nahi – Islam practical training deta hai inko hasil karne ki.
  • Islam ka nizam kisi bhi modern secular system se zyada balanced aur fair hai.

Objection: Kya Achay Akhlaq Sirf Islam Ne Introduce Kiye?

Nahi, Islam yeh daawa nahi karta ke duniya me moral values sirf Islam ne introduce ki. Mufti Yasir ne wazeh kiya ke har deen ya society kisi na kisi level par akhlaq sikhati hai. Lekin farq yeh hai:

Islam ne akhlaqiyat ko mukammal kiya, na ke shuruat ki.

“Li utammima makarimal akhlaaq” – Nabi ﷺ ne irshad farmaya ke mujhe is liye bheja gaya ke main ache akhlaq ko takmeel tak le jaaun. (Hadith)

Yani, Islam yeh nahi kehta ke aur mazhabon me morality nahi thi. Balki Islam ka focus hai us morality ko balance aur perfection dena.


Jahalat: Sab Buraiyon Ki Bunyad

Jahalat ka matlab sirf illiteracy nahi – balke haq aur na-haq me farq na samajhna hai. Aaj ke secular world me log educated hone ke bawajood bhi Complete ko Incomplete samajhte hain aur vice versa.

Misal ke taur par:

  • Allah ko form-less ya shape-less kehna logon ko ajeeb lagta hai.
  • Photo na dikhaye to log kehte hain: “Yeh kaisa Khuda hai jo dikhta nahi!”

Yeh thinking asli jahalat hai. Kyun? Kyunki:

“Jo form-less hai, wahi kamil hai. Jiska form hai, woh naqis hai.”

Islam yeh samjhata hai ke haqeeqat samajhne ke liye sirf university degree nahi, fitri soch aur wahy ka ilm bhi zaroori hai.


Zulm: Jab Cheez Apni Jagah Par Na Ho

Zulm ka matlab sirf maarna-peetna nahi. Zulm ka matlab hai:

“Waz’u shayyi fi ghairi mahallihi” – kisi cheez ko uski asal jagah se hata kar galat jagah rakhna.

Is definition me har wo amal aata hai:

  • Jab maa-baap ke huqooq na diye jaayein.
  • Jab ibadat Allah ke bajaye kisi aur ki ki jaye.
  • Jab shirk kiya jaye – Quran ke mutabiq: “Shirk la-zulm-un azeem hai.” (Surah Luqman: 13)

Aaj ke zamane me log jab national identity ko maa se upar rakhte hain, ya mitti (desh) ko maa ke maqam par le aate hain, to yeh bhi zulm hai. Islam insaan aur unke rishte ke beech haq aur priority ka ek theek mizaan deta hai.


Shahwat: Jab Desire Control Se Bahar Ho

Islam desires ko haram nahi karta, lekin unka control zaroor sikhata hai. Jab desires halaal tareeqe se poori hoti hain to yeh na sirf sehatmand hoti hain, balke ibadat ban jaati hain.

Lekin jab:

  • Money ke liye greedy hona,
  • Zina, homosexuality,
  • Ya sirf legal loophole ke zariye desires poore karna

…yeh sab shahwat ki asarandaziyan hain.

Islam iska jawab rozay ki training me deta hai:

“Rozay ka maqsad hai – takwa aur sabr. Jab halaal cheez se rukne ki aadat daal jaaye, to haram se rukna asaan hota hai.”

Yani self-control Islam me ek spiritual training ka hissa hai, na ke sirf ek legal restraint.


Ghazab: Gusse Ko Aql Ke Tabe Karna

Gussa har insaan me hota hai. Islam ne gusse ko haram nahi kaha, balke uske management ka tariqa diya hai.

“Bohat se zulm aur fasad sirf isliye hota hai kyunki gussa waqt par control nahi kiya gaya.”

Mufti Yasir ne Imam Ali (r.a) ka waqia sunaya – jab unke dushman ne unke chehre par thooka, to unhone usse maarna chhod diya. Kyun?

“Agar maarte to khuda ke liye nahi, apne nafs ke liye maarte.”

Yeh hoti hai ghazab par complete control – true bravery.


Achay Akhlaq: Islam Ka Real Contribution

Islam sirf buraiyon ka zikr nahi karta, balke unke muqabil achay akhlaq bhi deta hai:

1. Sabr (Patience)

  • Quran me sabr ka zikr 90+ martaba aaya.
  • Rozay se sabr ki training hoti hai.
  • Sabr ka concept sirf pain tolerate karna nahi, balke:
    • Gunaah se rukna
    • Ghalat par amal na karna
    • Nafs ko qaid me rakhna

2. Haya (Modesty)

  • Haya aur modesty Islam ke core values hain.
  • Hijab sirf cloth nahi – yeh haya ka zinda symbol hai.
  • Hadith: “Agar tumhare paas haya nahi, to jo chaho karo.”

3. Shuja’at (Bravery)

  • Islam me bravery ka matlab hai: apne nafs par qabo.
  • Dusre ka mazaak udaana ya unka haqdaar chheen lena bravery nahi.
  • Brave wahi hai jo gusse ke waqt bhi aql se kaam le.

4. Adal (Justice)

  • Adal sirf apne doston ke saath nahi – dushman ke saath bhi.
  • Nabi ﷺ ne Fath-e-Makkah ke waqt apne dushman Usman bin Talha ko Kaa’ba ki chabi wapas de di – yeh Quran ka hukm tha.

“Amanat usi ke hawale karo jo uska haqdar ho.” (Surah An-Nisa: 58)

Islam ka adal itna impartial hai ke agar kisi non-Muslim ke saath zulm ho, to Nabi ﷺ khud qayamat ke din uska case ladne wale hain (Hadith).


Conclusion: Kya Islam Ka Akhlaqi Nizam Aaj Bhi Relevant Hai?

Bilkul. Islam ka akhlaqi system sirf kitab ka subject nahi – yeh aik practical, testable, aur trainable framework hai. Jahaan duniya ke secular systems insaan ko ya to extreme liberty dete hain ya total control me daalte hain, Islam balance aur dignity ke saath moral life jeena sikhata hai.

Yeh wahi system hai jo jahalat ke andheron me light laata hai, gusse me brake lagata hai, shahwat ko tame karta hai, aur zulm ke muqabil adal ko khada karta hai. Har insaan ko is framework ka serious mutala karna chahiye – chahe wo Muslim ho ya non-Muslim. Kyun? Kyunki moral truth sab ke liye hai, sirf label ke liye nahi.


FAQs

Q: Kya achi akhlaq sirf Islam me hi hain?
A: Nahi, lekin Islam ne unko perfection tak le jaane ka framework diya hai – jaise sabr, haya, shuja’at aur adal ki training.

Q: Rozay ka akhlaqiyat se kya taalluq hai?
A: Rozay ke zariye insan apne desires aur nafs par control seekhta hai – yeh sabr aur self-discipline ka practical system hai.

Q: Kya Islam non-Muslims ke saath bhi insaaf karta hai?
A: Ji haan, Nabi ﷺ ne farmaya: “Jo non-Muslim ke haq talfi karega, main qayamat ke din uska mukadma ladunga.”

Q: Islam me hijab ka kya maqam hai?
A: Hijab ek symbol hai haya ka. Aur haya iman ka hissa hai. Is liye hijab sirf kapda nahi, balke modesty ka izhar hai.

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