Agar koi kahe: “Jannat aur Jahannam bas mental state hain, koi asli jagah nahi hai,” to kya hum bina sochay maan lein? Ya phir hum apni aqal aur logic se is par baat karein?
Mufti Yasir Nadeem ke sath aik atheist caller ne yahi sawal uthaya: Kya Jannat aur Jahannam waqai exist karte hain, ya ye sirf state of mind hain? Kya inka koi logical ya scientific proof hai? Yeh article isi sawal ka logical aur Islamic jawab hai.
Transcript: (00:00) ये जो जन्नत और जहन्नुम होते हैं मतलब कि ये रियल में होते हैं या मतलब मतलब माना गया है कि ऐसा मेटाफर यूज हुआ है मतलब ये सारे रिलीजन में उस बात का सबूत क्या है कि ये है य रियलिटी वो है कि जिसको आप समझ ले अपनी अकल के जरिए वो भी रियलिटी हो सकती है नहीं यह सवाल आपसे है जो हम समझ सके जो रियलिटी आप समझ देखना जरूरी नहीं है नहीं आपने खुद ही बोला मेरे भाई मे फिजिकल वर्ड उसमें कोई प्रॉब्लम नहीं है आप खुद ही बोल चुके अब आप बदल गए आपने बात बदल दी फॉर द सेक ऑफ अमिंग माना था ना यकीन ना आए यकीन ना आए तो स्ट्रीम जब खत्म हो जाए तो पीछे
(00:41) रिवाइंड करके देख लीजिएगा हनी सिंह हनी सिंह होल्ड ऑन मैं आपको वापस लेके चलता हूं मेटा फिजिकल वर्ल्ड का वजूद पॉसिबल है या नहीं मेरे हिसाब से नहीं है नहीं है अभी शुरू में आपने बोला था कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड का वजूद पॉसिबल है आपको यह नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है तो अब आपने उसको अपने आप से अपने आप को कांट्रडिक्ट कर दिया जिसका आपने इ किया वो लज मेटा फिजिक्स का मतलब पता है थोड़ा आसान बताइए क्या होता है वही नहीं बेसिक नहीं पता तो क्या बात हो वही नहीं पता पले देखो कितना कंट्रक्शन है मैंने य शुरू में पूछा आपसे कि क्या किसी चीज को जानने के
(01:24) लिए देखना जरूरी है या उसको समझा भी जा सकता है आपने कहा समझा भी जा सकता है देखना जरूरी नहीं है इसका मतलब मतलब आप शुरू में इस बात के काइल थे कि बहुत सी चीजें बगैर देखे बगैर सुने बगैर टच किए बगैर टेस्ट किए समझी जा सकती है अकल से आप उसका उसको परसी कर सकते हैं अब आप क्या कह रहे हैं कि नहीं जी फिजिकल वर्ल्ड ही सिर्फ पॉसिबल है जो हमारे फाइव सेंसेस में आए फाइव सेंसेस से बाहर जो चीज है वो पॉसिबल ही नहीं है इसका मतलब क्या है कि आप सिर्फ जान स जानते किस चीज के जरिए अपने फाइव सेंसेस के जरिए आप किसी को समझ नहीं सकते तो आपके स्टेटमेंट में जो आपसे
(01:59) 10 15 मिनट मिनट बात हो रही है उसम एक नहीं दो कांट्रडिक्शन हो गए आज हाय टू ल जी भाई क्या हाल है सबके बिल्कुल ठीक यास भाई मैं आपका बहुत बड़ा फैन हूं जो काफी टाइम से आपको जो सुन रहा हूं तो बहुत अच्छा लग रहा है कि आपसे दोबारा मिल रहा हूं बात हो रही है हमारी अला जी आप सनातन है भाई सीखे क्या अच्छा ले क्या थे एथी था पहले भी शुरू से एथी बचपन से एथी थे बचपन से यानी पैदाइश ही एज एन एथी हुई है हां मतलब कि मैं हिंदी हिंदू फैमिली में पैदा हुआ हूं लेकिन मैं शुरू से ही एथी रहा हूं मेरी जो सोच रही है वो शुरू से ही एथ वाली रही है अच्छा ठीक है यानी
(02:52) मतलब खाता जो खुला वो एज एन एस्ट खुला ठीक है कोई बात नहीं हम मान लेते हैं आपका इसरार है तो कोई बात नहीं जी तो अब आप बोले आगे हजरत तो बताना चाह रहे हैं कि मुझे नाई ने कवा नहीं दिखाया था हिंदू हिंदू फैमिली में पैदा हुआ था जी जी जी जी वो व हनी सिंह वो असल में कमेंट हमारे बसालत भाई ने किया है ओवस इकबाल पर वो भी आपकी तरह एक एस्ट है बस फर्क इतना है कि उन्होंने कवे देखे हैं आपने नहीं देखे अच्छा अच्छा चलिए उनके बारे में बात बाद में होगी जी फिलहाल मैं अपना सवाल रखता हूं मतलब मेरा सवाल ये है कि ये जो जन्नत और जहन्नुम होते हैं मतलब की ये
(03:31) रियल में होते हैं या मतलब ए मतलब माना गया है कि ऐ मेटाफर यूज हुआ है मतलब ये सारे रिलीजन में उस बात का सबूत क्या है कि ये है दो आपने सवाल किए पहला सवाल आपने य किया कि क्या इनका जो रिलीजन में या इस्लाम में खुसूस इन दोनों का जो तस्करा है जहां भी आया कुरान में हदीस में तो क्या यह मेटाफोरिकली आया नहीं मेटाफोरिकली नहीं आया यह रियल में है अच्छा अब आप कहे कि इसका सबूत क्या है तो यहां हम सवाल यह करेंगे कि भाई किसी भी चीज को मानने के लिए आपको किन चीजों की जरूरत होती है यानी अगर आप यह कहे कि मैं देखूंगा तो मानूंगा तो फिर इस तरह तो बहुत सारी चीज है कि
(04:13) जिनको आप बगैर देखे मानते हैं तो इसलिए उस रूट पर तो ना जाए तो ज्यादा बेहतर है यहां यह है कि रियलिटी क्या है रियलिटी वह है कि जिसको आप देखें महसूस करें उसी को रियलिटी कहा जाएगा या रियलिटी वो है कि जिसको आप समझ ले अपनी अकल के जरिए वो भी रियलिटी हो सकती है नहीं यह सवाल आपसे है जो हम समझ सके जो रियलिटी है या देखना जरूरी नहीं है हाथ लगाना जरूरी नहीं है टेस्ट करना जरूरी नहीं है सूंघना जरूरी नहीं है अगर आपने अपनी अकल से किसी चीज को समझ लिया कि वह सही है तो व सही है हा ठीक सही है तो अगर हम इस कायनात के बाहर एक मेटा फिजिकल वर्ल्ड को
(05:00) माने तो क्या आपको लगता है कि अकली तबार से लॉजिकली ये कोई बहुत ब्लंडर हो जाएगा कोई रशन इस चीज को हम साबित नहीं या य रली बिल्कुल गलत होगा मेटा फिजिकल वर्ड अगर हम तस्लीम करें नहीं मेरा मेरा आता है सवाल आता है य आता है मतलब की हम ये मानते है कि मतलब यूनिवर्स य तो यूनिवर्स के बाहर क्या होता है मतलब बताया यूनिवर्स तो पूरा फ फिजिकल रिलिटी है एक फिजिकल वर्ल्ड है मैं कह रहा हूं कि क्या मेटा फिजिकल वर्ल्ड एजिस्ट कर सकता है आपके तबार से या नहीं कर सकता कर सकता है कर सकता है ठीक है तो उसके यानी यह जरूरी नहीं है कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड
(05:46) के होने से कोई खराबी फिजिकल वर्ल्ड में आए बिल्कुल पॉसिबल है मेटा फिजिकल वर्ल्ड हो सकता है ठीक अच्छा मेटा फिजिकल वर्ल्ड अगर है तो क्या आप उसको सिर्फ समझ सकते हैं या उसको देखना और चखना और संगना मुमकिन है य सिर्फ आप उसको समझ सकते हैं समझ भी सकते हैं समझ ही सकते हैं देख तो सकते नहीं आप तो फिजिकल वर्ल्ड में आप उसको समझ ही सकते ठीक है तो अच्छा अब हमें ये देखना होगा कि अगर समझाने वाला वह है कि जिसके जिसका कोई मकसद नहीं है कोई मफा नहीं है कोई इंटरेस्ट नहीं है वो कभी झूठ नहीं बोलता क्योंकि झूठ बोलने की उसको जरूरत नहीं है समझाने वाला वो है तो मुझे
(06:29) एक बात बताए क्या फिर उसकी बात को समझकर कबूल नहीं कर लेना चाहिए अगर वो समझने लायक होगा तो बिल्कुल जो है समझ सकते हैं बकुल ठीक आपने कहा अग समझने लायक होगा तो आप तो पहले ही यह मान चुके कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड का होना समझने लायक है पहले ही मान चुके है ना तोब आप यह नहीं कह सकते कि वो समझने लायक नहीं है वो तो समझने लायक है अब समझाने वाला वो है कि जिसको झूठ बोलने की जरूरत नहीं है व है क्रिएटर वो झूठ क्यों बोलेगा आपसे उसको आपका आपको आपसे सा डर लग रहा है उसको और बात वो समझा रहा है जो सम समझने लाय थे तो फिर आप समझ क्यों
(07:05) नहीं रहे भाई लेकिन बात ये है ना कि वो समझा क्या रहा है जो है वो वो समझा रहा है जो समझने लायक है वो वो समझा रहा है जो समझने लायक है नहीं अगर मान लीजिए कि फॉर द सेक ऑफ बिलीविंग मैंने इसको मान लिया ठीक है तो लेकिन वो इस बात का कै बो जो कह रहा है वो भी सही है मैंने बताया उसको झूठ बोलने के लिए बोलता है देखो आदमी झूठ क्यों बोलता है इंसान झूठ बोलता है या तो उसको किसी का डर होता है या कुछ लालच होता है क्रिएटर को ना तो डर हो सकता ना लालच हो सकता मान लो क्रिएटर को किसी चीज की जरूरत है थोड़ी देर के लिए मानले कुछ लालच है भाई जिस चीज
(07:46) का भी लाल हो उसको क्रिएट कर लेगा आपसे क्यों लेगा वो ले हमको बनाया क्यों है वो एक अलग टॉपिक है व एक अलग टॉपिक है हम टॉपिक प ना कर इसी टॉपिक पर तो जब उसको झूठ बोलने की कोई रत ही नहीं है ना लालच है ना खौफ है और वो आपको समझा रहा है और वो चीज समझा रहा है जो समझी जा सकती है आप खुद ही मान चुके तो अब सवाल ये कि क्यों नहीं समझ रहे लेकिन उसके अंदर सेंस होना चाहिए लॉजिक होना चाहिए वो भी तो होना चाहिए ना तो आप इसका मतलब ये कह रहे हैं कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड जो है वो समझने लायक नहीं है अब आप अपने अपने स्टेटमेंट को बदल दिया
(08:22) आपने ये तो नहीं ये तो ये तो हम जो अजूम कर रहे है ना कि मतलब अगर वो है आपने खद ही बो मे फिकल व हो सकता है उसम कोई प्रॉब्लम नहीं है आप खुद ही बोल चुके अब आप बदल गए आपने बात बदल सेकम फर द सेक ऑफ अमिंग सर मैं ये कह रहा हूं आपने बोला मैंने मान य सारे ए बाद में लगे शुरू में मैंने पहले ही कहवा दिया था आपसे और आपने बोल दिया था कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड का होना होने में कोई हरज नहीं है इस दुनिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता मेटा फिजिकल वर्ल्ड हो सकता है आप खुद मान के बैठे थे माना था यकीन ना तो स्ट्रीम जब खत्म हो जाए तो पीछे रिवाइंड करके देख लीजिएगा नहीं वो तो
(09:08) मैंने आपने आपने कहा था तो मैंने आपकी बात कोने वैसे ही मान लिया बससे कशन जब होता है तो बहुत ईमानदारी के साथ होता है यानी जो है दिल में वही बात करें जी आ भाई कुछ कह रहे थे आप हनी सिंह भाई तो इसमें प्रॉब्लम क्या है आप कह रहे हैं कि आपको आपने पहले कहा कि प्रॉब्लम नहीं है मेटा फिजिकल वर्ल्ड को मानने में यानी कि वो लॉजिकली रेली पॉसिबल है अब कह रहे आप नहीं प्रॉब्लम है रेली क्या व इंपॉसिबल है तो इंपॉसिबल है तो बता दे वो प्रॉब्लम क्या मतलब जो है य सर म क्या ू है वो जानना चाह रहा था मैं वो जानना चाह रहा था अब मेरा क्या क्या मानना है क्या
(09:50) नहीं आप कह रहे हैं एक प्रॉफिट ने जो रिपोर्ट द है जो खबर द उसको नहीं मानूंगा तो आप क्यों नहीं मानेंगे क्वेश्चन अब आपसे होगा एक सच्चा आदमी जब आपको एक रिपोर्ट दे रहा है बतला रहा है तो आपको नहीं मानने की वजह क्या है क्या वो कोई इरेशनल बात बता रहा है आपको ल बात है मतलब कीय जो है आप मे फिकल जम हनी सि भाई कैसे इरेशनल है जन्नत जहन्नम का वजूद कैसे इरेशनल है वो थोड़ा बताए वो ऐसे है मतलब ये जो है ल में नहीं होती जनत और जनम मतलब आप सकलर आर्गुमेंट में मैं आपसे दलील क रहा हूं आप सुनते पले आप पहले सुनते नहीं मेरी बात को प बात तो सुनि प मेरी मैं ये कह रहा
(10:41) हूं मतलब ये जो जननल और जन य जो होती है य दोनों स्टेट ऑफ माइंड को वो करती है मतलब की फर सपोज मान लीजिए कि आप जो बहुत बहुत एक लंबे टाइम से आप जो एगजाम की तैयारी में लगे हुए थे आपसे बहुत साल हो गए आपसे वो पास नहीं हु पास नहीं हु फिर एक साल आया जहा आपका एम पास उस समय आपका मा होता है होता मेरा सवाल इससे रिलेटेड नहीं है कि जन्नत जहन्नम इंसान के जहन में कैसे आया नहीं आया वो कहानिया बाद में सुनाते रहिएगा मेरा सवाल यह है हनी सिंह भाई मेरा बहुत प्रसा क्वे होते है मैं कहानि सुनने का आद नहीं ह सिपल सा क्वे सुना नहीं मेरा सवाल सुन ले बहुत प्रेसा इजली टू द
(11:32) पॉइंट है जन्नत जहन्नम का वजूद इरेशनल कैसे है वो बता द आप वो कैसे आया नहीं आया इंसान कब से मान रहा है नहीं मान रहा है वो सब कहानियों में मुझे इंटरेस्ट नहीं है आप रेशन बताए कि वो इरेशनल कैसे है ट्स इट बहुत सिंपल वो रियल में नहीं है उनकी कोई मौजूदगी नहीं है ये तो दावा हु क्लेम है कोई सबूत नहीं है इसका नहीं ये भी आपका क्लेम है हां कोई सबूत नहीं है इसका ये भी आपका क्लेम है क्लेम से क्लेम ना करें दलील दे मैं कह रहा हूं कि ये जो है सिर्फ और सिर्फ ये जो है आपके स्टेट ऑफ माइंड प व करती है डिपेंड चलिए मैं मैं आपको वापस लेके चलता
(12:18) हूं चलिए थोड़ी देर के लिए अनी सिंह अनी सिंह होल्ड ऑन मैं आपको वापस लेके चलता हूं मेटा फिजिकल वर्ल्ड का वजूद पॉसिबल है या नहीं मेरे हिसाब से नहीं है नहीं है अभी शुरू में आपने बोला था कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड का वजूद पॉसिबल है आपको यह नहीं पता था कि आगे क्या होने वाला है तो अब आपने उसको अपने आप से अपने आप को कडिट कर दिया वो सिर्फ मैंने आपके लिए कहा था क्यों आप ऐसा बो ऐसा नहीं होना चाहिए ऐसा नहीं होना चाहिए जो बात है वही आपके दिल दिल में जो है वही निकली ठीक है तो अब आप कह रहेल वर्ड का वजूद पॉसिबल नहीं है ठीक है ठीक है हम हम आई डोंट नो
(12:57) कि आपका कौन सा स्टेटमेंट सही है यह वाला या वो वाला लेकिन चक आपका लेटेस्ट स्टेटमेंट यह है कि पॉसिबल नहीं है अब ये आपने दावा कर दिया तो जरा इसको दलील से हमें बताए कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड का वजूद पॉसिबल क्यों नहीं है व नहीं है क्यों य ज और जनम होती हैके स्ट ई जनत और जनम की बात नहीं हो रही है मेटा फिजिकल वर्ल्ड की बात हो रही है कि क्यों नहीं है आप यह कह रहे इसलिए नहीं है कि वो स्टेट ऑफ माइंड नहीं वो दलील नहीं है आप यह कहेंगे कि मेटा फिजिकल वर्ल्ड इंपॉसिबल है इसलिए जैसे 2 प्स ू इक्वल फो ही होने फ नहीं होना फ होना इंपॉसिबल है यह साबित
(13:39) करें इसका जी यानी कि आपका य है मतलब की यूनिवर्स है कि नहीं अ ये कह रहे है यूनिवर्स क्या यूनिवर्स है नहीं आप ये कह रहेने इ किया वोल लफ मेटा फिजिक्स का मतलब पता है थोड़ा आसान क्या होता है वही नहीं पता बेसिक नहीं पता तो क्या बात हो वही नहीं पता बताइए बताइए अब यह भी हम ही बताएंगे आपको अब तक इन बंड उसको बियोंड द फिजिकल वर्ल्ड बियोंड यूनिवर्स के बाहर नी हमारी जो भौतिक दुनिया है ना भौतिक दुनिया से परे एक दुनिया ऐसे समझ ले आसान भाषा मतलब क्या तो ये तो बताइए मतलब कि यूनिवर्स के बाहर भी एक और और आसान कर
(14:43) देता हं अ सिंह भाई मैं और आसान कर सकता हूं वो दुनिया जो हमारे फाइव सेंसेस के अंदर आते हैं ना उस दुनिया से परे एक दुनिया ऐसी दुनिया जो हमारे फाइव सेंसेस में नहीं आते क्या वो इंपॉसिबल है वो इंपॉसिबल है तो साबित ये हो गया अभी आपने थोड़ी देर पहले देखो कितना कांट्रडिक्शन है मैंने यहां शुरू में पूछा आपसे कि क्या किसी चीज को जानने के लिए देखना जरूरी है या उसको समझा भी जा सकता है आपने कहा नहीं समझा भी जा सकता है देखना जरूरी नहीं है इसका मतलब आप शुरू में इस बात के काल थे कि बहुत सी चीजें बगैर देखे बगैर सुने बगैर टच किए
(15:21) बगैर टेस्ट किए समझी जा सकती है अकल से आप उसका उसको परव कर सकते हैं अब आप क्या कह रहे हैं कि नहीं जी फिजिकल वर्ल्ड ही सिर्फ पॉसिबल है जो हमारे फाइव सेंसेस में आए फाइव सेंसेस से बाहर जो चीज वो पॉसिबल ही नहीं है इसका मतलब क्या है कि आप सिर्फ जान जानते किस चीज के जरिए अपने फाइव सेंसेस के जरिए आप किसी को समझ नहीं सकते तो आपके इस स्टेटमेंट में जो आपसे 10 15 मिनट 20 मिनट बात हो रही है उसमें एक नहीं दो कांट्रडिक्शन हो गए आज और हो जाएंगे इससे पहले य मजीद गुफ्तगू होगी तो और हो जाएंगे साहब च मैं तो कहता र हजरत वो कहते हैं ना कि हमें आपको
(16:04) समझाना पड़ेगा कि हमें हमसे सवाल क्या करने है आपको हां ये ये भी हमें सिखाना होगा चले खैर कोई बात नहीं हनी सिंह आपसे बात करके अच्छा लगा लेकिन बात और अच्छी अच्छे अंदाज से उन्होने गुफ्तगू की आई थिंक वी शुड एड मायर हिम तो बात यही है कि जब आप हमारे इस स्टेज पर आए तो बहुत ही यानी यह मत करें कि यार मैंने आपकी वजह से कह दिया था हमारी इस रि आयत ना करें जो बात आपके दिल में है और जिस तरीके से आप अपना आर्गुमेंट पेश करना चाहते हैं वह करें ताकि आगे चलकर आपको अपने स्टेटमेंट बदलना ना पड़े चले जी अगले कॉलर को लेले
Table of Contents
Key Takeaways:
- Jannat aur Jahannam physical jagah nahi to kya sirf metaphor hain? Nahi, Islam kehte hai ye real entities hain.
- Metaphysical realities ko samajhna mumkin hai, dekhna zaroori nahi.
- Atheist caller ki reasoning self-contradictory thi.
- Islam universal logic aur divine truth ke zariye metaphysical duniya ko explain karta hai.
Objection: “Jannat aur Jahannam sirf metaphor hain”
Atheist ne claim kiya:
“Ye sab mental state hain, koi real jagah nahi hai. Inka koi saboot nahi hai.”
Unka kehna tha ke Jannat aur Jahannam insani zehan ke banaye huay concepts hain – sirf ek emotional comfort dene ka tool. Lekin jab Mufti Yasir ne cross-question kiya, to contradiction samne aaya.
Logical Point 1: Metaphysical World Possible Hai
Caller ne pehle kaha ke “metaphysical world possible hai.” Magar baad me kehne lage: “Nahi, wo exist nahi karta.”
Ye contradiction hai – jise logic me self-refuting premise kehte hain. Agar koi pehle maanta hai ke metaphysical world ka hona mumkin hai, phir bina daleel ke kehta hai ke nahi ho sakta, to wo apne hi reasoning ko tod raha hai.
“Aqal se kisi cheez ko samajhna mumkin hai bina dekhe.” – Yeh baat atheist caller ne khud kahi.
Agar dekhe bina samajhna mumkin hai, to phir Jannat/Jahannam ko “unseen reality” keh kar reject karna illogical hai.
Logical Point 2: State of Mind Ya Real Entity?
Atheist caller ne kaha:
“Jannat aur Jahannam sirf ek state of mind hain.”
Lekin is claim ka koi evidence nahi diya gaya. Yeh sirf aik assumption tha. Jab poocha gaya: “Proof kya hai ke yeh sirf imagination hain?” — to koi scientific ya logical daleel nahi mili.
Yeh Burden of Proof Fallacy hai: ek dawa karna bina daleel ke aur phir dusre se saboot mangna. Jab aap kehte hain ke “yeh cheez nahi hai,” to aap pe bhi daleel wajib hoti hai.
Logical Point 3: Creator Ke Words Reliable Kyu Hain?
Mufti Yasir ne poocha:
“Agar koi hasti jhoot nahi bolti, na usay kisi se dar hai na lalach — to kya uski baat qabool nahi karni chahiye?”
Agar Allah, jo har cheez ka Creator hai, khud Qur’an me Jannat aur Jahannam ka zikr karta hai, to uski baat ko reject karne ki wajah kya hai?
- Usay jhoot bolne ki zarurat nahi.
- Usay insano se koi faida nahi uthana.
- Uski baat logical hai aur universal values se match karti hai.
Is liye, agar hum logic aur integrity ko base banayen, to Allah ki report (i.e. Qur’an) par yaqeen karna zyada reasonable hai.
Common Misunderstanding: Physical World = Only Reality?
Atheist ke reasoning me ek aur flaw tha: “Jo cheez physical senses se samajh aaye wahi real hai.”
Lekin agar sirf physical cheezen real hain to:
- Love, justice, guilt – yeh sab bhi real nahi honi chahiyein kyunke inka koi color, smell ya shape nahi hota.
- Mathematics ya logic khud non-physical hain — phir kya wo bhi unreal hain?
Yani yeh view science ke bhi khilaaf chala jata hai.
Islamic Perspective: Jannat & Jahannam As Real Worlds
Islam me Jannat aur Jahannam dono real aur eternal jagahen hain:
- Jannat: Reward for faith, good deeds, sacrifice.
- Jahannam: Consequence for denial, zulm, kufr.
Yeh jagahen sirf emotional comfort nahi, balki divine justice ka nizaam hain. Har insaan ka amal record ho raha hai, aur akhirat me uska anjam milega.
“Jo log imaan laaye aur neik amal kiye unke liye Jannat ki khushkhabri hai…” (Surah al-Baqarah)
Conclusion: Aqal Aur Wahi Dono Jannat/Jahannam Ko Confirm Karte Hain
Agar hum sirf physical world ko real samjhein to bohot si haqeeqatein unreal ban jaayengi. Islam humay bataata hai ke duniya ke pare bhi aik haqeeqat hai jise hum wahi (revelation) ke zariye jaante hain.
Jannat aur Jahannam koi kahani ya metaphor nahi – ye akhirat ki real destinations hain. Aqal bhi ye kehti hai ke agar insaan accountable hai to reward/punishment ka system hona chahiye. Aur wahi (Qur’an) is system ki detail batata hai.
So, Jannat aur Jahannam — dono real hain, aur har insaan ko apne aamaal ke mutabiq unka samna karna hoga.
FAQs
Q: Kya Jannat aur Jahannam sirf insani zehan ki imagination hai?
A: Nahi. Islam kehta hai yeh real jagahen hain jo akhirat me samne aayengi – yeh sirf metaphor nahi.
Q: Agar maine Jannat dekhi nahi, to kaise yaqeen karun?
A: Har cheez dekhne par depend nahi hoti. Jaise aap hawa, jazbaat, ya gravity ko nahi dekhte, magar unka wajood manta hain. Wahi aur logic Jannat/Jahannam ka evidence dete hain.
Q: Kya metaphysical cheezen samajhna mumkin hai?
A: Ji haan. Aqal aur reasoning ke zariye, hum un concepts ko samajh sakte hain jo physical senses se pare hain.
Q: Agar Allah sab kuch janta hai to punishment kyu?
A: Kyunke Allah ne free will di hai. Jisne haq ko jaan bujh kar reject kiya uska jawabdeh hona zaroori hai — warna justice ka system meaningless ho jata hai.