Transcript: (00:00) एक लॉजिक मेरे को समझ में नहीं आया शायद आप डाउट दूर करें कि मोहम्मद साहब जो हैं वह सब जगह सभी लोग बोलते हैं कि वह पढ़ना लिखना नहीं जानते थे ठीक और उन्होंने इतनी इतनी बढ़िया कुरान लिख के हमको दी तो हम यह लॉजिकली तो तौर पर ये क्यों ना माने कि निश्चित रूप से मोहम्मद साहब जो थे वो पढ़ना लिखना जरूर जानते थे कि बिना पढ़े लिखे आदमी थे तो कुरान कैसे मैंने उन्होंने रिचेक किया और जो पढ़े लिखे थे उनका क्या मैंने उसका मैं हजर हुआ क्योंकि कुछ कुरान की आयत ऐसी है कि जो शायद मोहम्मद साहब ने नहीं लिखी है वो जो उनके लिखने वाले थे वो उन्होंने अपने मन से
(00:48) बनाक डाली है ठीक मेरा ऐसा डाउट अनलेटर्ड और अनएजुकेटेड दोनों में बड़ा फर्क है ठीक है अनलेटर्ड का मतलब अनएजुकेटेड नहीं होता मिसाल के तौर पर अगर मैं चाइना जाऊ तो चाइना के तबार से या चाइनीज लैंग्वेज के तबार से मैं अनलेटर्ड हूं जो कुछ वहां लिखा हुआ है मुझे उसका उसका प व पर भी नहीं आता कुछ नहीं आता या एक मात्रा भी नहीं आएगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अनएजुकेटेड हूं ठीक है जमीन आसमान का फर्क है दोनों चीजों में ओके रोनी साहब आपका डिवाइस कनेक्ट नहीं है भाई डिवाइस कनेक्ट कर ले अच्छा वकील साहब हमारे साथ है जी वकील
(01:29) साहब हां जी मुफती जी नमस्कार बिल्कुल आदाब क्या हाल चाल है सब ठीक ठाक ब सब बढ़िया है जी बिल्कुल ठीक आप सुनाए कैसी एक एक मिनट के लिए जी बोलिए हां जी सर हा आप यूपी में वकालत करते हैं भाई वकील साहब नहीं एमपी में एमपी एमपी में करते हैं अच्छा अच्छा ठीक है चले जी जी फरमाइए आपसे एक बार बात हो चुकी है हां हुई तो है मुझे आज कुछ आ तो रहा है जी हा जी आपने एक वो हमारा क्लिप बना के भी डाला था दो तीन महीने पहले की बात है अच्छा नहीं व वो व क्लिप तो सबका बनता है जो यहां तक आ गया उसको फिर के लिए हम कबूल कर लेते हैं नहीं नहीं मुझे आपत्ति नहीं है मैं तो यह बोल
(02:22) रहा हूं ताकि याद आ जाए कि आपकी हमारी बात हो चुकी है अच्छा ठीक ठीक काफी अच्छी बात हुई थी बहुत अच्छा जी सुनता रहता हूं और बात करता रहता हूं कुछ साब नेय भी लिख दिया कि आप जबलपुर के हैं जबलपुर की कोर्ट में हा जीी हा जीी हा तोय मैं नहीं कह रहा कमेंट पढ़ रहा हूं जी जी लोग याद रखते बहुत मत याद नहीं रख पाता तीन चार मर्तबा मुलाकात हो जाए तो फिर याद रहता है जी चले आगे बढ़े अच्छा मु अब्दुला म आग माशाल्ला वो कंट्रोल करेंगे ठीक है जी भाई तो मेरा सिर्फ एक मतलब डाउट चल रहा था काफी दिनों से जी मैं सुन रहा था काफी लोगों के उनको भी सुन रहा था जो मैंने आपके अगेंस्ट
(03:10) में बात करते हैं एक्स मुस्लिम वगैरह आपको भी सुन रहा था तो एक लॉजिक मेरे को समझ में नहीं आया शायद आप डाउट दूर करें कि मोहम्मद साहब जो हैं वह सब जगह सभी लोग बोलते हैं कि वह पढ़ना लिखना नहीं जानते थे ठीक और उन्होंने इतनी इतनी बढ कुरान लिख के हमको दी तो हम यह लॉजिकली तो तौर पर ये क्यों ना माने कि निश्चित रूप से मोहम्मद साहब जो थे वह पढ़ना लिखना जरूर जानते थे क्योंकि इतनी इतनी अच्छी जो कुरान है आपने जो बताया कि बहुत बढ़िया कुरान है तो वह मतलब कोई अनपढ आदमी या बिना पढ़ा लिखा आदमी तो नहीं लिख सकता और अगर बिना पढ़ा लिखा आदमी लिख सकता है या वो बोल सकता है
(04:00) या उनको जो वही आती थी उसके अनुसार वो किसी अपने साहिबा को बोलते थे ये लिख दीजिए तो यह जरूरी नहीं कि जो वो बोलते थे वो साहबा लोग लिखते थे और अगर वो लिखते थे तो वो पढ़ ही नहीं पाते थे कि उन्होने लिखा क्या तो जब वो य ये माने जांच भी नहीं कर पाते थे कि लिखा क्या है इसमें जो हमने बोला था वही लिखा है कि नहीं लिखा ठीक है ना कोई और मान लो वो रिचेक करते थे तो वो तो जो वो तो पढ़े लिखे थे जो लिख रहे थे तो वो तो उनको अब मैं इसका जवाब दे देता हूं वकील साब साहब बहुत अच्छा सवाल किया आपने एक मिनट की बात और है कि अगर मान लीजिए वो रिचेक करते थे कि हां भाई मैंने
(04:36) जो बोला वो आपने लिख लिया तो अगर मान लीजिए उनको मालूम है कि मैंने यहां यहां गलत लिखा है जहां-जहां मोहम्मद साहब ने बोला वहां वहां मैंने गलत लिखा है तो वो चूंकि इंटेलिजेंट थे पढ़े लिखे थे तो वो बोल सकते थे उनको याद रहता था कि हां भाई मैंने यहां यहां उस वाली आयत में ये गलत गलत बोला था ये मोहम्मद साहब जब भी रिचेक करेंगे तो ये चीज मेरे को बोलना है तो उन्होंने वो र करेक्ट करके मोहम्मद साहब को सुना दिया तो इस परे थोड़ा सा आप मैंने रोशनी डालिए कि बिना पढ़े लिखे आदमी थे तो कुरान कैसे मैंने उन्होंने रिचेक किया और जो पढ़े लिखे थे उनका क्या मैंने उसका म
(05:13) हजर हुआ क्योंकि कुछ कुरान की आयत ऐसी है कि जो शायद मोहम्मद साहब ने नहीं लिखी है वो जो उनके लिखने वाले थे वो उन्होंने अपने मन से बना के डाली है ठीक मेरा ऐसा डाउट है सही है आपका आ गया सवाल बड़ा अच्छा सवाल है मैं इसका जवाब देने ही वाला था कि मैंने देखा सही मुस्लिम साहब जंप करके आए हैं तो सही मुस्लिम साहब अगर आपको उसका जवाब देना है तो प्लीज गो अहेड जी डेफिनेटली आप आप शॉर्ट में कर दे उसके बाद फिर मैं इसको टेकल करता हूं एक शर्ट में देखि वकील साहब अनलेटर्ड और अनएजुकेटेड दोनों में बड़ा फर्क है ठीक है अनलेटर्ड का मतलब
(05:51) अनएजुकेटेड नहीं होता मिसाल के तौर पर अगर मैं चाइना जाऊं तो चाइना के तबार से या चाइनीज लैंग्वेज के तबार से मैं अनलेटर्ड हूं जो कुछ वहां लिखा हुआ है मुझे उसका उसका प व परट भी नहीं आता कुछ नहीं आता यानी एक मात्रा भी नहीं आएगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अनएजुकेटेड हूं ठीक है जमीन आसमान का फर्क है दोनों चीजों में आप सल्लल्लाहु अल वसल्लम के लिए जो लफ कुरान ने इस्तेमाल किया है वह है उम्मी और उम्मी का मतलब होता है जो उसके माना बयान किए जाते हैं वह है अनलेटर्ड कि आप सला वसल्लम को लिखना या उस जो लिखा हुआ है उसकी पहचान नहीं थी लेकिन वह एजुकेटेड
(06:32) थे वो साफ यानी आलिम थे और बल्कि सिर्फ आलिम ही नहीं बल्कि आप सला सल्लम य फरमाते हैं के उती तमल अलीन रीन के मुझे अगलो और पिछ का इल्म दिया गया और साथ में यह भी फरमाते हैं कि मुझे मालिम यानी टीचर बनाकर भेजा गया तो टीचर जो है वो अनएजुकेटेड तो होगा नहीं तो पॉइंट नंबर वन यह पहली चीज है दूसरी चीज आपने एक पॉसिबिलिटी की जिक्र किया बल्कि उस पॉसिबिलिटी को जिक्र करते हुए आपने य कहा कि मोहम्मद सला सलम ने कुरान लिख कर दिया कुरान ने लिखकर नहीं दिया बोल कर दिया उनको वही आती थी वो बोलते थे लिखते थे सामने वाले ठीक अब सामने वालों ने लिखा मैं बताता हूं उसका प्रोसेस
(07:10) क्या होता था ये सारी की सारी अदीस के अंदर पूरा प्रोसेस लिखा हुआ है आप सल्लल्लाहु वसल्लम के लिखने वाले कोई एक नहीं थे बल्कि 60 के करीब स्क्राइब्स थे यानी जो लिखने वाले थे वो 60 के करीब थे अच्छा और होता ये था कि जब कोई आयत आती थी तो आप सल्लम बुलाते थे किसी उन 60 में से किसी को और कहते थे इसको लिखो वो बंदा लिखता था और उसके बाद पढ़कर सुनाता था और उसके बाद फिर वो आयत लोगों को याद करा दी जाती थी वो जो लिखा हुआ है वो जिस बंदे ने लिखा है उसी के पास रहता था या अगर कोई आदमी ख्वाहिश जाहिर करता था कि जी मुझे भी ये लिखा हुआ चाहिए तो उसको उसकी कॉपी करके
(07:44) दे दी जाती थी कि भाई तुम भी लिख लो इसी में से अब ये मास यानी मास टीचिंग हो गई कि क्लास में मसलन अगर 100 लोग हैं 200 लोग हैं सब को वो जो नाजिल हुई है वही वो सिखा दी गई अब आप सला वसल्लम ना सिर्फ ये कि उसको वही सिखाते थे बल्कि उनसे सुनते भी थे नमाज होती थी मदीने के अंदर नौ मस्जिदें थी सारे लोगों को आयत पता चल जाती थी कि ये आयत नाजिल हुई और सब लोग याद कर लेते थे तो यह पॉसिबल नहीं है कि वो आदमी के जो कुरान की वो आयत लिख रहा है वो उसके अंदर कोई डंडी मार दे अपनी तरफ से कोई लफ्ज का इजाफा कर दे या कोई लफ्ज कम कर दे और उसकी वजह ये है कि सिर्फ उसी के
(08:19) ऊपर रिला नहीं किया जा रहा बल्कि आप सलम पूरी कम्युनिटी को सिखा रहे हैं और वो याद कर रहे हैं और वो आप सलम को सुना रहे हैं तो कोई तो फिर उसी इस तरीके से तो उस आदमी का झूठ एक मिनट में पकड़ा जाएगा हम नहीं लेकिन कई आयत ऐसी है जो सिर्फ अकेले में आई है जो सब उनका उनके मतलब एक बंदा उनके साथ में बैठा है स उनके ही सामने आई है कई आयत ऐसी है जो आय आयशा जी के सामने आई है जी आप बिल्कुल सही कह रहे आयत नाजिल होना किसी के सामने का मतलब यह नहीं है कि जिसके सामने नाजिल हु वो लिखेगा भी हजरत आयशा र अल्ला वो आप के लिए कुरान नहीं लिखती थी
(09:00) का नाम नहीं था अब मान लीजिए घर में आप मौजूद है कोई आयत नाजिल हुई तो हजरत आयशा को नहीं कहते थे कि तुम लिखो आयत तो नाजिल हो गई अब वो जो लिखने वाले हैं मान लीजिए रात को ही तो सुबह को वो बताएंगे ना लोगों को कि भाई ये आयत नाजिल हुई इसको लिखो और उसके बाद पूरी कम्युनिटी को सिखाएंगे आप सल्ला वसल्लम का काम सिर्फ आयत रिसीव करके कहीं लिखवा के उसको यानी शेल्फ के ऊपर रखवा देना नहीं था बल्कि आप अ सला सलाम की जो ड्यूटीज कुरान ने खुद बयान की है वो ये की है किता के वोह नबी के जो किताब की और हिकमत की यानी विजडम की तालीम दे किताब से
(09:34) मुराद क्या है कुरान जो कुरान की तालीम दे तो कुरान नाजिल होक कुरान सिखाना भी आप सलम का काम था और सिर्फ सिखाना ही नहीं तालीम देना नहीं बल्कि कुरान की तिलावत करना यत ये लफ भी मौजूद है कि वो कुरान की तिलावत करते थे लोगों के सामने तो मान लीजिए अगर किसी एक सहाबी ने गलती से या मैं कहता हूं हाइपोथेटिकली स्पीकिंग के उसने जानबूझकर कोई लफ्ज आगे पीछे कर भी दिया तो जब आप सला वसल्लम उस कुरान की तिलावत कर रहे हैं और सोयो लोग पीछे सुन तो वो तो फौरन पकड़ लेंगे इस आदमी ने गलत लिखा है नहीं लेकिन लेकिन जो जो आयत मतलब अकेले में आई है उनका क्या वो जो 100 लोगों ने
(10:10) सुनी थी उनका तो चलो मानता हूं मैं लेकिन जो आय उनको अकेले में लिखवाया ला साब आपकी तरफ माइ कर रहा हूं लास्ट पॉइंट अकेले में आयत जो रिसीव होती है ना चाहे आप सलाम 100 हज लोगों के दरमियान मौजूद हो आयत जो रिसीव होगी उसका प सिर्फ आप सलम को ही चलेगा क्योंकि वही आप अ सलाम पर आ रही है अब उसके बाद आप सला सलम बताएंगे वो 100 लोगों को बताएंगे हजार लोगों को बताएंगे वो आप सलम का काम है आप ये नहीं कह सकते कि उसमें किसी आदमी ने कोई तब्दीली कर दी होगी वो तब्दीली पॉसिबल नहीं है जो मैंने पूरा प्रोसीजर बताया जी भाई सही मुस्लिम साहब ओ ू
(10:51) य जी जी ठीक है तो मैं एक छोटी सी बात रखता हूं हो सकता है इनको समझ में आ जाए नहीं मुझे डाउट है वो पढ़े लिखे थे साहब बहुत पढ़े लिखे थे जीनियस आदमी थेने पीएचडी लेवल से भी पीएचडी लेवल से भी ज्यादा थे हमारा तो कहना तो ये है जी क इतनी बड़ी इतनी अच्छी किताब और इतनी बड़ी किताब वो बिना पढ़े लिखे तो आदमी ना तो चेक रिचेक कर सकता है ना चेक कर सकता इसको इसको मेरा मतलब थॉट है ठीक है चलिए अब सही मुस्लिम अपनी बात रखते जी गो अड ब आप आप ये बोल रहे हैं कि वो पीएचडी लेवल थे आप ये कहना चाह रहे हैं ठीक है तो सबसे सबसे पहले आप मुझे हिस्ट्री में बता दीजिए कि
(11:31) कहीं ऐसा आपको पता है कि उस टाइम पर कोई उदाहरण दे रहा हूं यार उस समय ना यूनिवर्सिटी थी ना कुछ था लेकिन मैं कह रहा हूं कि आज का आज का जो पीएचडी लेवल का जो व्यक्ति जितना पढ़ा लिखा समझदार व्यक्ति है उससे भी ज्यादा समझदार व्यक्ति वो थे और वो लिखना पढ़ना भी जानते हो होंगे सारी बात का जवाब दूंगा आप शायद शायद आपके जो लिखने वाले हैं उन्होंने गलत लिख दिया हो कि वो पढ़ना लिखना ना जानते य जी उसका जवाब जब मैं दे चुका हूं जी सन साहब मुख्तसर अपनी बात कर लीजिए जी अगर ये मुझे बोलने देंगे तो बोलूंगा गो अहेड एक सेकंड एक चीज और बोल दूं फिर आप बोल देना
(12:08) क्योंकि एक जगह मैंने मतलब यह सुना है कि एक जगह पहाड़ के पास में जिब्राइल साहब आए थे और जिब्राइल साहब से उनकी बातचीत हो रही थी तो उस आयत में उन्होंने लिखा था कि जिब्राइल साहब जब आए तो मैंने देखा और वो मेरे सामने थे और उनके 600 पंख थे एक आयत है शायद आयत है हदीस हदीस है जो क्योंकि अगर उन्होंने माने वो बोला है नंबर बोला है कि 600 पं इसका मतलब उन्होंने गिना था ठीक सही हैय दूसरा सवाल है अब सही मुस्लिम साहब जवाब देंगे जी ठीक है अब आप बीच में ना इंटरफेयर कर मैं अपनी बात कंप्लीट करल तो आपने खद तो मान लिया खुद तोय मान ले उस टाइम को
(12:51) यूनिवर्सिटी को ऐसा ही था नहीं ठीक है अच्छा दूसरी बात य है कि हिस्ट्री में कहीं हमें मिलता नहीं है कि कोई उनका टीचर रहा हो कहीं टे में कुछ ऐसा नहीं मिला ठीक है अब बात ये आ गई कि नबी अल सलाम को इतनी हिकमत और ये कहां से आई तो पहली बात तो ये कि जो नबी होता है उसके अंदर हिकमत और ये सारी चीजें उसके अंदर इंस्टॉल्ड होती है और उसकी जो ईमानदारी और उसका अखलाक वो सब आम इंसान से ऊपर होता है ये चीज तो एस्टेब्लिश है सवाल अभी आपने ये किया कि मैं ये समझता हूं आपके आपके जो वर्ड्स थे के वो इतने समझदार इंसान थे और ये यूनिवर्सिटी लेवल की जो बातें उस कुरान
(13:28) में लिखी है ये उनकी दी हुई है यह ईश्वर की तरफ से नहीं है अल्लाह की तरफ से नहीं है आपका कहना है करेक्ट य नहीं नहीं नहीं नहीं गलत गलत गलत है मैं कह रहा हूं य ये ईश्वर की तरफ से हैं अल्लाह की तरफ से हो सकती हैं लेकिन उन किसी दूसरे ने भी लिखी हो सकती है इसका मैं जवाब दे इसका जवाब उनका कोई पीए होगा वो वो उनका उसने लिखा हो सकता मैं मैं इसी बात का जवाब दे ले ये मैं ये नहीं पचा पा रहा हूं कि वो पढ़ना लिखना नहीं जानते थे क्योंकि वो अभी पचा पाएंगे चेक करते थे गारंटी से रिचेक करते थे एक एक आयत को सुनते थे भाई बस कर द जवाब देने जी जी बस कर द वकील साहब ये
(14:07) आपका कोट नहीं है जी सही मुस्लिम अभी आप डाइजेस्ट भी करेंगे इस बात को सब हो जाएगा देखिए ऐसा है कि जब आप कुरान को स्टडी करते हैं कुरान में कितनी सरत साब पता है आपको 114 है ना हम अच्छा 114 आपकी आपकी बात यह है कि कुछ आयत इसमें मिली हुई है कुछ अल्लाह की तरफ से कुछ इंसान की तरफ से आपका कहना ये है नहीं इसको चेक करने का तो कह रहे क्या कह र नहीं मैं ये नहीं कह रहा हूं मैं वही तो मैं कह रहा हूं आप सुनो तो मैं क्या कह रहा हूं मैं कह रहा हूं कि 100% कुरान आपके अल्लाह जी ने उनको सुनाया और 100% कुरान मोहम्मद साहब ने सुना और अपने पीए से लिखवाया और उन्होंने
(14:44) रिचेक किया मेरा मेरा कहना यह है तो इसमें तराज क्या है उसमें तराज यह है कि आपकी कुरान में यह क्यों लिखा कि मोहम्मद साहब बिना पढ़े लिखे थे हमें इस पर तराज है वो पढ़े लिखे थे उनको लिखना चाहिए था कि नहीं हमारे नबी जो थे वो बहुत पढ़े लिखे थे वो चीज उनको इंडोस करना थी एक मिनट एक मिनट सपोज मोलम ने कोई वही सुनी जिसी भी तरीके से उनको रिसीव हुई और कुरान में यह लिखा है शायद आपने पढ़ा हो कि कुरान उनके दिल पर उतरता था ये पढ़ा है आपने कुरान में इसका मतलब ये है कि कुरान उनको उनके अंदर इंस्टॉल होता था वो मेमराइज नहीं करते थे कुरान को समझ गए आप
(15:25) और जैसे ही वो पढ़ने को होते थे वो हार्ड डिस्क जो उनके हार्ट में लगी हुई थी वहां से कुरान जारी होता था ठीक है इसकी दलील कुरान के अंदर है बहुत सारी आयत दे सकता हूं मैं आपको ठीक है अच्छा अब बात ये है कि जब मेरे जब उनके हार्ट के अंदर कुरान इंस्टॉल है और व जब बोल रहे हैं और सामने वाला नोट कर रहा है तो इससे यह बात साबित कैसे होगी व पढ़े लिखे थे या नहीं थे नहीं नहीं मैं क कह रहा हूं प मैं तो य कह रहा हूं जा रही है सही मुस्लिम साहब देखें सॉरी समझ गए जी जी जी वकील ये नहीं कह रहे हैं कि वो पढ़े लिखे नहीं थे वो ये कह रहे
(16:02) हैं कि वो पढ़े लिखे थे लेकिन आप जो उनको अनलेटर्ड कहते हैं वो दुरुस्त नहीं कहते गलत वो गलत कहते ये वकील साहब का ऑब्जेक्शन है यस यस मैंने जो बात कही है वो यह कही है कि आप सल्लल्लाहु वसल्लम का अनलेटर्ड होना आपकी नबूवत की दलील है और अनलेटर्ड होने से यह साबित नहीं होता कि कुरान में कोई कमी बेशी मुमकिन थी महज इसलिए कि वो अनलेटर्ड थे क्यों इसलिए कि जो जो चीज लिखवाई जा रही है वह सिर्फ लिखवा के शेल्फ में नहीं रखवा जा रही है बल्कि वह सुनी भी जा रही है और सिर्फ सुनी जा रही है और पढ़ी भी जा रही होगी जो दूसरे वो पढ़ रहे हैं वो पढ़ रहे हैं और
(16:40) वो आप सलम को सुना रहे हैं और एक आदमी नहीं सुना रहा है भाई गलती एक आदमी करेगा ना एक आदमी नहीं कर रहा वहां 40 50 लोग तो लिखने वाले हैं और याद करने वाले हजारों की तादाद में है तो आप सला वसल्लम के सामने अगर मान लीजिए वो आयत मल्टीपल टाइम मल्टीपल टाइम सुनाई जा रही है पढ़ी जा रही है तो जिस एक आदमी ने अगर मान ले जानबूझकर कोई लज कमी कमी या ज्यादा कर दिया तो वो गलती तो एक दिन में दो दिन के अंदर बहुत सामने आ जाएगी बिल्कुल पल नहीं तो यही मैं कह रहा हूं आपका जो कहना है ना होने मतलब ये है कि कुरान में कमी बेशी हुई है यह साबित ये पॉसिबल नहीं है
(17:19) जो मैंने पूरा प्रोसीजर मैं कमी बेशी की बात ही नहीं कर रहा हूं मैं समझ में नहीं आ र मुझे वही तो मैं कह रहा हूं मैं यह बात कर रहा हूं कि आपके मोहम्मद साहब जो है वो पढ़े लिखे थे उनको गिनती भी आती थी नहीं गिनती भी आती थी उन्होने जहां जहां पर भी गिनतियां का लज आया जहा उन्होने पर्सनल बयान कि है व जहा जहा गिन की बात आई व उने बा मेरा कना यरा चले सही बेहतर है लास्ट कमेंट आ रहा है बसाला साहब की तरफ से जीब मुझे नहीं पता आप कुरान को इलमी किताब मानते हैं अल्लाह ताला की तरफ से उतरी ई मानते लेकिन कुरान खुद इस बात की दलील देता है सरला फरमाते हैं
(18:12) ला आपने अपने सीधे हाथ से कभी कुछ नहीं लिखा और अगर आप लिखते तो फिर यह लोग आपको वो क्या है मुता उस समय के बहुत बड़े राजा महाराजा टाइप के व्यक्ति थे तो मेरी बात मुझे मुकम्मल करने दीजिए यार थोड़ा सा तो वक्त दीजिए हां एक ठीक है वकील साहब थोड़ा बात कर लेने दे जी हां जी बताए बताइए तो यही ये जो आयत मैंने सामने कुरान की आपके सामने रखी है तिलावत की है या पढ़ी है उसका उसका मतलब यही है कि अल्लाह ताला फरमाते हैं कि आपने अपने हाथ से कुछ नहीं लिखा अगर यानी कि कुरान कहना चाह रहा है अगर यह मामला होता तो बात लोग शको शुबह में डाल देते आपको या कुछ शको शुपा करते
(18:55) आपके ऊपर कि आप तो पीएचडी लेवल के आदमी है आपको तो सब कुछ पढ़ा पढ़ना भी आता है लिखना भी आता है तो ये किताब आपने खुद से घड़ी है ये जो आर्गुमेंट आप दे रहे हैं ना इसी को कुरान खुद डिनायर रहा है आप सलम ने इससे पहले कोई किताब पढ़ी है और ना अपने हाथ से कुछ लिखा है वरना ये लोग बातिल लोग जो है वो शको शुभ चले ठीक है अब बल वकील साहब आपका सवाल आ गया हमने जवाब भी दे दिया ये कोई जरूरी नहीं है इस तरह की जो है वो तो चलते रहनी चाहिए 600 पंख है और माने ज नंग की बात है तो को गिनने के लिए 600 तक की गिनती आना जरूरी है मेरा कहना य था
(19:37) और लाइन दे आंसर वकील साहब जी हा जी बता आप जो कब से कह रहे हैं देखिए दो चीज होती है एक होता य कि इल्म इंसानों से पढ़ना एक होता है खुदा की तरफ से मिलना दोनों में डिफरेंस है दोनों एक है नहीं अलग अलग है दोनों बस इंसानों की तरफ से नहीं मिला उनको इल्म यह खुसूसियत है नबी की अल्लाह जो चीज उनको बताएंगे सारी चीजें पता चल जाती है जिस तरह कुरान पता चल गया तो आप ये फरिश्तों के जो परों की बात कर रहे हैं इसके अलावा सारी चीजें पता चल गई इंसानों से जो पढ़ा लिखा होता है ना उसकी उसको डिनायर है वो हमारे नबी ने किसी इंसानों से नहीं पढ़ा है यानी हम
(20:18) ये नहीं कहते कि आप सलम को नहीं हो सकता था भाई अ अल्लाह ताला बताएगा तोगा अब अगर आप ये कहेंगे कि इंसानों से पड़ा है तो आपकी जिम्मेदारी होगी कि आप उसको साबित करेंगे लिए पढ़ लिखा होना बहुत जरूरी है बेहतर है बेहतर है आपकी बात आ चलिए शुक्रिया वकील साहब चलिए इंशाल्लाह फिर बात करेंगे अब आगे बढ़ेंगे बात होगी च चलिए भाई इनको रवाना कर
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Aaj bhi kai log is baat par hairan hote hain ke Nabi Muhammad ﷺ ko jab “Ummi” kaha jata hai, to iska matlab kya hai? Kya woh waqayi likhna padhna nahi jaante the? Agar haan, to phir Qur’an jaise deep, poetic aur logically coherent kitaab unke zariye kaise samne aayi?
Ye sawal kisi shakshiyat par nahi, lekin Islam ke asal message par doubt paida karta hai. Is article me hum yeh samjhenge ke Nabi ﷺ ka Ummi hona Qur’an ke divine source ka ek saboot hai, shak ka sabab nahi.
Key Takeaways:
- “Ummi” ka matlab uneducated nahi, balke unlettered hota hai.
- Prophet ﷺ ne Qur’an ko khud nahi likha, balke wahi ko dictate kiya jo likhne wale sahaba ne likha.
- Qur’an ke lafz lafz ki hifazat ek community-based process tha.
- Prophet ﷺ ki taleem Allah ke zariye thi, kisi insani ustad ke zariye nahi.
- “Ummi” hone ke bawajood Prophet ﷺ ki knowledge unmatched thi – ye khud ek miracle hai.
Objection: Agar Nabi ﷺ Ummi the, to Qur’an kaise diya?
Yeh objection kai log uthate hain:
“Agar Prophet Muhammad ﷺ likhna padhna nahi jaante the, to unhone Qur’an kaise deliver kiya? Unhone verify kaise kiya ke sahaba ne wahi likha jo wahi me aaya?”
Ye objection aslan do assumptions par based hai:
- “Ummi” hone ka matlab ye hai ke Nabi ﷺ kisi cheez ko samajh nahi sakte the.
- Agar koi shakhs unlettered ho to wo intelligent nahi ho sakta.
“Ummi” ka Matlab Kya Hai?
Qur’an ne Nabi ﷺ ke liye jo lafz use kiya wo hai Ummi.
Yeh lafz asal me aaya hai “Umm” (mother) se, yani jis tarah maa ke pass bacha khaalis aur ghair-mutasir hota hai, waise hi Nabi ﷺ kisi school ya teacher ke taaleem se mutasir nahi the.
Misal:
Agar aaj koi shakhs China jaye aur Chinese language na jaane to wo unlettered hai, lekin is ka matlab yeh nahi ke wo uneducated hai.
Same tarah, Prophet ﷺ kisi formal human taaleem se nahi guzre, lekin unka ilm Allah ka diya hua tha.
“Allah ne unhe muallim bana kar bheja.” (Hadith)
Qur’an Ka Wahi Process Kya Tha?
Mufti Yasir ke mutabiq:
- Nabi ﷺ par wahi aati thi.
- Aap ﷺ sahaba me se kisi likhne wale ko bulate aur wahi dictate karte.
- Wo sahabi likhte, phir bar bar usi ko padh kar sunate.
- Is ke baad wahi ayat tamam community ko sikhayi jaati.
Ye process multi-layered verification par mabni tha:
- Likhnay wale sahaba tak limited nahi tha.
- 60 se zyada sahaba likhne wale the.
- Hazaron log Qur’an yaad bhi karte the.
- Wahi ki aayat jummah, namazon aur dars me baar baar padhayi jaati thi.
Agar koi sahabi galti se ya jaan bujh ke lafz badal deta?
To turant pakra jata, kyunke:
- Doosre log usko sun rahe hote.
- Prophet ﷺ khud sunte.
- Qur’an ki collective memory ek live backup thi.
Logical Fallacy in Objection
Ye objection ek classic False Assumption aur Strawman Fallacy hai.
- Pehla: Ke Ummi hone ka matlab uneducated ya bewakoof hona hai.
- Dusra: Ke Prophet ﷺ ne Qur’an likhne ka kaam kiya, jabke woh sirf wahi deliver karte the.
Donon assumptions ghalat hain.
Ek Misaal:
Sochiye ek blind person ek amazing speech karta hai jo dusre log likhte hain. Kya aap ye kahenge ke wo blind nahi tha sirf is liye ke speech lajawab thi?
Wahi Aur Qur’an Ki Hifazat
Qur’an khud kehta hai:
“Aap ne apne haath se kuch nahi likha… agar likha hota to log shak karte.” (Surah Al-Ankaboot: 48)
Ye ayat clear karta hai:
- Nabi ﷺ ne khud kabhi kuch nahi likha.
- Yeh Allah ki hikmat thi, taake koi shak na paida ho ke yeh kitab unki apni likhi hui hai.
Isliye unka Ummi hona, wahi ka saboot ban gaya.
Allah Ki Direct Taleem
Nabi ﷺ ko Allah ne “ilm-ul-awwaleen wal aakhireen” diya tha – pehle aur baad ke logon ka ilm. Aap ﷺ ne khud farmaya:
“Main teacher banakar bheja gaya hoon.”
Iska matlab:
- Taleem ka source insani nahi, ilahi tha.
- Aap ﷺ kisi bhi insani madrase ke mohtaj nahi the.
Objection: Jibraeel ke 600 paron ko kaise gina?
Ek caller ne kaha ke agar Nabi ﷺ ne gina ke Jibraeel ke 600 par hain to iska matlab hai wo counting jaante the, to likhna padhna bhi aata hoga.
Jawab: Counting ya ginti aana aur “literate” hona do alag cheezein hain. Aaj bhi gaon me kai log ginti jaante hain lekin likhna nahi jaante.
Objection: Shayad sahaba ne apne se kuch ayatein daal di?
Yeh serious ilzaam hai lekin bilkul bay-bunyad.
- Qur’an ek community-based kitab thi, har ayat dusre bhi yaad karte the.
- Hazrat Umar (RA), Hazrat Zaid bin Thabit (RA) jaise log Qur’an ke protectors the.
- Prophet ﷺ khud supervise karte the likhne ka process.
- Har ayat multiple baar revise hoti thi.
Isliye koi bhi lafz add ya remove nahi ho sakta tha.
Natija (Conclusion)
Nabi Muhammad ﷺ ka Ummi hona Islam ki sab se badi daleel hai, taana nahi. Agar aap ne kisi teacher ke bagair Qur’an jaisa lajawab kalaam deliver kiya, to ye insani kaam nahi – ye sirf wahi ka nateeja ho sakta hai.
Yani:
“Agar Prophet ﷺ likhna padhna jaante hote to log kehte ke unhone khud Qur’an likha. Lekin Allah ne unhein Ummi rakha taake har shak ka darwaza band ho jaye.”
Jo log kehte hain ke Prophet ﷺ par wahi nahi aayi, woh khud is ayat se takra jaate hain – kyunke Qur’an to keh raha hai ke unhone kuch nahi likha. To phir ya to Qur’an jhoot keh raha hai, ya phir aap ka objection be-bunyad hai.
FAQs
Q: Kya “Ummi” ka matlab anparh ya bewakoof hota hai?
A: Nahi. “Ummi” ka matlab hai jisne kisi insani teacher se taleem nahi li. Bewakoofi ka is se koi taalluq nahi.
Q: Kya Nabi ﷺ ne kabhi Qur’an khud likha?
A: Nahi. Qur’an me clear hai ke aap ﷺ ne kabhi apne haath se kuch nahi likha (Surah Ankaboot: 48).
Q: Sahaba ne agar kuch ghalat likh diya hota to?
A: Prophet ﷺ aur poori community ne har ayat ko multiple baar sun kar confirm kiya. Galti ka chance na hone ke barabar tha.
Q: Kya likhna na aana Allah ki taraf se tha?
A: Ji haan. Yeh Allah ki hikmat thi taake log yeh na keh saken ke Qur’an Muhammad ﷺ ka likha hua hai.