Khuda Nazar Kyun Nahi Aata?

Aam objection hota hai: “Khuda agar waqai hai to dikhta kyun nahi? Agar wo powerful hai to humein usse dekhne ki salahiyat kyu nahi di?”

Is objection me do assumptions chhupi hoti hain:

  1. Jo cheez dikhti nahi, wo exist nahi karti.
  2. Agar sab log Khuda ko dekh lein, to sab sach maanne lagenge.

Mufti Yasir ne is objection ka jawab na sirf logical reasoning se diya, balke fitri soch aur scientific limitations ko samjha ke bataya.




Transcript: (00:00) समझ में आ गया आपके जहन में यह है कि अगर कोई चीज दिखेगी तो माना जाएगा ना नहीं दिखेगी तो नहीं मानेंगे राइट जी अच्छा अब यह जो आपने जाब्ता या उसूल या प्रिंसिपल तय कर दिया कि कोई चीज दिखेगी तो मानेंगे यह उसूल कहा कौन से एमरिक डाटा के ऊपर है जी यह वाला जाता बताइल डटा के ऊपर जो चीज दिखेगी मैं उसी को मानूंगा जो नहीं दिखेगी उसको नहीं मानूंगा इसको एपिकली साबित करें वो तो सर आपकी बात य बता रहा कि जो जितने भी जो धर्म के ठेकेदार बते एपिकल एविडेंस समझते हैं हा यह बात भी है आस भाई भी मेरी तरह साधे हैं उनको कह रहे दोबारा से जाकर पढ़े एक बंदा हिंदू है

(00:50) एथ नाम उमर रियाज रखा है व कितना को पढ़ लेगा भाई जी हासे एपिकल एविडेंस सवाल जन है िकल एविडेंस पता है किसे कहते आप अपने आप को नहीं देख सकते हा हा इनर पर्सन है उसको नहीं देख सकते बता व है नहीं या वो भी खतम है ब देखता सर ली आप अपनी बॉडी को देखते हैं आपका जो इनर सेल्फ है उसको क देखते हैं जिसको आप मैं जिसको जिस मैं को आता है जो खुश होता है जो रंजीदा होता है जो गमगीन होता है जो परेशान होता है वह किधर है उसका तो सर जो है साइंटिफिक रीजन में देख लिया जाता है ना उसको साइंस और डॉक्टर के जरिए से डक्टर बताएगा कि यह है वो य ये रहा

(01:52) आपका वो मैं डॉक्टर बताएगा अच्छा डॉक्टर को कौन बताएगा एक मिनट य क्वेन ने आप लोग की स्ट्रीम देखी तो उसमें सर आप बताते हैं कि जो है खुदा को देखा नहीं जाता जा सकता है इस दुनिया में तो सर मेरा सवाल था कि जो है इस दुनिया में नहीं दे स जा सकता तो फिर गॉड ने जो ऐसी इस टाइप की जो है क्यों दुनिया बनाई या फिर हम लोग नहीं दे सकते तो हम लोग को ऐसा बना देता कि हम देख सकते हैं अगर सर जैसे खुदा को अगर जैसे की कोई देख ले तो इस जो है पूरी वर्ल्ड दुनिया में तो जो कोई दूसरा रिलीजन ना रहे और ना एक दूसरे से कोई ऐसी इलाफ हो सब एक रिलीजन पर

(02:27) चले अगर जो है कोई तो खुदा दिख जाए जी एटली इसीलिए तो दिखता क्यों नहीं सर व्हाई वी कैन नॉट सी द आई थिंक कि आप बहुत इनोसेंट है और आपकी इनोसेंस की वजह से मैं ये जवाब दे रहा हूं वो ये के आप आप लोग जब सवाल करते हैं या कोई भी सवाल जहन में आता है ना तो ठीक है मैं सवाल कुछ भी आ सकता है लेकिन आपको यह जानना चाहिए कि अगर आप इस्लाम पर कोई ऑब्जेक्शन उठा रहे हैं तो उन लोगों की अपनी एपिस्टम जीी क्या है वो किस ग्राउंड के ऊपर खड़े हैं अभी कैसर भाई ने कहा कि एगजैक्टली इसीलिए दुनिया बनाई है कि जहां पर खुदा को देखने की इंसान में सलाहियत नहीं है ताकि अगर हर

(03:11) एक आदमी जिस तरीके से सामने आप जहां भी बैठे हुए होंगे उसके आगे कोई ना कोई दीवार होगी आप एक बंदे को ले आए 100 बंदे को ले आए एक लाख एक करोड़ एक बिलियन बंदे को ले आए और दिखाए य दीवार है या कुछ और है सब य कहेंगे किय दीवार है किसी का इसमें कोई इख्तिलाफ नहीं होगा तो ऐसे ही अगर खुदा मान ले नजर आ जाए इस दुनिया में और इंसान के अंदर ये सलाहियत पैदा हो जाए कि सब लोग खुदा को देख ले तो सब लोग मोमिन होंगे काफिर तो होंगे ही नहीं तो जब काफिर नहीं होंगे तो फ इस दुनिया के बनाने की जरूरत ही क्या है हमें तो जन्नत में रहना चाहिए

(03:38) था बस जन्नत में रहते ना जहन्नम भी बनाने की जरूरत नहीं थी अब अगर हम खाली जन्नती में रहते तो क्यों रहते भाई हमारा कोई इम्तिहान तो हुआ नहीं फिर हमें भी बनाने की जरूरत नहीं थी ये कहना चाह रहे हैं कि जिस सब्जेक्ट का एग्जाम है उसकी बुक भी लेके जाने दें ये भी सही साब मैं पूछना चाह रहा हूं सही है सर जो कौन सी क्लास में पढ़ते हैं काम सर आप कौन सी क्लास में पढ़ते हैं नहीं मेरा तो ग्रेजुएशन कंप्लीट हो गई है किस फीड में मैं य बीएससी से की है अच्छा जी जी कामुक साहब मेरी आपसे यह समझे विनती है कि आप प्लीज जाए फिर से जो है उस चीजों को

(04:31) पढ़े इन सार डिस्कशन को पढ़े क्योंकि मुझे या कि पर्सनली मुझे ऐसा फील हो रहा है कि आपको खुद पता नहीं है कि आप सवाल क्या पूछ र है मेरा यही सवाल है कि सर इफ यू गिट सो वाई सी इस मेरा बस यही सवाल ठीक है समझ में आ गया आपके जहन में यह है कि अगर कोई चीज दिखेगी तो माना जाएगा ना नहीं दिखेगी तो नहीं मानेंगे राइट जी अच्छा अब ये जो आपने या उसूल या प्रिंसिपल त कर दिया कि कोई चीज दिखेगी तो मानेंगे यह उसूल कहा कौन से एपिकल डाटा के ऊपर है जी यह वाला जाता बताइ टा केपर जो चीज दिखेगी मैं उसी को मानूंगा जो नहीं दिखेगी उसको नहीं मानूंगा इसको एपिकली साबित

(05:19) करें वो तो सर आपकी बात ठीक यह बता रहा कि जो जितने भी जो धर्म के ठेकेदार बनते एपिकल एविडेंस समझते हैं हाय बात यार आसिम भाई भी मेरी तरह साधे हैं उनको कह रहे हैं दोबारा से जाकर पढ़े भा एक बंदा हिंदू है एथ हुआ है नाम उमर रियाज रखा है वो कितना को पढ़ लेगा भाई जी हा वैसे एपिकल एविडेंस चलिए सवाल जेनन है जी एपिकल एविडेंस पता है किसे कहते हैं एपिकल एविडेंस सर याद नहीं मुझे आ रहा मुझे बस प आपने पक्का बीएससी में ग्रेजुएशन किया ग्रेजुएशन जी जी जी चले एंपर कल एविडेंस को आप इस तरह कह ले मसलन किसी चीज को आपने देखकर आपने तजुर्बा किया और उसके बाद जो

(06:10) है एमेरिक आपके पास कुछ सबूत इकट्ठे हो गए ये दरअसल यानी जिस चीज का ताल्लुक देखने से है ना वो इरल है समझ ले ठीक है आसान के करने के लिए बता दिया मैंने आपको तो आपके पास कोई ऐसा एंपर कल एविडेंस है कि जिससे यह पता चलता हो कि जो चीज देखी जा सकती है उसी को माना जाएगा जो देखी नहीं जा सकती उसको नहीं माना जा सकता इसका कौन सा एरिक एविडेंस है क्योंकि अगर इसका एरिक एविडेंस आपके पास नहीं है ना तो यह जो उसूल है यह भी गलत है इसी को कहते हैं सेल्फ रिफ्यूटेशन अपने गोल में गोल कर देना हा तो सर इसका यही आंसर है कि जो है जो गॉड का दिखना इसलिए इंपॉर्टेंट है

(06:50) क्योंकि जो है अगर नहीं दिखेंगे तो मतलब जो कॉन्शियस माइंड है वो सबसे पहले इधर ही भागता है कि लोग जो है ना अपने तरफ से सब दीन बनाए अपनी तरफ से रिलीजियस इसका आंसर आपके सवाल का ये है कि आपका जो उसूल है जो प्रिंसिपल है वो गलत है मानने के लिए देखना जरूरी नहीं है हां जानना जरूरी है आप ये कह सकते मुझे जब तक मैं जानू नहीं तो मैं मानूंगा कैसे यहां तक तो आप ठीक क लेकिन अगर आप ये कहे मैं देखूंगा नहीं तो मानूंगा नहीं ये उसूल गलत है जी ठीक चले अब आप ठीक है वो भी ठीक है सर सर मैं आपको मैं ऐसे कर कह रहा कि जो कॉशस माइंड होता है व सबसे पहले यही बाता कि

(07:30) जितने भी जो दन रिलीजस अपने इंसान ने खुद बनाए हैं तो ये इसीलिए बनाए होंगे जब गड दिखा नहीं तो उन्होने जो है अपने अपने मन का जो आया वो बना लिया जितने भी रिलीजस है बिल्कुल श्री राम भी इसी तरह से श्री कृष्णा की मूर्ति भी इसी तरह ही बनी है बात आप ठीक कर रहे जी कसर भाई एक तो ये कि कमो साहब जो आपने आखरी बात कही है इसका कोई एपिकल एविडेंस नहीं है अगर आपके पास है तो आप जरूर दीजिएगा दूसरी बात में कई दफा अपनी स्म में एग्जांपल कोट कर चुके हैं यह जो जिद है ना कि हर चीज को आप देखेंगे तो मानेंगे देखें जो एविडेंस है ना वो चीज

(08:05) की नेचर के साथ चेंज हो जाता है मिसाल के तौर पर अगर मैं आपसे कहूं कि इस वक्त मेरे पास आपके लिए 10 डलर है जेब में है तो आप यह कह सकते हैं कि जेब में हाथ डालो और व 10 डलर का नोट निकालो मुझे दिखाओ इसलिए कि जो पेपर है वो एक फिजिकल प्रॉपर्टी है फिजिकल एंटिटी है तो मैं आपको दिखा सकता हूं लेकिन अगर मैं आपसे यह कहूं कि मेरे दिल में आपकी बड़ी इज्जत है तो मैं आपसे एक्सपेक्ट कभी नहीं कहूंगा कि आप मुझे कहे कि दिल में हार डाल केत निकाल के दिखाओ अब क्योंकि नेचर ऑफ क्लेम चेंज हो गया है तो बर्डन जो नेचर ऑफ एविडेंस है वो भी चेंज

(08:35) हो जाएगा अब आप मेरे बिहेवियर से देखेंगे अब आप बहुत सी के यू नो दे नंबर ऑफ पैरामीटर्स आप अप्लाई करेंगे जो कि सारे के सारे इनटेंजिबल है तो ये जिद बड़ी अजीब है कि जब अल्लाह ताला के बारे में हम आपके सामने तसव्वर ही यह रखते हैं कि ना उसको देखा जा सकता है ना उसको छुआ जा सकता है ना वो आपकी परसेप्शन में कतई तौर पे आ सकता है कुल्ली तौर प आ सकता है तो आप कहे कि नहीं फिर मुझे दिखाओ मैं आपकी अकल देखने का मैं आपसे मैं दावा नहीं करता मैं आपका गुस्सा देखने का दावा नहीं करता मैं आपके गुस्से में जो बिहेवियर होता है वो तो मैं देख लेता हूं

(09:09) लेकिन उसके पीछे जो गुस्सा होता है वो तो मैं नहीं कभी देख सकता आप अपने आप को नहीं देख सकते हां जी हां ये जो इनर पर्सन है उसको नहीं देख सकते आप उसको बताइए वो है कि नहीं फिर या वो भी खत्म है ये बड़ा म शीशे में अपने आप को देखता हूं सर डेली तो आप अपनी बॉडी को देखते हैं आपका जो इनर सेल्फ है उसको कहां देखते हैं जिसको आप मैं कह जिसको जिस मैं को गुस्सा आता है जो खुश होता है जो रंजीदा होता है जो गमगीन होता है जो परेशान होता है वो किधर है उसका तो सर जो है व साइंटिफिक रीजन में देख लिया जाता है ना उसको तो साइंस और डॉक्टर के जरिए से आप डॉक्टर बताएगा कि ये

(10:01) है वो ये ये रहा आपका वो मैं डॉक्टर बताएगा अच्छा डॉक्टर को कौन बताएगा नहीं सर इससे ये कैसे साबित होता है कि जो येट इ द अ करना चाहर हूं एक चीज करना हां मैं बताता हूं मेरा भाई ये जो कांसेप्ट ऑफ गॉड खास तौर पर इस कैटेगरी का सवाल है ना देखने से जिसको आसिम भाई ने कैसर भाई ने मुफ्ती साहब ने बड़ी डिटेल से आपको समझाया है अगर आप उसको सुनेंगे तो आपको पता चल जाएगा इसमें ना आपको सही कांसेप्ट को छानना हो ना तो आप फर्क कर सकते हैं ये जो आप कह रहे हैं ना कि लोगों ने मैन मेड तसव्वुर बना लिए आप बिल्कुल ठीक बात कर रहे हैं वो इसी वजह से

(10:42) आए कि लोग चाहते थे अल्लाह को देखें खालिक को देखें यही वजह है कि खालिस इस्लाम ही वो रिलीजन है जिसका यानी दीन है जिसका क्लेम ही ये है कि ये इंसान देख ही नहीं सकता इस आंख से वगरना हिंदुइज्म में उन्होंने इंसानों के अंदर रि इंकार्नेट करवा दी क्रिश्चियनिटी के अंदर उन्होंने बेटा पैदा करवा दिया उन्होंने इंसान बनाया पता है क्यों क्योंकि वो अपनी इस तड़प में एक्सट्रीम जगह पर चले गए इस्लाम ही वाहिद वो कांसेप्ट किधर गए इस्लाम ही वो कांसेप्ट है जो आपको यह तसव्वुर देता है कि जनमन कांसेप्ट क्या है उस खालिक का तो यह जो आपने अपील रखी ना इंसान की इसी चीज

(11:20) ने खराब किया है दूसरे धर्म वालों को कि उन्होंने इंसानों के अंदर दाद खाना शुरू कर दिए कि देखो ये है जी हमने उतर देखि अब मैं लास्ट कमेंट कर रहा हूं उसके बाद फिर कभी बात करेंगे जो आज के जो आपकी आखिरी गुफ्तगू है ना जो हमारी गुफ्तगू हुई है उससे यह साबित होता है कि किसी भी चीज को जानने के लिए उसका दिखाई देना उसका देखा जाना जरूरी नहीं है जैसे कि एक इंसान अपने बारे में जानता है अपने इनर सेल्फ को जानता है लेकिन वह अपने इनर सेल्फ को देख नहीं सकता जिस चीज को व शीशे में देखता है वो वो नहीं है वो उसकी बॉडी है और उसकी एक

(11:51) मिसाल आखिर में दूंगा और ये मैंने पहले भी दी है कि मसलन एक आदमी अगर किसी का नाम मसलन जॉन है और वो मर जाए तो तो आप यह नहीं कहते अगर उसकी डेड बॉडी जो है वो मसलन रखी हुई है तो आप यह नहीं कहते कि जॉन लेटा हुआ है आप यह कहते हैं कि जॉन मर गया जॉन पास्ड अवे यानी लिंग्विस्टिकली भी इस चीज को माना जाता है कि अब जॉन नहीं है हालांकि बॉडी तो सामने ही है चूंकि वो जॉन नहीं था जॉन तो उसमें था वो इनर सेल्फ उसका खत्म हो गया जबकि उस इनर सेल्फ को ना जॉन ने देखा ना टॉम ने देखा ना किसी ने किसी हैरी ने देखा उसको देखा ही नहीं जा सकता तो आप उसके बावजूद ना सिर्फ ये कि

(12:27) अपने इनर सेल्फ को बल्कि सामने वाले के इनर सेल्फ को भी मानते हैं देखे बगैर मानते हैं तो इस तरह की बहुत सारी मिसाले हैं तो यह जो जाब्ता य उसूल आपने आपने साइंस बहुत से क्लासरूम में इस तरह के डिस्कशन होते होंगे वहां से आपने सीखा कि नहीं जी नजर नहीं आता इसलिए नहीं मानते ये उसूल और यह प्रिंसिपल गलत है यह पॉइंट है सर ठीक है ठीक है ओके थैंक यू वेरी मच सर य थैंक यू शुक्रिया अच्छा हजरत इस पर ना मैं एक दो जुमले मुझे इजाजत दीजिएगा जी ये जो ये जो आए ना आजकल य एमरिक एविडेंस और हमारी ऑब्जर्वेशन में चीज आएगी तो ही हकीकत मानेंगे अफसोस के साथ कहना

(13:05) पड़ता है कि रसल जो बाबा इल्हा माना जाता है 18वीं और 19वीं सदी का बहुत बड़ा नाम माना जाता है 20वीं सदी में भी तो उस बंदे ने भी अपनी जो किताब क्लियर थिंकिंग लिखी या एसेज लिखे उसने भी कभी यह देखने का आर्गुमेंट इस्तेमाल ही नहीं किया क्योंकि वो ओल्ड फिलॉसफी को और उसने बल्कि तन कीद की मॉडर्न फिलॉसफी के ऊपर यही कि इन लोगों ने हर चीज को जाहिर के ऊपर श्रंक करके रख दिया है ये बाउंड बना द जो चीज हमारी आंखों में ऑब्जर्वेशन में आएगी एमरिक एविडेंस आएगा तो ही उसको हकीकत मानेंगे मेरा सवाल सिंपल यह है क्या माइक्रोस्कोपिक वर्ल्ड जो है जो

(13:39) बैक्टीरिया की दुनिया है अमीबा की दुनिया है जब तक माइक्रोस्कोप या सेलर सेल्यूलर जो स्टडीज है वो नहीं आई थी माइक्रोस्कोपिक क्या ये चीज एजिस्ट नहीं करती थी आपके देखने की मोहताज थी उनका वजूद में आना नहीं एसिस्ट तो तब भी करती कॉस्मस की कितनी दुनिया है जिसको आपने आज से हजारों साल पहले या सैकड़ों साल पहले अपनी आंखों से नहीं देखा हुआ था क्या वो एजिस्ट नहीं करती थी एजिस्ट तो फिर भी करती थी आप कोई कह सकता है जी ये देखें टूल्स लगा रहे हैं मैं कह रहा हूं टूल्स के जरिए ही देखा इसका मतलब यह है कि कुछ मोहताज आप हैं कुछ चीजों को देखने के लिए

(14:15) बस यही मोहताज उस खुदा को देखने की या उस खालिक को देखने की कुरान में भी रखी है कि लन तारानी तुम्हारी आंखों में ये ताकत ही नहीं है कि तुम देख हो

Key Takeaways:

  • Dekhne ka matlab maanne nahi hota, samajhne ka hota hai.
  • Har real cheez physical senses se nahi pakdi ja sakti.
  • Khuda ka na dikhna uski rehmat aur test system ka hissa hai.
  • Atheist objection self-refuting hai: apni hi logic ke khilaaf jaata hai.

Objection: “Khuda Nazar Kyun Nahi Aata?”

Atheist caller ne kaha:

“Agar Khuda real hai to dikhta kyun nahi? Agar sab usse dekh lein to ek hi mazhab ho jaye.”

Ye objection superficially valid lagta hai, lekin jab iski logical tahqiqat ki jaye to flaws samne aate hain.


Logical Flaw 1: Seeing = Existing?

Mufti Yasir ne poocha:

“Ye jo usool aapne banaya ke sirf wahi cheez mani jaye jo dekhi ja sake — iska koi empirical proof hai?”

  • Kya hum hawa, dard, jazbaat, khushi, gham, ya insani “self” ko dekhte hain? Nahi.
  • Phir bhi hum unka wajood maante hain.

Ye self-refuting principle hai: “Jo cheez nazar nahi aati, wo exist nahi karti” – khud hi apne upar apply nahi hota.


Logical Flaw 2: Seeing God Will End Free Will?

Agar Khuda sab ko dikh jaye, to phir imaan aur kufr ka imtihaan khatam ho jata.

  • Phir koi bhi deny nahi karta.
  • Phir sab mo’min hote – aur imaan bina choice ke meaningless ho jata.
  • Jannat/Jahannam ka system bhi khatam ho jata.

Ye duniya test hai – examination hall me answer sheet milti hai, question paper dikhayi deta hai, lekin teacher class me nahi hota.


Logical Flaw 3: Nature of Evidence Depends on Nature of Claim

Mufti Yasir ne kaha:

“Agar koi kahe ke mere paas 10 rupey hain, to usse dikhaya ja sakta hai. Magar agar koi kahe ke mere dil me izzat hai — to uska evidence aap behavior se nikaalte hain.”

Yani:

  • Physical cheezon ka proof physical hota hai.
  • Spiritual ya intangible cheezon ka proof logical, behavioral aur experiential hota hai.

Allah ka wajood bhi physical cheez nahi – is liye uska proof physical nahi ho sakta.


Islamic View: Khuda Nazar Kyun Nahi Aata?

Islam yeh maanta hai ke:

  • Allah physical entity nahi hai.
  • Usay insani aankh is duniya me nahi dekh sakti.
  • Ye limitation insaan ki aankh ki hai – Khuda ki nahi.
  • Qayamat ke baad mo’mineen usay dekhenge – jannat me.

“Lan taraani” – Tum mujhe is duniya me nahi dekh sakte (Surah al-A’raf)


Real-Life Analogy: “Jaan Kahan Gayi?”

Mufti Yasir ne misaal di:

“Ek shakhs mar jaye. Uski body to hai, lekin hum kehte hain ‘woh chala gaya.’ Iska matlab wo ‘self’ ya jaan jo pehle thi, wo ab nahi hai — jab ke kisi ne uss self ko kabhi dekha nahi.”

Ye prove karta hai ke har haqeeqat ko dekhna zaroori nahi — samajhna zaroori hai.


Conclusion: Na Dekhne Ka Matlab Na Hone Nahi

Agar sirf dekhne se hi wajood ka faisla hota, to duniya ke bohot se concepts unreal kehlaate:

  • Jazbaat, morality, consciousness, logic, reason — sab cheezen invisible hain.
  • Khuda bhi unhi unseen realities me se ek hai – magar uska proof aql, fitrah aur revelation se milta hai.

Islam kehta hai:

“Jo aankhein nahi dekh sakti, usay dil samajh sakta hai.”


FAQs

  • Q: Agar Khuda real hai to wo nazar kyun nahi aata?

    A: Kyunke Khuda physical entity nahi. Uska na dikhna insaan ka test hai. Revelation, reasoning aur fitrah uski taraf guide karte hain.

  • Q: Kya invisible cheezon ka wajood nahi hota?

    A: Hawa, gravity, love – ye sab invisible hain, magar sabko pata hai ke ye exist karti hain.

  • Q: Kya Khuda qayamat ke din nazar aayega?

    A: Ji haan. Islam ke mutabiq mo’mineen ko jannat me Allah ka deedar naseeb hoga.

  • Q: Kya dekhna imaan laane ka saboot hona chahiye?

    A: Nahi. Imaan yaqeen aur samajh par hota hai, dekhne par nahi.





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